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सह  : अव्य० [सं०] सहित। समेत। वि० १. उपस्थित। विद्यमान। २. (पदार्थ) जो किसी प्रकार का प्रभाव सहन करने में यथेष्ट समर्थ हो। (प्रूफ)। जैसा—अग्निसह, तापसह आदि। उप० कुछ विशेषणों संज्ञाओं आदि के पहले यह उपसर्ग के रूप में लगकर यह अर्थ देता है—किसी के साथ में, जैसा—सहगामी, सहचर सहजात आदि। पुं० १. सादृश्य। समानता। बराबरी। २. शक्त। सामर्थ्य। ३. अगहन का महीना। मार्गशीर्ष। ४. पांशु लवण। ५. शिव का एक नाम। स्त्री० समृद्धि।
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सह-अपराधी  : पुं० [सं०] वह जो किसी अपराधी के साथ रहकर उसके अपराध में सहायक हुआ हो। अभिषंगी (एकम्लिप्त)।
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सह-अस्तित्व  : पुं० [सं०]=सह-जीवन।
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सह-गमन  : पुं० [सं० सह√गम् (जाना)+ल्युट—अन] १. किसी के साथ जाने की क्रिया। २. मृत पति के शव के साथ पत्नी का चिता पर चढ़ना।
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सह-गान  : पुं० [सं०] १. कई आदमियों का साथ मिलकर गाना। २. ऐसा गाना जो कई आदमी मिलकर गाते हों संवेतगान। (कोरस)।
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सह-दान  : पुं० [सं० कर्म० स०] बहुत से देवताओं के उद्देश्य से एक या एक में किया जानेवाला दान। स्त्री०=सहदानी(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सह-धर्मचारिणी  : स्त्री० [सं०] पत्नी। भार्या।
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सह-धर्मिणी  : स्त्री० [सं०] पत्नी। भार्या।
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सह-धर्मी (र्मिन्)  : वि० [सं०] [स्त्री० सहधर्मिणी] १. पारस्परिक दृष्टि से वे एक ही धर्म के अनुयायी हों। २. साथ मिलकर धर्म का आचरण या पालन करने वाले।
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सह-भागिनी  : वि० [सं० सह-भागी का स्त्री०] समानता के भाव से किसी कार्य में सम्मिलित होनेवाली। सह-भागी का स्त्री। स्त्री० पत्नी। जोरू।
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सह-भागी (गिन्)  : वि० [सं०] [स्त्री० सहभागिनी] समानता के भाव से किसी काम में किसी के साथ सम्मिलित होनेवाला। पुं० १. वह जो व्यापार आदि में किसी के साथ समानता के भाव से सम्मिलित हो और हानि-लाभ आदि का समान रूप से भागी हो। हिस्सेदार। (को-पार्टनर, शेयरर) २. धर्म-शास्त्रीय या विधिक दृष्टि से वह जो किसी संपत्ति का आंशिक रूप से उत्तराधिकारी हो (कोपार्टनर)।
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सह-भोज, सह-भोजन  : पुं० [सं०] बहुत से लोगों का साथ बैठकर भोजन करना। ज्योनार।
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सह-मत  : वि० [सं०] [भाव० सहमति] १. जिसका मत किसी दूसरे के साथ मिलता हो। २. जो दूसरे के मत से ठीक मानकर उसकी पुष्टि करता हो। ३. जो दूसरे से बातचीत संधि, समझौता आदि करने के लिए तैयार हो।
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सह-मरण  : पुं० [सं० त० त०] [भू० कृ० सह-मृत] १. साथ-साथ मरना। २. पत्नी का पति के शव के साथसती होना।
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सह-मात  : स्त्री०=शह-मात।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सह-युक्त  : भू० कृ० [सं०] १. किसी के साथ में मिला या लगा हुआ। २. जिसका साथ युक्त किया गया हो।
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सह-लगी  : स्त्री० [हिं० सगा+लगना] १. किसी बहुत सगापन दिखाने की क्रिया या भाव। बहुत अधिक आत्मीयता या आपसदारी दिखलाना। २. खुशामद।
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सह-लगी  : पु० [हि० साथ+लगना] वह जो चलते समय किसी के साथ हो ले। रास्ते का साथी। हमराही।
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सह-वास  : पुं० [सं०] १. किसी के साथ रहना। २. एक ही घर में दो परिवारों का या एक ही कमरे में दो विद्यार्थियों, कर्मियों आदि का मिलकर रहना। २. मैथुन। संभोग।
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सहकर्मी (र्मिन्)  : वि० [सं०] १. (वह) जो किसी के साथ काम करता हो। किसी के साथ मिलकर काम करनेवाला। २. किसी कार्यालय संस्था आदि में जो साथ-साथ मिलकर काम करते हों। (कॉलीग, उक्त दोनों अर्थों में)।
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सहकार  : पुं० [सं०] १. सुगंधित पदार्थ। २. आम का वृक्ष। ३. एक दूसरे के कार्यों में सहयोग करना। ४. औरों के साथ मिलकर काम करने की वृत्ति, क्रिया या भाव। सहयोग। (कोऑपरेशन)। ५. दे० ‘सहकर्मी’।
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सहकार-समिति  : स्त्री० [सं०] वह समिति या संस्था जो कुछ विशेष प्रकार के उपभोक्ता, व्यवसायी आदि आपस में मिलकर सब के हित के लिए बनाते हैं और जिसके द्वारा वे कुछ चीजें बनाने-बेचने आदि की व्यवस्था करते हैं। (कोआपरेटिव सोसाइटी)।
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सहकारता  : स्त्री० [सं० सहकार+तल्-टाप्]=सहकारिता।
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सहकारिता  : स्त्री० [सं०] १. साथ मिलाकर काम करना। सहकारी। होना। (कोऑपरेशन)। २. सहकारी या सहायक होने का भाव। ३. मदद। सहायता।
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सहकारी  : वि० [सं०] १. सहकार संबंधी। सहकार का। २. सहकारिता संबंधी। ३. (व्यक्ति) जो साथ-साथ काम करते हों तथा एक दूसरे के कार्यों में सहायता करते हों। ४. सहायक। मददगार।
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सहगण  : पुं० [सं०]=संश्रय।
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सहगवन  : पुं०=सहगमन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहंगा  : वि० [हि० महँगा का अनु] [स्त्री० महँगी, भाव० सहँगापन] सस्ता। उदाहरण—मनि, मानिक सहंगे तन जल नाज।—तुलसी।
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सहगामिनी  : स्त्री० [सं० सह√गम् (जाना)+णिनि-ङीप्] १. वह स्त्री जो मृत पति के शव के साथ सती हो। पति की मृत्यु पर उसके साथ जल मरनेवाली स्त्री। २. पत्नी। ३. सहचरी।
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सहगामी (मिन्)  : वि० [सं० सह√गम् (जाना)+णिनि] [स्त्री० सहगामिनी] १. साथ चलनेवाला। साथी। २. अनुयायी।
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सहगौन  : पुं०=सहगमन।
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सहचर  : वि० [सं०] [स्त्री० सहचरी] १. साथ साथ चलनेवाला। २. उठने-बैठने चलने-फिरने आदि में प्रायः साथ रहनेवाला। साथी। पुं० १. मित्र। २. सेवक।
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सहचरी  : स्त्री० [सं० सह√चर् (चलना)+ङीष्] १. सहचर का स्त्री० रूप। २. साथ रहनेवाली स्त्री। ३. पत्नी। भार्या।
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सहचार  : पुं० [सं०] १. दो या अधिक व्यक्तियों का साथ चलना। २. वह अवस्था जिसमें व्यक्तियों, विचारों आदि में पूरी पूरी संगति होती है। (एसोसिएशन)। ३. सहचर। साथी।
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सहचार उपाधि लक्षणा  : स्त्री० [सं० सहचार-उपाधि, ब० स० लक्षणा मध्यम० स०] साहित्य में एक प्रकार की लक्षणा जिसमें जड़ सहचारी के कहने से चेतन सहचारी का बोध होता है।
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सहचारिणी  : वि० [सं०] १. साथ में रहनेवाली। सहचरी। २. पत्नी। भार्या।
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सहचारिता  : स्त्री० [सं० सहचारि-तल्-टाप्] सहचारी होने की अवस्था, गुण या भाव।
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सहचारित्व  : पुं० [सं० सहचारि+त्व]=सहचारिता।
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सहचारी (रिन्)  : वि० [सं०] [स्त्री० सहचारिणी] साथ चलने या रहनेवाला। पुं० १. संगी। साथी। २. नौकर। सेवक।
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सहज  : वि० [सं०] [स्त्री० सहजा, भाव० सहजता] १. गुण, तत्त्व, पदार्थ या प्राणी जो किसी के साथ उत्पन्न हुआ हो। जैसा—सहज कर्त्तव्य, सहज ज्ञान आदि। २. प्राकृतिक। स्वाभाविक। ३. जो सभी दृष्टियों से ठीक और पूरा हो। पूरी तरह और निर्विवाद रूप से ठीक और आदर्श। उदाहरण—मिलहि सो बर सहज सुन्दर साँवरो।—तुलसीदास। ४. जिसके प्रतिपादन या संपादन में कोई कठिनता न हो। सरल। सुगम। ५. जन्म से प्रकृति से साथ उत्पन्न होने अथवा अपने साधारण रूप में रहनेवाला। प्रकृत। (नार्मल)। ६. मामूली। साधारण। पुं० १. सगा भाई। सहोदर। २. प्रकृति। स्वभाव। ३. बौद्धों के अनुसार वह मानसिक स्थिति जो प्रज्ञा और उपाय के योग से उत्पन्न होती है। ४. फलित ज्योतिष में जन्म-लग्न से तृतीय स्थान जिसमें भाइयों, बहनों आदि का विचार किया जाता है। ५. दे० ‘सहज-ज्ञान’।
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सहज-ज्ञान  : पुं० [सं०] १. ऐसा ज्ञान जो जीव या प्राणी के जन्म से साथ ही उत्पन्न हुआ हो। प्रकृति-दत्त ज्ञान। सहज बुद्धि। (देखें) २. वह ज्ञान या चेतना शक्ति जिससे आत्मा सदा आनन्द और शांति से सम्पन्न रहती है।
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सहज-ध्यान  : पुं० [सं०] सहज समाधि (दे०)।
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सहज-बुद्धि  : स्त्री० [सं०] वह बुद्धि या समझ जो जीवों या प्राणियों में जन्म-जात होती है, और जिसके फलस्वरूप वे विशिष्ट अवस्थाओं में आप ही आप कुछ विशिष्ट प्रकार के आचरण और व्यवहार करते हैं। (इंस्टिक्ट) जैसा—स्तनपायी जंतुओं का अपने बच्चों को दूध पिलाना चिड़ियों का घोंसला बनाना आदि।
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सहज-मार्ग  : पुं० [सं०] सहजयान वाली साधना का प्रकार।
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सहज-मित्र  : पुं० [सं० कर्म० स०] ऐसे व्यक्ति जो प्रायः तथा स्वभावतः मित्रता का भाव रखते हों और जिनसे किसी प्रकार के अनिष्ट की आशंका न की जाती हो। विशेष—हमारे शास्त्रों में भानजा मौसेरा भाई और फुफेरा भाई सहज-मित्र और वैमात्रेय तथा चचेरे भाई सहज-शत्रु कहे गये हैं।
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सहज-यान  : पुं० [सं०] एक बौद्ध संप्रदाय जो हठयोग के कुछ सिद्धान्तों के अनुसार धार्मिक साधना करता था।
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सहज-यानी  : वि० [सं० सहज-यान] सहज-यान संबंधी। सहज यान का। पुं० वह जो सहज-यान संप्रदाय का अनुयायी हो।
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सहज-योग  : पुं० [सं०] ईश्वर के नाम के जप के रूप में की जानेवाली साधना जिसमें हठयोग आदि की कष्टदायक क्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती।
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सहज-शत्रु  : पुं० [सं० कर्म० स०] सौतेला या चचेरा भाई जो संपत्ति के लिए प्रायः झगड़ा करता है। (शास्त्र)
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सहज-शून्य  : पुं० [सं०] ऐसी स्थिति जिसमें किसी प्रकार का परिज्ञान, भावना या विकार नाम को भी न रह जाय।
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सहज-समाधि  : स्त्री० [सं०] १. बौद्ध तांत्रिकों और हठयोगियों के अनुसार वह स्थिति जिसमें मनुष्य समस्त ब्रह्मा आडंबरों से रहित होकर सरलतापूर्वक जीवन निर्वाह करता है। २. वह अवस्था जिसमें मनुष्य बिना समाधि लगाये जीते जी ईश्वर का साक्षात्कार करता है। जीवन्मुक्ति।
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सहज-सुदंरी  : स्त्री० [सं०] बौद्ध तन्त्र शास्त्र में चांडाली या सुषुम्ना नाड़ी का वह रूप जो उसे अपनी ऊर्ध्व गति से डोम्बी में पहुँचने पर प्राप्त होता है।
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सहजता  : स्त्री० [सं० सहज+तल्-टाप्] १. सहज होने की अवस्था, गुण या भाव। २. सरलता। आसानी।
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सहजधारी (धारिन्)  : पुं० [सं०] सिक्ख संप्रदाय में वह व्यक्ति जो सिर और दाढ़ी के बाल न बढ़ाता हो पर फिर भी गुरु ग्रंथ साहब का अनुयायी समझा जाता हो।
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सहजन  : पुं०=सहिजन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहजन्मा (न्मन्)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)  : वि० [सं०] १. किसी के साथ एक ही गर्भ से उत्पन्न। सहोदर। सदा (भाई आदि)। २. यमज। (सन्तान)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहजपंथ  : पुं० [हि० सहज+पंथ] पूर्वी भारत में प्रचलित एक गोड़ीय वैष्णव संप्रदाय जो बौद्ध तथा हिन्दू तांत्रिकों से प्रभावित है। विशेष—यह संप्रदाय मूलतः बौद्धों के सहजयान का एक विकृत रूप है।
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सहजवदी  : वि० [सं०] सहजवाद सम्बन्धी। सहजवाद का। पुं० वह जो सहजवाद का अनुयायी हो।
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सहजवाद  : पुं० [सं०] सहज पंथ या मत या सिद्धान्त।
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सहजस्थान  : पुं० [सं०] जन्म-कुंडली में का तीसरा घर, जिससे इस बात का विचार होता है कि किसी के कितने भाई या बहनें होगीं।
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सहजात  : वि० [सं०] १. जो किसी के साथ उत्पन्न हुआ हो। २. परस्पर वे जो एक ही माता-पिता से उत्पन्न हुए हों। (कान्जेनिटल)। ३. यमज। पुं० सगा भाई। सहोदर।
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सहजाधिनाथ  : पुं० [सं०] जन्म-कुंडली के सहज स्थान (तीसरे घर) का अधिपति ग्रह।
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सहजानंद  : पुं० [सं० सहज+आनन्द] वह आनन्द या सुख जो योगियों को सहजावस्था में पहुँच जाने पर मिलता है।
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सहजानि  : स्त्री० [सं०] पत्नी। भार्या। जोरू।
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सहजारि  : पुं० [सं०]=सहज शत्रु।
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सहजार्श  : पुं० [सं०] ऐसा अर्श या बवासीर (रोग) जिसके मस्से कठोर पीले रंग के और अंदर की ओर मुँहवाले हों (वैद्यक)।
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सहजावस्था  : स्त्री० [सं० सहज+अवस्था] योग-साधना में मन की वह अवस्था जिसमें वह पूर्ण रूप से सहज-शून्य (देखें) या इच्छा ज्ञान, विकार आदि से बिलकुल रहित हो जाता है।
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सहजिया  : पुं० दे० ‘सहजपंथी’।
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सहजीवन  : पुं० [सं०] १. सह देशों और राष्ट्रों के लोगों का आपस में मिल-जुलकर शांतिपूर्वक रहना और युद्ध आदि से बचना। (को-एग्जिस्टेन्स)। २. वनस्पति विज्ञान में अलग-अलग प्रकार के दो पेड़-पौधों (या एक पौधे और एक जीव) का इस प्रकार सटकर या एक दूसरे पर आश्रित और स्थित होकर रहना कि दोनों का एक दूसरे से पोषण हो (सिम्बायोसिस)। जैसा—मूंगा और उसके साथ रहनेवाला समुद्री जीव।
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सहजीवी (विन्)  : वि० [सं०] किसी के साथ रहकर जीवन बितानेवाला विशेष दे० ‘सहजीवन’।
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सहजेंद्र  : पुं० [सं०] ‘सहजाधिनाथ’ (दे०)।
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सहजै  : अव्य० [हि० सहज] बहुत सहज में। आसानी से। अनायास।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सहत  : पुं०=शहद। वि०=सस्ता(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)।
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सहत-महत  : पुं०=श्रावस्ति।
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सहतरा  : पुं० [फा० शाहतरह] पित्त पापड़ा। पर्पटक।
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सहता  : वि० [हि० सहना] [स्त्री० सहती] १. जो सहज में सहन किया जा सके। २. जो इतना गरम हो कि सहन किया जा सके। जैसा—सहते पानी से स्नान करना। वि०=सस्ता। उदाहरण—आँखिया के आँधर सूझत नाही दरुआ ले सहता बा धीउ।—बिरहा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहताना  : अ० [हि० सहता=सस्ता] सस्ता होना। अ०=सुस्ताना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सहतूत  : पुं०=शहतूत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहत्व  : पुं० [सं०√सह् (सहन करना)+अच्—त्व] १. सह अर्थात् साथ होने की अवस्था या भाव। २. एकता। ३. मेलजोल।
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सहदानी  : स्त्री० [सं० सज्ञान] स्मृति चिन्ह। निशानी। यादगार। उदाहरण—रैदास संत मिले मोहि सतगुरु दीन्ही सुरत सहदानी।—मीराँ।
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सहदूल  : पुं०=शार्दूल (सिंह)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहदेई  : स्त्री० [सं० सहदेवा] क्षुप जाति की एक पहाड़ी वनस्पति जिसका उपयोग ओषधि के रूप में होता है।
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सहदेवा  : पुं० [सं० ब० स० त० त० वा] १. राजा पांडु के पाँच पुत्रों में से सबसे छोटे पुत्र का नाम। २. जरासन्ध का एक पुत्र।
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सहदेवा  : स्त्री० [सं० सहदेव—टाप्] १. सहदेई। पीतपुष्पी। २. बरियाना। बला। ३. अनन्तमूल। ४. दंदोत्पल। ५. प्रियंगु। ६. नील। ७. सर्पाक्षी। ८. सोनाबली। ९. भागवत के अनुसार देवक की कन्या और वसुदेव की पत्नी का नाम।
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सहदेवी  : स्त्री० [सं० सह√दिव् (पूजन करना आदि)+अच्-ङीप्] १. सहदेई। पीतपुष्पी। २. सर्पाक्षी। हरहंटी। ३. महानीली। ४. प्रियंगु।
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सहदेवीगण  : पुं० [सं० ष० त०] वैद्यक में सहदेई बला, शतमूली, शतावर, कुमारी, गुडुच सिही और व्याघ्री आदि ओषधियों का वर्ग जिनसे देव-प्रतिमाओं को स्नान कराया जाता है।
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सहदेस  : वि० [?] स्वतन्त्र। उदाहरण—तासौ नेह जो दिढ़ करै थिर आछङि सहदेस।—जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहन  : पुं० [सं०] १. सहने की क्रिया या भाव। २. आज्ञा या निर्णय मानकर उसका पालन करना। (एबाइड)। ३. क्षमा। तितिक्षा। पुं० [अ०] १. घर के बीच का खुला भाग। आँगन। चौक। २. घर के सामने का और उससे संलग्न खुला भाग। ३. एक प्रकार का रेशमी कपड़ा। ४. गजी या गाढ़ा नाम का मोटा सूती कपड़ा।
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सहनक  : स्त्री० [अ०] १. एक प्रकार की छिछली रकाबी जिसका व्यवहार प्रायः मुसलमान लोग करते हैं। तबक। २. बीबी फातिमा की निमाज या फातिहा (मुसल)।
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सहनची  : स्त्री० [अ० सहन से स्त्री०, अल्पा० फा०] सहन या आँगन के इधर-उधर वाली छोटी कोठरी।
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सहनशील  : वि० [ब० स०] [भाव० सहनशीलता] (व्यक्ति) जिसमें अत्याचार, दुर्व्यवहार विपत्ति आदि सहन करने की स्वाभाविक क्षमता या प्रवृत्ति हो।
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सहनशीलता  : स्त्री० [सं० सहनशीलता+तल्—टाप्] १. सहनशील होने की अवस्था, गुण या भाव। २. संतोष। सब्र।
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सहना  : स० [सं० सहन] १. कोई अनुचित अप्रिय अथवा हानिकारक बात होने पर अथवा कष्ट आदि आने पर किसी कारण-वश चुपचाप अपने ऊपर लेना। विशेष—यद्यपि झेलना, भोगना और सहना बहुत कुछ समानार्थक समझे जाते हैं परन्तु तीनों में कुछ अन्तर है। झेलना का प्रयोग ऐसी विकट परिस्थितियों के प्रसंग में होता है जिसमें मनुष्य को अध्यवसाय और साहस से काम लेना पड़ता है। जैसा—विधवा माता ने अनेक कष्ट झेलकर लड़के को अच्छी शिक्षा दिलाई थी। भोगना का प्रयोग कष्ट या दुःख के सिवा प्रसन्नता या सुख के प्रसंगों में भी होता है, पर कष्टप्रद प्रसंगों में मुख्य भाव यह रहता है कि आया हुआ कष्ट या संकट दूर करने में हम असमर्थ है, इसीलिए विवशतापूर्वक सिर झुकाकर उसका भोग करते हैं। परन्तु सहना मुख्यतः मनुष्य की शक्ति पर आश्रित होता है। जैसा—इतना घाटा तो हम सहज में सह लेगें। सहना में मुख्य भाव यह है कि हम व्यर्थ की झंझट नहीं बढ़ाना चाहते मन की शांति नष्ट नहीं करना चाहते अथवा जानबूझकर उपेक्षा कर रहे हैं। जैसा—हम उनके सब अत्याचार चुपचाप सहते रहे। २. अपने ऊपर कोई भार लेकर उसका निर्वाह या वहन करना। ३. किसी प्रकार का परिणाम या फल अपने ऊपर लेना। अ० किसी वस्तु का ग्रहण। धारण या भोग करने पर उसका सह्य या अच्छी तरह फलदायक सिद्ध होना। जैसा—(क) यह नीलाम मुझे सह गया है। (ख) वह मकान उन्हें नही सहा। अ० हि० रहना के साथ प्रयुक्त होनेवाला उसका अनुकरण वाचक शब्द। जैसा—कहीं या किसी के साथ रहना-सहना। पुं० साहनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहनाइन  : स्त्री० [फा० शहनाई+आयन (प्रत्य)] शहनाई बजानेवाली स्त्री।
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सहनाई  : स्त्री०=शहनाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहनीय  : वि० [सं०√ सह (सहन करना)+अनीयर्] जो सहा जा सके। सहे जाने के योग्य। सह्य।
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सहपति  : पुं० [सं०] ब्रह्मा का एक नाम।
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सहपराधी  : पुं० [सं० सहपराध+इनि] किसी अपराध में मुख्य अपराधी का साथ देने और उस की सहायता करने वाला (व्यक्ति)। (एकाम्प्लिस
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सहपाठी (ठिन्)  : पुं० [सं०] [स्त्री० सहपाठिन] १. वे जो साथ साथ किसी गुरु से या किसी विद्यालय में पढ़ते हों या पढ़े हों। सहाध्यायी। २. जो एक ही कक्षा में पढ़ते हों। (क्लासफैलो, उक्त दोनों अर्थों में)।
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सहपिंड  : पुं० [सं० त० त०] कर्मकांड में सपिंड नाम की क्रिया।
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सहबा  : स्त्री० [अ०] एक प्रकार की अंगूरी शराब।
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सहभावी  : वि० [सं० सहभाविन्] सहवर्ती। पुं० १. सगा भाई। सहोदर। २. सहचर। साथी। ३. मददगार। सहायक।
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सहभू  : वि० [सं०] साथ-साथ उत्पन्न। सहजात।
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सहभोजी (जिन)  : पुं० [सं०] (वे) जो एक साथ बैठकर खाते हों। साथ भोजन करनेवाले।
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सहम  : पुं० [फा०] १. डर। भय। खौफ। २. लिहाज। ३. संकोच।
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सहमति  : स्त्री० [सं०] १. किसी बात या विषय में किसी से सहमत होने की अवस्था या भाव। २. किसी बात या विषय में कुछ या बहुत से लोगों का आपस में एकमत होना। (एग्रीमेन्ट)।
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सहमना  : अ० [फा० सहम+हिं० ना (प्रत्य०)] भय खाना। भयभीत होना। डरना। संयो० क्रि०—जाना।—पड़ना।
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सहमाना  : स० [हि० सहमना का स०] ऐसा काम करना जिससे कोई सहम जाय। भयभीत करना। डराना। संयो० क्रि०—देना।
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सहमृता  : वि० [सं० ब० स०] (स्त्री) जो अपने पति के शव के साथ सती हो जाय।
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सहयोग  : पुं० [सं० सह√युज् (मिलना)+घञ्] १. किसी के काम में योग देकर या सम्मिलित होकर उसका हाथ बटाना। किसी के साथ मिलकर उसके काम में सहायता करना। २. बहुत से लोगों के साथ मिलकर कोई काम करने का भाव। (कोआपरेशन) ३. सहायता।
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सहयोगवाद  : पुं० [सं० सहयोग√वद् (कहना)+घञ्] ब्रिटिश शासन में राजनीतिक क्षेत्र में सरकार से सहयोग अर्थात् उसके साथ मिलकर काम करने का सिद्धान्त। ‘असहयोगवाद’ का विपर्याय।
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सहयोगवादी  : वि० [सं० सहयोग√वद् (कहना)+णिनि] सहयोगवाद सम्बन्धी। पुं० सहयोगवाद का अनुयायी।
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सहयोगिता  : स्त्री० [सं० सहयोग+इतच्-टाप्, वृचि, मध्यम० स०] सहयोगी होने की अवस्था या भाव।
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सहयोगी  : वि० [सं० सह√युज् (मिलना)+णिनि, सहयोग+इनि, वा] १. सहयोग करने अर्थात् काम में साथ देनेवाला। साथ काम करनेवाला। २. समकालीन। ३. समवयस्क। पुं० १. वह जो किसी के साथ मिलकर कोई काम करता हो। सहयोग करनेवाला। साथ काम करनेवाला। २. ब्रिटिश शासन में असहयोग आन्दोलन छिड़ने पर सब कामों में सरकार के साथ मिले रहने उसकी काउंसिलों आदि मे सम्मिलित होने और उसके पद तथा उपाधियाँ आदि ग्रहण करनेवाला व्यक्ति।
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सहयोजन  : पुं० [सं०] [भू० कृ० सहयुक्त, सहयोजित्] १. साथ मिलाने की क्रिया या भाव। २. आज-कल वह रीति या व्यवस्था जिसके अनुसार किसी सभा या समिति के सदस्य ऐसे लोगों को भी अपने साथ सम्मिलित कर लेते हैं जो मूलतः निर्वाचित नहीं हुए होते, फिर भी जिनसे काम में सहायता मिलने की आशा होती है। (कोआप्शन)।
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सहयोजित  : भू० कृ० [सं०] आजकल किसीसभा-समिति का वह सदस्य जिसे दूसरे सदस्यों ने अपनी सहायता के लिए चुनकर अपने साथ सम्मिलित किया हो। (कोआप्टेड)।
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सहर  : स्त्री० [अ०] प्रातःकाल। सबेरा। पुं० १. =शहर। २. =सिहोर। (वृक्ष)। पुं० [अ० सेह्र] जादू। टोना।
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सहर-गही  : स्त्री० [अ० सहर+फा० गह] वह आहार जो किसी दिन निर्जल व्रत रखने से पूर्व प्रातः किया जाता है। सरघी। विशेष—मुसलमान रोजों में और सधवा हिन्दू स्त्रियाँ तीज, करवाचौथ आदि के दिन सहरगही खाती हैं।
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सहरना  : अ०=सिहरना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहरा  : पुं० [अ०] [वि० सहराई] १. वन। जंगल। २. चित्रकला में चित्र की वह भूमिका जिसमें जंगल, पहाड़ आदि दिखाये गये हों। ३. सियाहदोश नामक जंतु। पु० जे० ‘सेहरा’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहराई  : वि० [अ०] १. जंगली। वन्य। २. लाक्षणिक अर्थ में पागल।
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सहराज्य  : पुं० [सं०] ऐसा राज्य जिसमें दो या अधिक प्रभुसत्ताएँ अथवा राष्ट्र मिलकर शासन करते हों (कन्डोमीनियम)।
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सहराना  : स०=सहलाना। अ०=सिहरना।
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सहरिया  : पुं० [?] एक प्रकार का गेहूँ। वि०=शहरी (नागर)।
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सहरी  : स्त्री० [सं० शफरी] सफरी। मछली। शफरी। स्त्री०=सहर-गही।वि० [सं० सदृशी, प्रा० सरिसी] सदृश। समान। (राज०) उदाहरण—जूँ सहरी भ्रूह नयण मृग जूता।—प्रिथीराज। वि०=शहरी (नागर)।
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सहरुण  : पुं० [सं० ब० स०] चंद्रमा के एक घोड़े का नाम।
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सहल  : वि० [सं० सरल से अ] आसान। सरल।
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सहलाना  : स० [हि० सहर=धीरे] १. किसी अक्रिय, सुस्त या दुखते हुए अंग पर इस प्रकार धीरे-धीरे हाथ या उँगलियाँ फेरना तथा बार-बार रगड़ना कि उसमें चेतना या सक्रियता आ जाय अथवा सुख की अनुभूति हो। जैसा—किसी का हाथ, पैर या सिर सहलाना। २. प्यार से किसी पर हाथ फेरना। ३. मलना।
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सहवन  : पुं० [देश] एक प्रकार का तेलहन।
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सहवर्ती  : वि० [सं०] [स्त्री० सहवर्तिनी] किसी के साथ वर्तमान रहनेवाला। साथ में रहने या होनेवाला (कान्कामिटेंट)।
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सहवर्ती लिंग  : पुं० दे० लिंग (न्यायशास्त्र वाला विवेचन)।
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सहवाद  : पुं० [सं० सह√वद् (कहना)+घञ्] आपस में होनेवाला तर्कवितर्क। वाद विवाद। बहस।
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सहवासी (सिन्)  : वि० [सं० सहवासिन्] साथ रहनेवाला। पुं० संगी-साथी।
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सहव्रता  : स्त्री० [सं० ब० स०] पत्नी। भार्या। जोरू।
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सहस  : वि० पुं०=सहस्र (हजार)।
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सहस-बाहु  : पुं०=सहस्रबाहु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहसकिरन  : पुं०=सहस्र-किरण (सूर्य)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहसगो  : पुं०=सहस्रगु (सूर्य)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहसजीभ  : पुं०=सहस्रजिह्र (शेषनाग)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहसदल  : पुं०=सहस्रदल (कमल)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहसनयन  : पुं०=सहस्रनयन (इंद्र)।
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सहसफण  : पुं०=सहस्रफन (शेषनाग)।
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सहसबदन  : पुं०=सहस्रबदन (शेषनाग)।
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सहसंभव  : वि० [सं० ब० स०] जो एक साथ उत्पन्न हुए हों। सहज।
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सहसमुख  : पुं०=सहस्रमुख (शेषनाग)।
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सहसमेखी  : स्त्री० [सं० सहस्र+हि० मेख] युद्ध के समय हाथ में पहनने का एक प्रकार का प्राचीन दस्ताना जिसमें मखें लगी होती थी और जो कोहनी से कलाई तक का भाग ढकता था।
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सहससीस  : पुं०=सहस्रशीर्ष (शेषनाग)।
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सहसा  : अव्य० [सं०] १. इस प्रकार एकदम जल्दी से या ऐसे रूप में जिसकी पहले से आशा या कल्पना न की गई हो। अकस्मात्। अचानक। एकाएक। जैसा—वह सहसा उठकर वहाँ से चला गया। २. बिना विचारे उतावली से। जैसा—सहसा वह भी नदी में कूद पड़े। विशेष—सहसा में मुख्य भाव बिना कुछ सोचे-विचारे शीघ्रतापूर्वक कोई काम कर बैठने का है। जैसा—वह सहसा डरकर चिल्ला पड़ा। अकस्मात् में मुख्य भाव अकल्पित या अतर्कित रूप से कोई बात होने का है। जैसा—अकस्मात् डाकुओं ने आकर गोलियाँ चलानी शुरु कर दी। अचानक भी बहुत कुछ वही है जो अकस्मात् है फिर भी इसमें उग्रता और तीव्रतावाला तत्त्व अपेक्षया कम है। जैसा—अचानक घर में आग लग गई। एकाएक में किसी चलते हुए क्रम में एकदम से कोई नया परिवर्तन होने का प्रधान भाव है। जैसा—एकाएक आँधी चलने लगी, और आकाश में बादल घिर आए।
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सहसाक्षि  : पुं०=सहसाक्ष (इंद्र)।
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सहसाखी  : पुं०=सहस्राक्ष (इंद्र)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहसानन  : पुं०=सहस्रानन। (शेषनाग)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहस्त  : वि० [सं० अव्य० स०] १. हस्तयुक्त। २. हथियार चलाने में कुशल।
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सहस्त्रमौलि  : पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। अनंतदेव का एक नाम।
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सहस्र  : वि० [सं०] १. जो गिनती में दस सौ हो। हजार। २. लाक्षणिक अर्थ में अत्यधिक। जैसा—सहस्र धी। पुं० उक्त की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है।—१॰॰॰।
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सहस्र-किरण  : पुं० [सं०] सूर्य।
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सहस्र-चरण  : पुं० [सं० ब० स०] विष्णु।
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सहस्र-दंष्ट्रा  : स्त्री० [सं०] १. एक प्रकार की मछली जिसके मुँह में बहुत अधिक दाँत है। २. कुछ लोगों के मत से पाठीन नामक मछली।
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सहस्र-भागवती  : स्त्री० [सं०] देवी की एक मूर्ति।
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सहस्र-मूर्ति  : पुं० [सं० ब० स०] विष्णु।
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सहस्र-मूर्द्धा (र्द्धन्)  : पुं० [सं०] १. विष्णु। शिव।
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सहस्र-लोचन  : पुं० [सं० ब० स०] इंद्र।
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सहस्र-वीर्य  : वि० [सं० ब० स०] बहुत बड़ा बलवान। बहुत बड़ा ताकतवर।
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सहस्र-शिखर  : पुं० [सं० ब० स०] विंध्य पर्वत का एक नाम।
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सहस्र-शीर्ष (न्)  : पुं० [सं० ब० स०] विष्णु।
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सहस्र-श्रुति  : पुं० [सं० ब० स०] पुराणानुसार जंबूद्वीप का एक वर्ष पर्वत।
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सहस्रकर  : वि० [सं० सहस्र+कन्] १. सहस्र-सम्बन्धी। २. एक हजार वाला। पुं० एक ही प्रकार या वर्ग की एक हजार वस्तुओं का समाहार या कुलक।
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सहस्रकर  : पुं० [सं०] सूर्य।
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सहस्रगु  : पुं० [सं०] सूर्य।
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सहस्रचक्षु (स्)  : पुं० [सं०] इन्द्र।
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सहस्रचि (स्)  : वि० [सं० ब० स०] हजार किरणों वाला। पुं० सूर्य।
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सहस्रजित  : पुं० [सं०] १. विष्णु। २. मृगमद। कस्तूरी। ३. जांबवती के गर्भ से उत्पन्न श्रीकृष्ण का एक पुत्र।
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सहस्रणी  : पुं० [सं० सहस्र√नी (ढोना)+क्विप्] हजारों रथियों की रक्षा करनेवाले, भीष्म।
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सहस्रद  : पुं० [सं० सहस्र√दा (देना)+क] १. बहुत बड़ा दानी। २. हजारों गौएँ आदि दान करनेवाला बहुत बड़ा दानी। ३. पहिना या पाठीन मछली।
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सहस्रदल  : पुं० [सं० ब० स०] हजार दलोंवाला अर्थात् कमल।
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सहस्रदृश  : पुं० [सं०] १. विष्णु। २. इन्द्र।
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सहस्रधारा  : स्त्री० [सं०] देवताओं आदि का अभिषेक करने का एक प्रकार का पात्र जिसमें हजारो छेद होते हैं।
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सहस्रधी  : वि० [सं० ब० स०] बहुत बड़ा बुद्धिमान्।
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सहस्रधौत  : वि० [सं० मध्यम० स०] हजार बार धोया हुआ। पुं० हजार बार पानी से धोया हुआ घी जिसका व्यवहार औषध के रूप में होता है।
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सहस्रनयन  : पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। २. इन्द्र।
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सहस्रनाम  : पुं० [सं० ब० स० कम० स० व] वह स्तोत्र जिसमें किसी देवता या देवी के हजार नाम हों। जैसा—विष्णु सहस्रनाम शिव सहस्रनाम दुर्गा सहस्रनाम आदि।
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सहस्रनामा (मन्)  : पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। २. शिव। ३. अमलबेंत।
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सहस्रनेत्र  : पुं० [सं०] १. इन्द्र। २. विष्णु।
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सहस्रपति  : पुं० [सं० ष० त०] प्राचीन भारत में हजार गाँवों का स्वामी और शासक।
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सहस्रपत्र  : पुं० [सं०] कमलपत्र।
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सहस्रपाद  : पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। २. शिव। ३. महाभारत के एक ऋषि।
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सहस्रपाद  : पुं० [सं० ब० स०] १. सूर्य। २. विष्णु। ३. सारस पक्षी।
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सहस्रबाहु  : पुं० [सं० ब० स०] १. शिव। २. कार्तवीर्याजुन या हैहय का एक नाम। ३. राजा बलि के सबसे बड़े पुत्र का नाम।
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सहस्रभुज  : पुं०=सहस्रबाहु।
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सहस्रभुजा  : स्त्री० [सं० ब० स०] दुर्गा का हजार बाहों वाला वह रूप जो उन्होंने महिसासुर को मारने के लिए धारण किया था।
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सहस्रमूलिका, सहस्रमूली  : स्त्री० [सं०] १. कांडपत्री। २. बड़ौ दंती। ३. मूसाकाणि। ४. बड़ी शतवार। ५. मुदगपर्णी। बनमूँग।
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सहस्ररश्मि  : पुं० [सं० ब० स०] सूर्य।
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सहस्रशः (शस्)  : अ० [सं० सहस्+शस्] हजारों तरह से। वि० कई हजार। हजारों।
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सहस्रशाख  : पुं० [सं० ब० स०] वेद, जिसकी हजार शाखाएँ हैं
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सहस्रसाव  : पुं० [सं० ब० स०] अश्वमेघ यज्ञ।
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सहस्रा  : स्त्री० [सं० सहस्त्र—टाप्] १. मात्रिका। अंबष्टा। मोइया। २. मयूरशिखा।
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सहस्रांक  : पुं० [सं० ब० स०] सूर्य।
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सहस्राक्ष  : विं० [सं० ब० स०] हजार आँखोंवालापुं० ब्रह्मा। १. इंद्र। २. विष्णु ३. उत्पलाक्षी देवी का पीठ स्थान। (देवी भागवत)
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सहस्राधिपति  : पुं० [सं० ष० त०] प्राचीन भारत में वह अधिकारी जो किसी राजा की ओर से एक हजार गाँवों का शासन करने के लिए नियुक्त होता था।
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सहस्रानन  : पुं० [सं० ब० स०] विष्णु।
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सहस्राब्दि  : स्त्री० [सं०] किसी संवत या सन के हर एक से हर हजार तक के वर्षों अर्थात दस शताब्दियों का समूह। (माइलीनियम)
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सहस्रायु  : वि० [सं० ब० स०] हजार वर्ष जीने वाला।
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सहस्रार  : पुं० [सं० ब० स०] १. हजार दलों नावा एक प्रकार का कल्पित कमल। २. जैन पुराणों के अनुसार बारहवें स्वर्ग का नाम। ३. ङठयोग के अनुसार शरीर के अंदर के आठ कमलों या चक्रों में से एक जो हजार दलों का माना गया है। इसका स्थान मस्तक का भपरी भाग माना जाता है। इसे शून्य चक्र भी कहते है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार यह विचार शक्ति और शरीर का विकास करने वाली ग्रंथियों का केंद्र है।
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सहस्रावर्ता  : स्त्री० [सं० सहस्रावर्त्ता—टाप्] १. देवी की एक मूर्ति।
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सहस्रांशु  : पुं० [सं० ब० स०] सूर्य।
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सहस्राशुज  : पुं० [सं० सहस्त्रशु√जन् (उत्पन्न करना)+ड] शनिग्रह।
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सहस्रास्य  : पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। २. अनंत नामक नाग।
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सहस्रिक  : वि० [सं० सहस्र+ठन्—इक] हजार वर्ष तक चलता रहने या होने वाला।
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सहस्री (स्रिन)  : पुं० [सं० सहस्त्र+इनि] वह वीर या नायक जिसके पास हजार योद्धा, घोड़े, हाथी आदि हों। स्त्री० एक ही तरह की हजार चीजें या वर्ग का समूह।
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सहस्रेक्षण  : पुं० [सं० ब० स०] इंद्र।
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सहा  : स्त्री० [सं०√सह् (सहन करना)+अच्—टाप] १. घी-कुआरा। ग्वारपाठा। २. बनमूँग। ३. दंडोत्पल। ४. सफेद कट सरैया। ५. कंघी या ककही नामक वृक्ष। ६. सर्पिणी। ७. रासना। ८. सत्यानाशी। ९. सेवती। १॰. हेमंत ऋतु। ११. अगहन मास। १२. मषवन। १३. देवताड़ का वृक्ष। १४. मेंहदी।
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सहाई  : स्त्री०=सहयता। वि०=सहायक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहाई  : वि० [सं० सहाय्य] सहयक। मददगार। उदा०—नैन सहाई पलक ज्यों देह सहाई हाथ। स्त्री०=सहायता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहाउ  : वि०, पुं०=सहाय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहाध्यायी (यिन्)  : वि० [सं० सह-आ-अधि√ई (पढ़ना)+णिनि] जिसमें किसी के साथ अध्ययन किया हो। सहपाठी। पुं० साथ-साथ अध्ययन करने वाले शिक्षार्थी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहाना  : स० [सं० सहना का स०] ऐसा काम करना जिससे किसी को कुछ सहना पड़े। पुं०=शहाना (राग)।
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सहानी  : वि० स्त्री०=शहानी।
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सहानुगमन  : पुं०=सहगमन। (दे०)
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सहानुभूति  : स्त्री० [सं० सह-अनु√ भू० (होना)+क्तिन] १. ऐसी अनुभूति जो साथ-साथ दो या अधिक व्यक्तियों को हो। २. वह अवस्था जिसमें मनुष्य दूसरे की अनुभूति (विशेषतः कष्टपूर्ण अनुभूति) का अनुभव शुद्ध हृदय से करता है ओर उससे उसी प्रकार प्रभावित होता है जिस प्रकार दूसरा व्यक्ति हो रहा हो। (संवेदना। हमदर्दी। (सिम्पेथी) ३. अनुकमपा। दया।
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सहानुसरण  : पुं० [सं० सह-अनु√सह् (गत्यादि)+ल्युट्-अन] सहानुगमन (सह-गमन)।
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सहाब  : पुं०=शहाब।
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सहाबी  : पुं० [सं०] [स्त्री सहाबिया] वो लोग जो मुहम्मद साहब के उपदेश से मुसलमान हो गये थे और मरण पर्यत इस्लाम धर्म को मानते रहे।
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सहाय  : वि० [सं०] सहयता करने वाला। पुं० १. वह जो दूसरों की सहयता करता हो। और उसके कष्ट दुख दूर करता हो। २. साथी। अनुयायी। ४. सहायता। ५. आश्रय। सहायता ६. एक प्रकार का हंस। ७. एक प्रकार की वनस्पति।
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सहायक  : वि० [सं०] १. किसी की सहायता करने वाला। जैसे—दुःखसुख में अपने ही सहायक होते हैं। २. कार्य, प्रयोजन आदि के संपादन या सिद्धि में योग देने वाला। जैसे पढ़ने में आँखे ही सहयक होंगी। ३. (वह अधिकारी या कर्मचारी) जो किसी उच्च अधिकारी के आधीन रहकर उसके कार्यों के सपादन में योग देता हो। जैसे—सहायक मंत्री, सहायक संपादन। ४. किसी के साथ मिलकर उसका वृद्धि करने वाला। जैसे—सहायक आजीविका। सहायक नदी।
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सहायक नदी  : स्त्री० [सं०] भूगोल में किसी बड़ी नदी मे आकर मिलने वाली कोई छोटी नदी। (ट्रिब्यूटरी)
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सहायता  : स्त्री० [सं०] १. सहाय होने की अवस्था या भाव २. उद्योग या प्रयत्न जो दूसरे का काम संपादित करने या सहज बनाने के निमित्त किया जाता है। जैसा—उसने उन्हे पुस्तक लिखने में सहायता दी। ३. अभावग्रस्त का आभाव दूर करने के लिए उसे दिया जाने वाला धन या अनुदान। जैसे—सरकारी सहायता से यह उद्योग चल रहा है। ४. अनाथों, निर्धनों आदि को निर्वाह या भरण पोषण के लिए दिया जाने वाला धन या वस्तुएँ।
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सहायन  : पुं० [सं० सह√अच् (गत्यादि)+ल्युट्—अन√ इण (गत्यादि)+ल्युट्-अन वा] १. साथ चलना या जाना। २. साथ देना। ३. सहायता करना।
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सहायी  : वि०=सहायक। स्त्री०=सहायता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहार  : पुं० [सं० सह√ऋ (गमनादि)+अच् त० त० वा] १. आम का पेड़। सहकार। २. महा प्रलय। स्त्री० [हिं० सहारना] १. सहारने की क्रिया या भाव २. सहनशील-लता। जैसे—अब उनमे कष्ट सहने की सहार नहीं रह गई।
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सहारना  : स० [सं० सहन या हिं० सहारा] १. सहन करना। २. बरदाश्त करना। सहना। ३. किसी प्रकार का भार अपने ऊपर लेकर उसे सँभाले रहना। ४. त्पात, कष्ट आदि होने पर उसकी ओर ध्यान न देना। गवारा करना।
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सहारा  : पुं० [हिं० सहारना] १. कोई ऐसा तत्व या बात जिससे कष्ट आदि सहन करने या कोई बड़ा काम करने में सहायता मिलती हो या कष्ट की अनुभूति कम होती है। २. ऐसी वस्तु या व्यक्ति जिसपर किसी प्रकार का भार सहज में रखा जा सके और जो भार सह सके। ऐसा कोई तत्व या बात जिससे किसी प्रकार का आश्वासन मिलता हो। क्रि० प्र०—देना।—पाना।—मिलना।
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सहारिया  : वि०, पुं०=सहराई। उदा०—गाँव क्या था सहारियों की पर्ण-कुटीरों का समूह।—वृंदावनलाल वर्मा।
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सहार्थ  : वि० [सं०] १. समान अर्थ रखने वाले। २. समान उद्देश्य रखने वाले। पुं० १. आनुषंगिक विषय। २. सहयोग।
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सहार्द  : वि० [सं० तृ० त०] स्नेहयुक्त।
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सहार्ह  : वि० [सं० सह (न)+अर्ह] जो सहन किया जा सके। योग्य।
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सहालग  : पुं० [सं० सह+लग] १. वह वर्ष जो हिंदुओं ज्योतिषियों के मत से शुभ माना जाता हो। २. फलित ज्योतिष के अनुसार वे दिन जिनमें विवाहल आदि शुभ कृत्य किये जा सकते हों।
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सहावल  : पुं०=साहुल (सीध नापने का उपकरण)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहांश  : पुं० [सं० शह+अंश] किसी और के सात रहने या होने पर मिलने वाला अंश या भाग।
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सहांशी  : पुं० [सं० सह+अंशी] वह जो किसी के साथ किसी प्रकार के लाभ या संपत्ति में अपना भी अंश या हिस्सा पाने का अधिकारी हो। साझीदार (कोशेयरर)।
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सहासन  : वि० [स० सह+आसन] १. किसी के साथ उसके बराबर के आसन पर बैठने वाला। २. साथ बैठने वाला। पुं० १. बराबरी का हिस्से दार। उदाःसहासन का भाग छीनकर दो मत निर्जन मत बन को।—दिनकर।
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सहि  : वि०=सभी। उदाःसमाचार इणि माहि सहि।—प्रिथीराज।
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सहिक  : वि० [सं० सह+हिं० इक (प्रत्य०)] १. जो सचमुच वर्तमान हो। सत्ता से युक्त। वास्तविक। २. जिसमें कोई विशिष्ट तत्व या भाव वर्तमान हो। ३. जिसमें किसी प्रकार की दुविधा या संकोच न हो। ठीक और निश्चित। ४. (कथन या मत) जो निश्चित और स्पष्ट रूप से प्रतिपादित या प्रस्थापित किया गया हो। ठीक मानकर और साफ-साफ कहा हुआ। ५. गणित में शून्य की अपेक्षा अधिक जो ‘धन’ कहलाता है। ६. (प्रतिकृति या मूर्ति।) जिसमें मूल के समान ही छाया या प्रकाश हो। जो उलटा न जान पड़े। सीधा। ‘नहिक’। का विपर्याय। (पॉजिटिव उक्त सभी अर्थों के लिए) पुं० १. ऐसा कथन या बात जिसमें किसी सत्व, मत या सिद्धांत का निश्चित रूप से निरूपण या प्रस्थापन किया गया हो। ठीकमानकर दृढता पूर्वक कही गई बात। २. किसी विषय, निश्चय आदि का वह अंश या पक्ष जिसमें उक्त प्रकार का निरूपण या प्रस्थापन हो। ३. ऐसी प्रतिकृति या मूर्ति जिसमें मूल की छाया के स्थान पर छाया और प्रकाश के स्थान पर प्रकाश हो। ऐसी नकल जो देखने में सीधा जान पड़े, उलटी नहीं। ४. छाया चित्र में नहिक शीशे पर से कागज पर छपी हुई वह प्रति जो मूल के ठीक अनुरूप होती है। नहिक का विपर्याय। (पॉज़िटिव, उक्त सभी अर्थों के लिए)
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सहिकता  : स्त्री० [हिं० सहिक+ता (प्रत्य०)] सहिक होने की अवस्था या भाव। (पॉज़िटिविटी, पाँजिटिवनेस)
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सहिंजन  : पुं०=सहिजन।
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सहिजन  : पुं० [सं० शोभंजन] एक प्रकार का बड़ा वृक्ष जिसकी लंबी फलियाँ तरकारी अचार आदि बनाने के काम आती हैं। मुनगा।
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सहिजनी  : स्त्री० [सं० सज्ञान] निशानी। चिन्ह। पहचान। (दे० ‘सहदानी’)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहित  : अव्य० [सं० सह से] (किसी के) साथ। समेत। वि० १. किसी के साथ मिला हुआ युक्त। विशेष—सहित और युक्त में मुख्य अंतर यह है कि सहित का प्रयोग तो प्रायःक्रिया विशेषण पदों में होता है और युक्त का विशेषण पदों में। जैसे—(क) चतुर्थाँश सहित दे-दो। (ख) चतुर्थाँशयुक्त रूप। २. (प्राणायाम) जिसमें पूरक और रेचक दोनों क्रियाएँ की जाती हैं। (‘केवल’ से भिन्न) भू० कृ० [सं० सहन से] जो सहन किया गया हो। सहा हुआ।
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सहितव्य  : पुं० [सं सहित+त्व] सहित का धर्म या भाव।
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सहितव्य  : वि० [सं०√सह् (सहन करना)+तव्य] सहन होने के याग्य। जो सहा जा सके। सह्य।
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सहिथी  : स्त्री० [?] बरछी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहिदान  : पुं०=सहदानी (निशानी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सहिदानी  : स्त्री०=सहदानी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहिरिया  : स्त्री० [देश०] वसंत ऋतु की वह फसल जो बिना सींचे हुए होती है।
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सहिष्णु  : वि० [सं०√सह् (सहन करना)+इणुच्] जो कष्ट या पीड़ा आदि सहन कर सके। बरदाश्त करने वाला। सहनशील।
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सहिष्णुता  : स्त्री० [सं०] सहिष्णु होने की अवस्था, गुण या भाव। सहनशीलता।
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सही  : वि० [अ० सहीह] जिसमें किसी प्रकार का झूठ या मिथ्यात्व नहो। यथार्थ। वास्तविकता। २. सच। सत्य। ३. जिसमें कोई त्रुटि, दोष या भुल न हो। बिलकुल ठीक। जैसे—यह इस हिसाब का सही जवाब है स्त्री० १. किसी बात को मान्य, यथार्थ या सत्य होने की सक्षी के रूप में किया जाने वाला हस्ताक्षर। दस्तखत। २. किसी बात की प्रामाणिकता या मान्यता का सूचक कथन। उदाः ब्रह्मा वेद सही कियो, सिव जोग पसारा हो।—कबीर। मुहा—(किसी कथन या बात की।) सही भरना=सत्यता की साक्षी देना। यह कहना कि हाँ यह बात ठीक है। उदा—नहीं भरी लोमस भुसुंडि बहु बारिखौ।—तुलसी। ३. किसी बात की प्रामाणिकता या उसके फलस्वरूप होने वाली मान्यता। जैसे-चुप रहने की सही नही। ४.प्रामाणिकता, मान्यता या शुद्धता सूचक शब्द। चलो, सही सही। अव्य-[सं०सहन, हिं०सहना या सं०सिद्ध] एक अव्यय जो विशिष्ट प्रसंगो में वाक्य के अंत में आकर ये अर्थ देता है। (क) कोई बात सुनकर मान या सह लेना। जैसे-अच्छा यह भी सही है। (ख) अधिक नही तो इतना अवश्य। जैसे-आप वहाँ चलिए तो सही (ग) कोई असंभावित बात होने पर कुछ जोर देते हुए आश्चर्य प्रकट करना। जैसे-फिर भी आप वहाँ गये सही। उदाःप्रभु आसुतोष कृपालू शिवअबला निरखि बोले सही।—तुलसी। स्त्री०=सखी। (राज०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहीफा  : पुं० [अ० सहीफ़ः] १. ग्रन्थ। पुस्तक। २. चिट्ठी। पत्र। ३. सामयिक पत्र।
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सहुँ  : अव्य। [सं० सन्मुख] १. सन्मुख। सामने। २. ओर। तरफ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सहु  : वि० [स० सर्व+ही] सभी। उदा०—मन पुंथियाँ सहु सेन मुरछित।—प्रिथीराज।
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सहुह  : पुं० [सं० सह्व] भूल-चूक। अपराध। दोष। उदा०—सहुह दूरि देखै ता भउ पवै।
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सहूलत  : स्त्री०=सहूलियत।
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सहूलियत  : स्त्री० [अ० सहूलत] १. आसानी। सुगमता। २. सुभीता। ३. शिष्टता और सभ्यतापूर्वक आचरण करने की कला और पात्रता। जैसे—अब तुम सयाने हुए, कुछ सहूलियत सीखो।
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सहृदय  : वि० [सं०] [भाव० सहृदयता] १. (व्यक्ति) जो दूसरे के सुख-दुःख की अनुभूति करता हो। २. कोमल गुणों से युक्त हृदयवाला। ३. काव्य, साहित्य आदि के गुणों की परख रखने और उसकी विशेषताओं से प्रभावित होनेवाला। साहित्य का अधिकारी और योग्य पाठक। रसिक। ४. अच्छे गुणों और स्वभाववाला। भला। सज्जन। ५. प्रायः या सदा प्रसन्न रहनेवाला।
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सहृदयता  : स्त्री० [सं० सहृदय+तल्—टाप्] १. सहृदय होने की अवस्था, गुण या भाव। २. वह कार्य या बात जो इस तथ्य की सूचक हो कि व्यक्ति सहृदय है। सहृदय व्यक्ति का कोई कार्य।
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सहेज  : पुं० [देश०] वह दही जो दूध जमाने के लिए उसमें डाला जाता है। जामन।ष स्त्री० [हिं० सहेजना] १. सहेजने की क्रिया या भाव। २. चीजें सहेज कर रखने की प्रवृत्ति या स्वभाव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहेजना  : स० [अ० सही ?] १. कोई चीज लेने के समय अच्छी तरह देखना कि वह ठीक या पूरा है या नहीं। जैसे—कपड़े, गहने या रुपए सहेजना। संयो० क्रि०—लेना। २. अच्छी तरह दिखला या बतलाकर कोई चीज किसी को सौंपना। सुपुर्द करना। जैसे—सब चीजें उन्हें सहेज देना। संयो० क्रि०—देना।
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सहेजवाना  : स० [हिं० सहेजना का प्रे०] सहेजने का काम दूसरे से कराना।
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सहेट  : पुं०=सहेत। उदा०—भवन तें निकसि वृषभानु की कुमारी देख्यो ता समै सहेट को निकुंज गिर्यों तीर को।—मतिराम।
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सहेत  : पुं० [सं० संकेत] वह निर्दिष्ट एकान्त स्थान जहाँ प्रेमी और प्रेमिका मिलते हैं। अभिसार का पूर्व निर्दिष्ट स्थान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहेतु  : वि०=सहेतुक।
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सहेतुक  : वि० [सं० ब० स०] जिसका कोई हेतु हो। जिसका कुछ उद्देश्य या मतलब हो। जैसे—जहाँ यह पद सहेतुक आया है, निर्रथक नहीं है।
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सहेलरी  : स्त्री०=सहेली। उदा०—विजन-मन-मुदित सहेलरियाँ।—निराला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सहेली  : स्त्री० [सं० सह=हिं एली (प्रत्य०)] १. साथ में रहनेवाली स्त्री। संगिनी। २. परिचारिका। दासी। (क्व०) ३. सखी। ४. गौरैया की तरह की की काले रंग की एक प्रकार की छोटी चिड़िया।
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सहैया  : वि० [हिं० सहाय] सहायता करनेवाला। सहायक। वि० [हिं० सहना] १. सहनेवाला। २. सहनशील।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सहो  : पुं० [अ० सहव] १. अपराध। दोष। २. भूल-चूक। गलती।
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सहोक्ति  : स्त्री० [सं०] साहित्य में, एक अलंकार जिसमें ‘सह’ ‘संग’ ‘साथ’ आदि शब्द इस प्रकार प्रयुक्त होते हैं कि किसी क्रिया के (क) एक कार्य के साथ और भी कई कार्यों का होना सूचित होता है। जैसे—रात्रि के समय तुम्हारे मुख के साथ ही चंद्रमा भी सुशोभित हो जाता है अथवा (ख) कोई श्लिष्ट शब्द इस प्रकार प्रयुक्त होता है कि अलग अलग प्रसंगों में अलग अलग अर्थ देता है। (कनेक्टेड डेस्क्रिप्शन) जैसे—यौवन में उसके ओष्ठ तथा प्रिय दोनों साथ ही रागयुक्त (क्रमात् लाल और प्रेमपूर्ण या अनुरक्त) हो गये। उदा०—बल प्रताप वीरता बड़ाई। नाक पिनाकी संग सिधाई।—तुलसी।
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सहोढ़  : पुं० [सं०] १. वह चोर जो चोरी के माल के साथ पकड़ा गया हो। २. धर्मशास्त्र में, बारह प्रकार के पुत्रों में से वह जो गर्भवती कन्या के सात विवाह करने पर विवाह के उपरांत उत्पन्न होता है।
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सहोदक  : वि० [सं० ब० स०] समानोदक।
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सहोदर  : वि० [सं० ब० स०] [स्त्री० सहोदरा] १. (जन्म के विचार से वे) जो एक ही माता के उदर या गर्भ से उत्पन्न हुए हों। २. सम्बन्ध के विचार से अपना और सगा। पुं० १. सगा भाई। २. वैज्ञानिक क्षेत्रों में, वे सब जो एक ही मूल से उत्पन्न हुए हों और जिनमें परस्पर रक्त या वंश का सम्बन्ध हो। एक ही कुल या वंश के सदस्य।
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सहोपमा  : स्त्री० [सं० ब० स०, मध्य० स० वा] साहित्य में, उपमा अलंकार का एक प्रकार या भेद।
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सहोर  : पुं० [सं० शाखोट] एक प्रकार का जंगली वृक्ष।
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सह्य  : वि० [सं०] १. जो सहा जा सके। जो सहन हो सके। २. आरोग्य। ३. प्रिय। पुं०=सह्याद्रि।
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सह्याद्रि  : पुं० [सं० मध्यम० स०] वर्तमान महाराष्ट्र राज्य की एक पर्वत-माला।
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