कीट-भृंग-न्याय/keet-bhrng-nyaay

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कीट-भृंग-न्याय  : पुं० [सं० कीच-भृंग, मय० स० कीटभृंग-न्याय, ष० त०] दो या अधिक वस्तुओं का उसी प्रकार मिलकर एक रूप हो जाना जिस प्रकार भौंरा किसी कीड़े को पकड़कर (लोक प्रवाद के अनुसार) उसे बिलकुल अपनी तरह का बना लेता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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