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काँख  : स्त्री० [सं० कक्ष] घड़ और बाँह के बीच का वह भाग जो कंधे के नीचे पड़ता और गड्ढे के रूप में होता है।
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काँखना  : अ० [अनु०] १. मल-त्याग के समय आँतों या पेट को इस प्रकार कुछ जोर से दबाना कि मुंह से आह या ऊँह शब्द निकले। २. कठिन या विशेष परिश्रम का काम करते समय उक्त प्रकार की चेष्टा या शब्द करना। (व्यंग्य)।
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काँखसोती  : स्त्री० [हिं० काँख+सं० श्रोत्र, प्रा० सोत] जनेऊ की तरह कंधे पर दुपट्टा डालने का ढंग।
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कांखी  : वि०=कांक्षी (आकांक्षी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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