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अकल  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें कल (अवयव या अंग) न हों। २. जिसके खंड या टुकड़े न हुए हों। पूरा। समूचा। ३. उक्त कारणों से परमात्मा का एक विश्लेषण। ४. जिसमें कोई कला या विशेषता न हो। ५. बेचैन। विकाल। व्याकुल। स्त्री०=अक्ल (बुद्धि)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
अकल-खुरा  : वि० [हि० अकेला+फा० खोर अकेला खानेवाला अर्थात् स्वार्थी या मतलबी। जैसे—अकल खुरा, जग से बुरा।—कहा०।
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अकलंक  : वि० [सं० न० ब०] [भाव० अकलंकता] १. जिसमें कलंक अथवा दोष न हो। कलंक रहित। २. सब तरह से निर्मल। पुं० दे० ‘कलंक’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अकलंकता  : वि० [सं० अकलंक+तल्-टाप्] कलंक अथवा दोष से युक्त न होने का भाव। निर्दोषता।
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अकलंकित  : वि० [सं० न० त०] १. जिसमें कोई कलंक न लगा हो। २. निर्दोष और शुद्ध।
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अकलंकी (किन्)  : वि० [सं० न० त०] जिसमें कोई कलंक या दोष न हो। निष्कलंक। वि० दे० ‘कलंकी’।
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अकलबीर  : पुं० [सं० करवीर ?] एक पौधा जिसकी जड़ रेशम रँगने के काम आती है।
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अकला  : वि०=अकेला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अकलीम  : स्त्री० [अ० इकलीम] १. ऊपर के लोकों में से सातवाँ लोक। २. सातों लोक। उदाहरण—औ सातूँ अकलीम में चावोगढ़ चीतोड़-बाँकीदास। ३. राज्य। ४. देश। प्रान्त।
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अकलुष  : वि० [सं० न० त०] १. जिसमें कलुष न हो। कलुष से रहित। २. पवित्र। शुद्ध। ३.निर्मल। साफ।
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अकल्प  : वि० [सं० न० ब०] १. नियंत्रण या नियम को मानने वाला। २. जिसमें क्षमता न हो। अक्षम। ३. कमजोर। दुर्बल। ४. अतुलनीय।
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अकल्पित  : वि० [सं० न० त०] १. जिसकी कल्पना न की जा सके। कल्पना से बाहर। २. जो कल्पित अथवा मन-गढ़त न हो, बल्कि जिसका कुछ आधार हो। वास्तविक। ३. पहले से जिसकी कल्पना या अनुमान न किया गया हो। अतर्कित।
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अकल्मष  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें कोई कल्मष न हो, निर्दोष। २. पवित्र। शुद्ध। पुं० कल्मष (दोष आदि) का अभाव।
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अकल्याण  : पुं० [सं० न० त०] १. कल्याण का अभाव। अशुभ अमंगलजनक स्थिति। २. अहित। खराबी। हानि। वि० [सं० न० ब०] कल्याण-रहित।
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