शब्द का अर्थ
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					फिस					 :
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					अव्य० [अनु०] कुछ भी नहीं। (व्यंग्य) जैसे—टाँय टाँय फिस।				 | 
			
			
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					फिसड्डी					 :
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					वि० [अनु० फिस] [भाव० फिसड्डीपन] १. जो किसी प्रकार की प्रतियोगिता में सबसे पीछे रह गया हो या हार गया हो। २. सबसे पिछड़ा हुआ। ३. जिसमें कुछ करते-धरते न बनता हो। अकर्मण्य। निकम्मा।				 | 
			
			
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					फिसफिसाना					 :
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					अ० [अनु० फिस] ढीला, मंद या शिथिल पड़ना या होना।				 | 
			
			
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					फिसलन					 :
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					स्त्री० [हिं० फिसलना] १. फिसलने की क्रिया या भाव। २. ऐसा स्थान जहाँ से अथवा जहाँ पर कोई फिसलता हो। ३. ऐसा स्थान जहाँ काई, चिकनाई आदि के कारण पैर फिसलता हो।				 | 
			
			
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					फिसलना					 :
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					अ० [सं० प्रसरण] १. किसी स्थान पर काई, चिकनाहट, ढाल आदि के कारण पैरों हाथों आदि का ठीक तरह से जमकर न बैठना और फलतः उस पर रगड़ खाते हुए कुछ दूर आगे बढ़ जाना। रपटना। जैसे—(क) सीढ़ियों पर पैर फिसलने के कारण नीचे आ गिरना। (ख) शीशे पर हाथ फिसलना। २. लाक्षणिक रूप में किसी प्रकार का आकर्षक या लाभदायक तत्त्व देखकर उचित मार्ग से भ्रष्ट होते हुए सहसा उस ओर प्रवृत्त होना। जैसे—तुम तो कोई अच्छी चीज देखकर तुरन्त फिसल पडते हों। संयो० क्रि०—जाना।—पड़ना। वि० जिस पर सहज मे कुछ या कोई फिसल सकता हो। फिसलनवाला। जैसे—फिसलना पत्थर।				 | 
			
			
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					फिसलाना					 :
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					स० [हिं० फिसलना का स०] किसी को फिसलने में प्रवृत्त करना।				 | 
			
			
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