काँछा/kaanchha

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काछा  : पुं० [सं० कक्ष, प्रा० कच्छ] १. पेड़ू के नीचे और रागों के बीच का स्थान। मुहावरा—(चलने में) काछा लगाना=दोनों रानों का आपस में रगड़ खाना। २. धोती का वह अंश जो उक्त स्थान पर ले जाकर पीछे की ओर खोंसा जाता है। लाँग। मुहावरा—काछा कसना=कोई काम करने के लिए कमर कसकर तैयार होना। काछा खोलना-(क) साहस या हिम्मत छोड़ना। कायरता दिखाना। (ख) संभोग करना। काछा लगना=धोती के उक्त अंग की रगड़ के कारण रान में या उसके आस-पास घाव या फुंसियाँ होना। ३. अभिनय के समय का नटों का वेश। ४. बदला या बनाया हुआ भेस। मुहावरा—काछा कछना=भेस बनाना। स्वाँग रचना। उदाहरण—(क) सब काछ कसे सब नाच नचे उस रसिया छैल रिझाने को।—नजीर। (ख) जैसा काछा काछिए वैसा नाच नाचिए।—काह।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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