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सौध  : वि० [सं०] १. सुधा से बना हुआ। २. सफेदी या पलस्तर किया हुआ। पुं० १. वह ऊँचा और बड़ा पक्का मकान जिस पर चूना पुता हो। २. प्रासाद। महल। ३. प्राचीन भारत में धवलग्रह का वह ऊपकी भाग (वासभवन से भिन्न) जो केवल रानियों के उठने—बैठने के लिए रक्षित रहता था। ४. चाँदी। रजत। ५. दूधिया पत्थर। दुग्धपाषाण।
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सौधकार  : पुं० [सं०] सौध अर्थात प्रासाद या भवन बनानेवाला कारीगर। राज। मेमार।
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सौधना  : स०=सोधना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सौधन्य  : वि० [सं०] १. सुधन—संबंधी। २. सुधन से उत्पन्न।
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सौधर्म  : पुं० [सं०] १. सुधर्म का गुण या भाव। २. सुधर्म का पालन। ३. सुजनता। साधुता। ४. जैनों के अनुसार देवताओं का निवास स्थान। कल्प—भवन।
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सौधर्मज  : पुं० [सं०] सौधर्म से उत्पन्न एक प्रकार के देवता। (जैन) वि० सौधर्म में उत्पन्न।
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सौधर्म्य  : पुं० [सं०] १. सुधर्म का गुण या भाव। २. भलमनसत। सज्जनता। ३. ईमानदारी।
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सौधा  : वि० [हिं० मँहगा का अनु०] सस्ता। अल्प मूल्य का। कम दाम का। ‘मँहगा’ का विपर्याय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सौधाकर  : वि० [सं०] सुधाकर या चंद्रमा-संबंधी। चांद्र।
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सौधात  : पुं० [सं०] ब्राह्मण और भृज्जकंठी से उत्पन्न संतान।
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सौधातिक  : पुं० [सं०] सुधाता के वंशज।
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सौधार  : पुं० [सं०] नाट्यशास्त्र के अनुसार नाटक के चौदह भागों में से एक।
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सौधावति  : पुं० [सं०] सुधावति के अपत्य।
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सौधृतेय  : पुं० [सं०] सुधृति के वंशज।
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