कानपुर समेत पूरे एनसीआर में जहरीली शराब से दबा के मौतें हो रहीं हैं। ताज्जुब की बात है कि प्रशासन ने अवैध शराब माफियाओं पर दम से लगाम कस रखी है। फिर क्यों हर रोज मौतें क्यों नहीं थम रहीं हैं? सोंचने वाली बात है और नहीं भी। सोंचने वाली उसके लिये जो प्रशासनिक कार्यवाही से अनभिज्ञ है और ना सोंचने वाली बात उसकी जो इनकी कारगुजारियों को जानता हो। एक कहावत सुनता हूँ की किसी थाने में जो काम सिपाही कर करवा देगा वो थानेदार भी नहीं करवा पाता। अगर ये सही है तो सभी जवाब इसी वाक्य में निहित हैं।
अब प्रशासनिक अमले का कोई आला अधिकारी कहाँ तक और कब तक क्षेत्र में भ्रमण करेगा। इस टाईप की जिम्मेदारियां बीट पर तैनात सिपाहियों तथा सब इंस्पेक्टरों की होती हैं। ले देकर मामले रफा दपा के अलावा जब हफ्ता महीना बांध लिया जाएगा तो मरने वाले तो मरेंगे ही। मतलब क्या है जब अंटी मजबूत हो रही है।
पुलिस का ज्यादातर संजाल सूचना तंत्र व मुखबिरी पर चलता है और जब सूचना देने वाले ही चंद सिक्कों कि खनक से बहरे हो जाऐंगे तो लोग तो मरेंगे ही। जो आया है उसे जाना तो है ही इसमें बेचारी खाकी का कोई दोष नहीं देना चाहिए विधा कसम।