शब्द का अर्थ
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					फोक					 :
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					पुं० [सं० स्फोट] १. वह नीरस अंश जो किसी रसपूर्ण पदार्थ में से रस निचोड़कर निकाल लेने के उपरान्त बच रहता है। सीठी। २. लाक्षणिक अर्थ में ऐसी चीज जिसमें कोई तत्त्व न रह गया हो। पुं० [?] एक तृण जिसका साग बनाया जाता है। स्त्री० [?] पीड़ा। वेदना। वि० [?] चार। (दलाल)।				 | 
			
			
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					फोकट					 :
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					वि० [मरा० फुकट] १. जिसमें कुछ भी तत्त्व या सार न हो। निस्सार। २. जिसके लिए कुछ भी परिश्रम या व्यय न करना पड़ता हो। मुफ्त का। जैसे—फोकट का माल। पद—फोकट का=मुफ्त का। फोकट में=(क) बिना कुछ व्यय किये। मुफ्त। (ख) व्यर्थ, बे-फायदा।				 | 
			
			
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					फोकला					 :
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					पुं० [सं० वल्कन, हिं० बोकला] [स्त्री० फोकलाई] किसी फल आदि का ऊपरी छिलका। वि०=फोका।				 | 
			
			
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					फोकलाप					 :
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					वि० [देश] चौदह। (दलाल)।				 | 
			
			
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					फोका					 :
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					वि० [हिं० फोक] [स्त्री० फोकी] १. फोक के रूप में होनेवाला अर्थात् रस हीन और बेस्वाद। २. जिसमें मिठास न हो। ३. जिसमें कोई तत्त्व न हो। ४. खाली। रिक्त। ५. खोखला। पोला। जैसे—फोका बाँस। ६. हलके दरजे का। घटिया। अव्य० केवल। निरा। पुं०=पोका। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					फोकी					 :
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					स्त्री० [हिं० फोका] ऐसी मुलायम भूमि जिसमें आसानी से हल चल सके।				 | 
			
			
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