शब्द का अर्थ
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सुष :
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पुं०=सुख।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
सुषम :
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वि० [सं० पं० त०] १. बहुत सुन्दर। सुषमा—पूर्ण २. तुल्य। समान। |
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सुषम—प्राषमा :
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स्त्री० [सं०] जैन मतानुसार काल—चक्र के दो आरे। |
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सुषमना :
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स्त्री०=सुषुम्ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सुषमनि :
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स्त्री०=सुषुम्ना। पुं०=सुखमणि (सिक्खों का धर्म ग्रंथ)। |
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सुषमा :
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स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. परम शोभा। अत्यन्त सुन्दरता। २. विशेषतः नैसर्गिक शोभा। प्राकृतिक सौन्दर्य। ३. एक प्रकार का छन्द या वृत्त। ४. एक प्रकार का पौधा। ५. जैनों के अनुसार काल का एक नाम। |
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सुषमित :
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भू० कृ० [सं० सुषमा+इतच्] सुषमा से युक्त। |
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सुषाढ़ :
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पुं० [सं० ब० स०] शिव का एक नाम। |
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सुषाना :
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अ०=सुखाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सुषारा :
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वि०=सुखारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सुषि :
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स्त्री० [सं० सु√सो (विनाश करना)+कि बाहु०√शुष् (सोखना)+इनिश=पृषो० स०] [भाव० सुषित्व] १. छिद्र। छेद। सूराख। २. शरीर अथवा किसी तल पर के वे छोटे—छोटे छेद जिसमें से होकर तरल पदार्थ अन्दर पहुँचते या बाहर निकलते हैं। |
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सुषिक :
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पुं० [सं० सुषि+कन्] शीतलता। ठंढक। वि० ठंढा। शीतल। |
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सुषिम :
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वि० पुं०=सुषीम। |
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सुषिर :
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वि० [सं०√शुष् (शोषण करना)+किरच् श=स पृषो०] छेदों या सूराखों से भरा हुआ। पुं० १. छेद। २. दरार। ३. फूँककर बजाया जानेवाला बाजा। ४. वायु—मंडल। ५. अग्नि। ६. लकड़ी। ७. बाँस। ८. लौंग। ९. चूहा। |
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सुषिरच्छेद :
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पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार की वंशी। |
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सुषिरत्व :
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पुं० [सं० सुषिर+त्व] दे० ‘छिद्रलता’। |
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सुषिरा :
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स्त्री० [सं० सुषिर–टाप्] १. कलिका। विद्रुम लता। २. दरिया। नदी। |
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सुषीम :
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पुं० [सं० सुशीम=+पृषो०] १. एक प्रकार का साँप। २. चन्द्रकान्त मणि। वि० १. मनोहर। सुन्दर। २. ठंढा। शीतल। |
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सुषुपु (स्) :
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वि० [सं०] सोने की इच्छा करनेवाला। निद्रातुर। |
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सुषुप्त :
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भू० कृ० [सं० सु√स्वप् (सोना)+क्त] १. सोया हुआ, विशेषतः गहरी नींद में सोया हुआ। २. (गुण या तत्त्व) जो निष्क्रिय अवस्था में किसी चीज में स्थित हो। |
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सुषुप्ति :
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स्त्री० [सं० सु√स्वप् (सोना)+क्तिन्] १. गहरी नींद में सोए हुए होने की अवस्था या भाव। २. पातंजलि दर्शन के अनुसार चित्त की एक वृत्ति या अनुभूति। ३. वेदान्त के अनुसार जीव की अज्ञानावस्था। |
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सुषुप्सा :
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स्त्री० [सं०√स्वप् (सोना)+सन्—संयु द्वित्व–टाप्] १. सोने की इच्छा। २. नींद में होने की अवस्था। |
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सुषुम्ना :
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स्त्री० [सं० सुषु√म्ना (अभ्यास)+क–टाप्] [वि० सौषुम्न] शरीर—शास्त्र के अनुसार एक नाड़ी जो नाभि से आरंभ होकर मेरुदंड में से होती हुई ब्रह्मरंध्र तक गई है। (स्पाइनल कार्ड)। विशेष–(क) हठयोग के अनुसार यह इंडा और पिंगला के बीच में है, और इसी के अन्तर्गत वह ब्रह्मनाड़ी है जिससे चलकर कुंडलिनी ब्रह्मरंध्र तक पहुँचाती है। (ख) वैद्यक में, यह शरीर की चौदह प्रधान नाड़ियों में से एक है जिसके साथ बहुत—सी छोटी—छोटी नाड़ियाँ लिपटी हुई हैं। |
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सुषेण :
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पुं० [सं० सु√सेन+अच्, षत्व] १. विष्णु। २. दूसरे मनु का एक पुत्र। ३. परीक्षित का एक पुत्र। ४. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। ५. श्रीकृष्ण का एक पुत्र। ६. करमर्द (वृक्ष)। ७. बेंत। |
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सुषेणी :
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स्त्री० [सं०] निसोथ। त्रिवृता। |
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सुषोपति :
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स्त्री०=सुषुप्ति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सुषोप्ति :
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स्त्री०=सुषुप्ति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सुष्ट :
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पुं० [सं० दुष्ट का अनु०] [भाव० सुष्टता] अच्छा। भला। ‘दुष्ट’। का विपर्याय। |
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सुष्ठु :
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अव्य० [सं० सु√स्था (ठहरना)+कु] [भाव० सुष्ठुता] १. अतिशय। अत्यन्त। २. अच्छी तरह। भली—भाँति। ३. जैसा चाहिए, ठीक वैसा। यथा—तथ्य। ४. वास्तव में। वि० =सुष्ट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सुष्म :
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पुं० [सं०√सु (गमनादि)+मक्—सुक्–षत्व] रस्सी। रज्जु। |
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सुष्मना :
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स्त्री०=सुषुम्ना। |
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