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भाड़  : पुं० [सं० भ्राष्ट्र=पा० भट्टो] १. अन्न के दाने भूनने की भड़-भूँजों की भट्ठी। २. लाक्षणिक अर्थ में, ऐसा स्थान जहाँ सब कुछ नष्ट हो जाता हो। पद—भाड़ में पड़े या जाय=हमें कुछ चिन्ता या परवाह नहीं है। (उपेक्षासूचक) मुहा०—भाड़ झोंकना=बहुत ही तुच्छ और व्यर्थ का काम करना। भाड़ में झोंकना या डालना=(क) नष्ट या बरबाद करना। (ख) बहुत ही उपेक्षापूर्वक परित्याग करना। पुं० [सं० भाटक] १. वेश्या की आमदनी या कमाई। २. दे० ‘भाड़ा’।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
भाड़ा  : पुं० [सं० भाट] १. वह धन जो किसी की चीज का कुछ समय तक उपयोग करने के बदले में दिया जाता है। किराया। जैसे—दूकान या मकान का भाड़ा। २. वह धन जो कोई चीज या किसी व्यक्ति को यान आदि पर ले जाकर कहीं पहुँचाने के बदले में दिया या लिया जाता है। किराया। जैसे—गाड़ी, नाव या रेल का भाड़ा। पद—भाड़े का टट्टू=(क) थोड़े दिन तक रहनेवाला। जो स्थायी न हो। क्षणिक। (ख) वह जो केवल धन के लोभ से (मन लगाकर नहीं) दूसरों का कोई काम करता हो। (ग) ऐसा पदार्थ जो किसी आधार पर हो काम करता हो, स्वतः काम देने में बहुत कुछ असमर्थ हो। जैसे—अब तो यह शरीर भाड़े का टट्टू हो गया है। पुं० [सं० भरण] वह दिशा जिधर वायु बहती हो। मुहा०—भाड़े पड़ना=जिधर वायु जाती हो, उधर नाव को चलाना। नाव को वायु के सहारे ले जाना। भाड़े फेरना=जिधर हवा का रुख हो, उधर नाव का मुँह फेरना। पुं० एक प्रकार की घास जो प्रायः हाथ भर ऊँची होती और चारे के काम आती है।
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भाड़ु  : पुं० [हिं० भाँड़] मूर्ख। बेवकूफ। पुं०=भड़ुआ।
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