किंकर/kinkar

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किंकर  : पुं० [सं० कि√कृ (करना)+ट] [स्त्री० किंकरी] १. गुलाम। दास। २. नौकर। सेवक। ३. राक्षसों की एक प्राचीन जाति या वर्ग। ४. आज-कल, अस्पतालों आदि में एक प्रकार के कर्मचारी जो रोगियों की छोटी-छोटी सेवाओं के लिए नियत रहते हैं। (वार्ड ब्याय)। वि०=किंकर्त्तव्य-विमूढ़।
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किंकर्त्तव्य-विमूढ़  : वि० [स० त०] (व्यक्ति) जो कुछ ऐसी परिस्थितियों में फँसा हो जहाँ उसे यह पता चल रहा हो कि अब क्या करना चाहिए। जिसकी समझ में न आवे कि अब क्या कर्त्तव्य है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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