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शौच  : पुं० [सं० शुचि+अण्] शुचि होने की अवस्था या भाव। शुचिता। शुद्धता। २. शास्त्रीय परिभाषा में सब प्रकार से पवित्रता या शुद्धता-पूर्वक जीवन व्यतीत करना। ३. शरीर की शुचिता के लिए सबेरे सोकर उठते ही किये जानेवाले कृत्य। जैसे—पाखाने जाना, कुल्ला करना, नहाना आदि। ४. पाखाने जाना। टट्टी जाना। पुं० अशौच।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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शौच-कर्म  : पुं० [सं० मध्य० स०] मल-मूत्र आदि का त्याग करना।
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शौच-गृह  : पुं० [सं० ष० त०] वह कोठरी जिसमें लोग बैठकर मल-मूत्र का विसर्जन करे हैं। पाखाना।
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शौच-विधि  : स्त्री० [सं०]=शौच कर्म।
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शौचनी  : स्त्री० [सं० शौच से] आज-कल का वह पात्र जिसमें लोग पाखाना फिरते हैं।
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शौचागार  : पुं० [सं० ष० त०] शौचालय।
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शौचालय  : पुं० [सं० शौच+आलय] १. घरों आदि में वह स्थान जहाँ लोग मल त्याग करने के लिए जाते हैं और जहाँ हाथ, मुँह धोने के लिए जल की व्यवस्था रहती है (लेवेटरी) २. कोई ऐसा स्थान जहाँ पर सार्वजनिक उपयोग के लिए पाखाने बने हुए हों।
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शौचासनी  : स्त्री० [सं० शौच+आसन] काठ आदि का बना हुआ एक प्रकार का पात्र जिस पर बैठकर लोग पाखाना फिरते हैं (कामोड)।
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शौचिक  : पुं० [सं० शौच+ठन्-इ] प्राचीन काल की एक वर्ण संकर जाति जिसकी उत्पत्ति शौंडिक पिता और कैवर्त्त माता से कही गई है। वि० शौच-संबंधी। शौच का।
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शौची (चिन्)  : वि० [सं०√शुच् (शुद्ध करना)+णिनि+दीर्घ, नलोप] [स्त्री० शौचिनी] विशुद्ध। पवित्र।
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शौचेय  : पुं० [सं० शौच+ठक्-एक] रजक। धोबी।
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