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भीतर  : अव्य० [सं० अभ्यंतर] १. घेरे,भवन आदि की सीमाओं के अन्तर्गत। जैसे—घर के भीतर जो चाहे सो करो। २. मन में। पुं० १. अन्दरवाला भाग। २. मन। ३. अंतःपुर। पद—भीतर का कुआँ=वह उपयोगी पदार्थ जिससे कोई लाभ न उठा सके। अच्छी पर किसी के काम न आ सकने योग्य चीज।
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भीतरचारी (रिन्)  : वि० [सं० भीत√चर् (प्राप्त होना+णिनि, उप० स०] डर-डर कर काम करनेवाला।
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भीतरा  : वि० [हिं० भीतर] भीतर या जनानेखाने में जानेवाला। स्त्रियों में आने-जानेवाला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भीतरि  : अव्य०=भीतर। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भीतरिया  : पुं० [हिं० भीतर] १. वल्लभ सम्प्रदाय के मंदिरों मे वह पुजारी जो गर्भ-गृह अर्थात् मंदिर के भीतरी भाग में रहकर देवता की सेवा-पूजा करता हो। २. वह जो किसी का भीतरी भेद या रहस्य जानता हो। वि०=भीतरी।
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भीतरी  : वि० [हिं० भीतर+ई (प्रत्यय)] १. भीतरवाला। अंदर का। जैसे—भीतरी कमरा, भीतरी दरवाजा। २. छिपा हुआ। गुप्त। जैसे—भीतरी बात या भेद। ३. घनिष्ठ। जैसे—भीतरी दोस्त।
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भीतरी-टाँग  : स्त्री० [हिं० भीतरी+टाँग] कुश्ती का एक पेंच। जब विपक्षी पीठ पर रहता है, तब मौका पाकर खिलाड़ी भीतर ही से टाँग, मार कर विपक्षी को गिराता है। इसी को भीतरी टाँग कहते हैं।
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