शब्द का अर्थ
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					सांत					 :
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					वि० [सं० सांत] अंत से युक्त। जिसका अंत या सीमा हो। ‘अनंत’ का विपर्याय। वि०=शांत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सांत-सभा					 :
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					स्त्री० [सं०] १. सामंतों की सभा। २. इग्लैण्ड में सामंती की सभा, जिसके बहुत कुछ अधिकार भारतीय राज्यसभा के समान है। (ङाउस आफ़ लार्डस्)				 | 
			
			
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					सांततिक					 :
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					वि० [सं० संतति+ठञ्—इक] संतति पदान करनेवाला।				 | 
			
			
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					सांतपन कृच्छु					 :
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					पुं० [सं०] एक प्रकार का व्रत जिसमें व्रत करनेवाला भोजन त्यागकर पहले दिन गोमूत्र, गोमय, दूध, दही और घी को कुश के जल में मिलाकर पीता और दूसरे दिन उपवास करता है।				 | 
			
			
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					सांतर					 :
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					वि० [सं० तृ० त०] १. अन्तरा अवकाश से युक्त। २. झीना।				 | 
			
			
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					सांतानिक					 :
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					वि० [सं० संतान+ठक्—इक] संतान-संबंधी। संतान या औलाद का।				 | 
			
			
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					सांतापिक					 :
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					वि० [सं० संताप+ठक्+इक] संताप देने या उत्पन्न करनेवाला।				 | 
			
			
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					सांति					 :
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					स्त्री०=शांति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सांतीड़ा					 :
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					पुं० [हिं० साँड़?] बिगड़ैल बैल को नाथने का मजबूत और मोटा रस्सा। उदा०—सतना सांतीड़ा समधावी।—गोरखनाथ।				 | 
			
			
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					सांत्वन					 :
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					पुं० [सं०√सांत्व् (अनुकूल करना)+ल्युट्—अन] १. किसी दुःखी को सहानुभूतिपूर्वक शांति देने की क्रिया। आश्वासन। ढारस। २. आपस में स्नेहपूर्वक होनेवाली बात-चीत। ३. प्रणय। प्रेम। ४. मिलन। मिलाप।				 | 
			
			
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					सांत्वना					 :
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					स्त्री० [सं० सांत्वन—टाप्] १. दुःखी, शोकाकुल या संतप्त व्यक्ति को शांत करने तथा समझाने-बुझाने की क्रिया। २. किसी को यह समझाना कि जो कुछ हो गया है या बिगड गया वह अनिवार्य था। अब साहस तथा धैर्य से उसका परिमार्जन किया जा सकता है। ३. उक्त आशय की सूचक उक्ति या कथन। ४. चित्त की शांति और स्वस्थता। ५. प्रणय। प्रेम।				 | 
			
			
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					सांत्ववाद					 :
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					पुं० [सं०√सांत्व (अनुकूल करना)+अच्√वद् (कहना)+घञ् उप० स०] वह बात जो किसी को सांत्वना देने के लिए कही जाय। सांत्वना का वचन।				 | 
			
			
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					सांत्वित					 :
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					भू० कृ० [सं०√सांत्व् (अनुकूल करना)+क्त] जिसे सांत्वना दी गई हो या मिली हो।				 | 
			
			
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