शब्द का अर्थ
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					खंज					 :
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					पुं० [सं०√खञ्ज् (लँगड़ाना)+अच्] पैर और जाँघ की नसों को जकड़ लेने वाला एक वात-रोग, जिसमें रोगी उठने-बैठने या चलने में असमर्थ हो जाता है। वि० १. जिसे उक्त रोग हुआ हो। २. पंगु। लँगड़ा। पुं०=खंजन (पक्षी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					खंजक					 :
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					वि० [सं० खञ्ज+कन्] १. जो खंज रोग से पीड़ित हो। जिसे खंज रोग हुआ हो। २. पंगु। लँगड़ा। पुं० [?] एक प्रकार का वृक्ष जिसमें से रूमीमस्तगी की तरह का गोंद निकलता है।				 | 
			
			
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					खंजकारि					 :
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					पुं० [खंजक-आरि ष० त.] खेसारी।				 | 
			
			
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					खंजखेट					 :
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					पुं० [सं० खंज√खिट् (गति)+अच्]=खंजन (पक्षी)।				 | 
			
			
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					खँजड़ी					 :
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					स्त्री०=खंजरी।				 | 
			
			
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					खंजन					 :
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					पुं० [सं०√खञ्ज्+ल्यु-अन] १. काले या मटमैले रंग की और लंबी पूँछवाली एक प्रसिद्ध चिड़िया जो बहुत ही चंचल होती और बराबर उधर-उधर बैठती उठती रहती है। विशेष-इसी चंचलता के कारण कविगण उसकी उपमा चंचल नेत्रों से देते हैं। २. उक्त पक्षी के रंग का घोड़ा। ३. गंगोदक नामक वर्णवृत्त का दूसरा नाम।				 | 
			
			
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					खंजन-रति					 :
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					पुं० [उपमित स.](खंजन पक्षी की तरह का) ऐसा गुप्त संभोग जिसका जल्दी से किसी को पता न चले।				 | 
			
			
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					खंजनक					 :
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					वि० [सं० खंजन+कन्] १. जिसे खंज रोग हुआ हो। २. लँगड़ा।				 | 
			
			
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					खंजना					 :
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					स्त्री० [सं० खंजन+क्यच्+क्विप्-टाप्]=खंजनिका।				 | 
			
			
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					खंजनासन					 :
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					पुं० [सं० खंजन-आसन, उपमित स.] उपासना के लिए एक प्रकार का आसन। (तंत्र)				 | 
			
			
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					खंजनिका					 :
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					स्त्री० [सं० खंजन+ठन्-इक, टाप्] दलदल में रहनेवाली खंजन की जाति का एक चिड़िया। सर्षपी।				 | 
			
			
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					खंजर					 :
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					पुं० [फा०] [स्त्री० अल्पा.खंजरी] एक प्रकार की छोटी तलवार। कटार।				 | 
			
			
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					खँजरी					 :
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					स्त्री० [सं० खंजरीट-एक ताल] एक प्रकार की छोटी डफली।				 | 
			
			
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					खंजरी					 :
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					स्त्री० [फा.खंजर] १. एक प्रकार का छोटा खंजर। कटार। २. एक प्रकार का कपड़ा जिस पर उक्त के आकार की धारियाँ होती है।				 | 
			
			
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					खंजरीट					 :
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					पुं० [सं० खञ्ज्√ऋ (गति)+कीटन्] १. खंजन या खँडरिच नामक पक्षी। २. संगीत में एक प्रकार का ताल।				 | 
			
			
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					खंजा					 :
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					स्त्री० [सं०√खञ्ज्+अच्-टाप्] एक अर्द्धसम वर्णिक छंद जिसके विषम चरणों में 30 लघु और एक गुरू तथा सम चरणों में २8 लघु और एक गुरु होता है।				 | 
			
			
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					ख़ज़ानची					 :
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					पुं० [फा०] १. वह व्यक्ति जो किसी व्यक्ति, सभा, समिति आदि के कोष या खजाने का प्रधान अधिकारी हो। कोषाध्यक्ष। (ट्रेजरर) २. वह व्यक्ति जिसके पास रोकड़ या आय-व्यय का हिसाब रहता हो। रोकड़िया। (कैशियर)				 | 
			
			
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