शब्द का अर्थ
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खड :
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पुं० [सं० खड् (काटना)+अप्] १. धान की पेड़ी। पयाल। २. धान। ३.श्योनाक। सोनापाढ़ा। ४. चाँदी सोने का वह चूर्ण जिससे चीजों पर गिलट चढ़ाते हैं। पुं० खर (घास)। |
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समानार्थी शब्द-
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खड़क :
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स्त्री०=खटक। |
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खड़कना :
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अ० [अनु.] [भाव. खड़खड़ाहट] ‘खड़खड़’ शब्द होना। खटकना। |
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खड़का :
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पुं० १. =खटका। २. =खरका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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खड़काना :
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-स०=खटकाना। |
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खड़क्की :
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स्त्री० [सं० खड़क्√कृ (करना)+ड-ङीप्] खिड़की। |
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खड़खड़ा :
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पुं० [अनु.] १. =खटखटा। २. =खड़खड़िया। |
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खड़खड़ाना :
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अ० [हिं० खड़खड़] खड़खड़ शब्द होना। स० खड़खड़ (खटखट) शब्द करना। |
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खड़खड़ाहट :
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स्त्री० [हिं० खड़खड़ान] खड़खड़ शब्द होने की क्रिया, भाव या शब्द। |
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खड़खड़िया :
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स्त्री० [हिं० खड़खड़ाना] १. पालकी जिसे चार कहार उठाते हैं। पीनस। २. काठ का वह ढाँचा जिसमें जोतकर गाड़ी खींचने के लिय घोड़े सुधारे जाते हैं। |
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खड़ग :
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पुं० =खड्ग। |
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खड़गी :
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वि० [सं० खड्गिन्] जो खड्ग लिये हो। खड्गधारी। पुं० गैंडा। |
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खडंजा :
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पुं० [हिं.खड़ा+अंग] १. ऊँचाई के बल में बैठाई हुई ईंट। २. उक्त रूप में ईटों की होने वाली जुड़ाई या उससे बनने वाला फर्श। पुं० दे. ‘झाँवाँ’। (क्व)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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खड़जी :
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पुं० =खड़गी। |
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खड़बड़ :
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स्त्री० [अनु.] १. वस्तुओं को उलटने पलटने के होने वाला शब्द। २. परस्पर होने वाली अनबन या झगड़ा। खटपट। ३. अव्यवस्थित करने वाला बड़ा परिवर्तन। उलट-फेर। ४. हलचल। |
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खड़बड़ाना :
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अ० [अनु.] १. खड़बड़ शब्द होना। २. खड़बड़ या घबराहट में पड़ना। ३. व्यक्ति या व्यक्तियों की ऐसी स्थिति में होना कि वे दृढ़, शान्त या स्थिर न रह सकें। विचलित होना। ४. पदार्थों का क्रम-रहित या तितर-बितर होना। स० १. खड़बड़ शब्द उत्पन्न करना। २. व्यक्ति या व्यक्तियों को ऐसी स्थिति में करना कि वे दृढ़, शान्त या स्थिर न रह सकें। विचलित करना। ३. चीजें अस्त-व्यस्त या तितर-बितर करना। |
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खड़बड़ाहट :
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स्त्री० [हिं० खड़बड़ाना] खड़बड़ होने या करने की अवस्था या भाव। |
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खड़बड़ी :
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स्त्री० [हिं० खड़बड़ाना] १. खड़बड़ करने या होने की अवस्था या भाव। खड़बड़ाहट। २. अस्त-व्यस्तता। व्यतिक्रम। ३. दे.‘खलबली’। |
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खड़बिड़ा :
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वि०=खड़बीहड़। |
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खड़बीहड़ :
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वि० [हिं० खड्ड+बीहड़] १. (प्रदेश या प्रान्त) जो समतल न हो। ऊँचा-नीचा। ऊबड़-खाबड़। २. बेढ़ंगा। ३.विकट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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खड़मंडल :
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वि० [सं० खंड-मंडल] १. अव्यवस्थितरूप से उलटा-पलटा हुआ। अस्त-व्यस्त। तितर-बितर। २. (वर्ग या समाज) जो क्रमबद्ध या व्यवस्थित न रह गया हो। |
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खड़सान :
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पुं०=खरसान। |
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खड़ा :
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वि० [स० स्थात्, व्रज. ठाढ़ा] [स्त्री० खड़ी] १. जो धरातल से सीधा ऊपर की ओर उठा हो। ऊँचाई के बल में ऊपर की ओर गया हुआ। जैसे–खड़ी फसल। खड़ा मकान। २. (जीव या पशु-पक्षी) जो अपने पैरों के सहारे सीधा करके ऊपर उठा हो। जो झुका, बैठा या लेटा न हो। जैसे– नौकर सामने खड़ा था। पद–खड़े-खड़े=इतनी जल्दी की बैठने तक का अवकाश न हो। जैसे–वे आये और खड़े-खड़े अपना काम निकालकर चल दिये। खड़ी सवारी=किसी के आने-जाने के संबंध में, आदर या व्यंग्य के लिए, चटपट, तुरन्त। जैसे– खड़ी सवारी आई और चली गई। ३. कोई काम करने के लिए उद्यत, तत्पर या कटिबद्ध। जैसे–आप खड़े हो जाएँ तो विवाह के सब काम सहज में निपट जाएँगे। ४. निर्वाचन में चुने जाने के लिए उम्मेदवार के रूप में प्रस्तुत होनेवाला। जैसे–इस क्षेत्र से दस उम्मीदवार खड़े हैं। ५. जो चलते-चलते कहीं पहुँचकर ठहर या रुक गया हो। जैसे–मोटर या गाड़ी खड़ी कर दो। ६. एक स्थान पर जमा या रुका रहनेवाल। जैसे–खड़ा पानी। ७. (अन्न या दाना) जो गला, टूटा या पिसा न हो। पूरा समूचा। जैसे–खड़े चावल। ८. ठीक, पूरा या भरपूर। जैसे–खड़ा जवाब। (देखें)। ९. जो नये रूप में बनकर या यों ही घटनाक्रम अथवा संयोग से उपस्थित या प्राप्त हुआ हो। जैसे–(क) झगड़ा या प्रश्न खड़ा करना। (ख) कोई चीज बेचकर रुपए खड़े करना। १॰. जो किसी प्रकार तैयार करके काम में आने के योग्य बनाया गया हो। जैसे–खेमा खड़ा करना। ११. (ढाँचा) प्रस्तुत करना। बनाना। जैसे–चित्र खड़ा करना, योजना खड़ी करना। १२. बिना बीच में विश्राम किये तत्काल या तुरन्त पूरा किया जानेवाला। जैसे–खड़ा हुकुम। पद-खड़े घाट=(कपड़ों की धुलाई के संबंध में) धोबी से कराई जानेवाली ऐसी धुलाई जो तुरन्त या एकाध दिन के अन्दर ही करा ली जाए। खड़े पाँव=बिना बीच में रुके या बैठे। जैसे–(क) विदेश से आकर खड़े पाँव स्थानीय देवता से दर्शन करने जाना। (ख) कहीं जाना और खड़े पाँव लौट आना। |
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खड़ा जवाब :
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पुं० [हिं० खड़ा+जवाब] कोई ऐसी बात जिसमें स्पष्ट शब्दों में (क) किसी को करारा उत्तर दिया गया हो। अथवा (ख) उसके अनुरोध की रक्षा न कर सकने की अपनी असमर्थता बतलाई गई हो। |
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खड़ा दसरंग :
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पुं० [देश.] कुश्ती का एक पेंच जिसे हनुमंत बंध भी कहते हैं। |
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खड़ा पठान :
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पुं० [देश.] जहाज के पिछले भाग का मस्तूल। (लश.) |
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खड़ाऊँ :
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स्त्री० [सं० काष्ठापादुका, पा.कट्ठापादुका, प्रा.खड़ामुआ, खड़ाउआ, उ.खराउ, बं.खरम, का. खराव, कन्न.कड़ाव, मरा.खड़ावा] काठ की बनी हुई एक प्रकार की प्रसिद्ध पांदुका जिसमें आगे की ओर पैर का अंगूठा और उँगली फँसाने के लिए खूंटी लगी रहती है। |
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खड़ाका :
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पुं० [अनु.] खड़खड़ शब्द। खटका। क्रि.वि० चटपट। तुरन्त। |
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खड़ानन :
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पुं०=षडानन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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खड़िका :
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स्त्री० [सं० खड+ङीष्+कन्–टाप्, इत्व] खड़िया मिट्टी। |
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खड़िया :
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स्त्री० [सं० खटिका] १. एक प्रकार की चिकनी, मुलायम और सफेद मिट्टी। २. उक्त मिट्टी की बनाई हुई डली या बत्तीं जिससे तख्ती आदि पर लिखा जाता है। पद–खड़िया में कोयला=अच्छे से साथ बुरे की मिलावट। स्त्री० [सं० कांड या हिं० खड़ा] अरहर के पेड़ से फलियाँ और पत्तियाँ पीटकर झाड़ लेने के बाद बचा हुआ डंठल। रहठा। खाड़ी। |
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खड़ी :
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स्त्री० [हिं० खड़िया] खड़िया (मिट्टी)। स्त्री० [हिं० खड़ा] छोटा पहाड़। पहाड़ी। स्त्री० =बारह-खड़ी। वि० [हिं.खड़ा का स्त्रीलिंग रूप] दे ‘खड़ा’। |
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खड़ी चढ़ाई :
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स्त्री० [हिं० खड़ी+चढ़ाई] वह भूमि जो थोड़ी ढालुआ होने पर भी बहुत-कुछ सीधी ऊपर की ओर गई हो। |
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खड़ी डंकी :
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स्त्री० [देश.] मालखंभ की एक कसरत। |
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खड़ी तैराकी :
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स्त्री० [हिं० खड़ी तैराकी] जल में सीधे खड़े होकर पैरों के द्वारा तैरने की क्रिया या भाव। |
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खड़ी पाई :
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स्त्री० [हिं०] १. खड़े-बल में सीधी छोटी रेखा। २. इस प्रकार (।) खींची जानेवाली वह रेखा जो लिकते समय किसी वाक्य के समाप्त होने पर लगाई जाती है। पूर्ण विराम। |
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खड़ी फसल :
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स्त्री० [हिं०] खेत की वह उपज या पैदावार जो तैयार हो गई हो परन्तु अभी काटी न गई हो। (स्टैडिंग क्राप) |
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खड़ी बोली :
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स्त्री० [हिं० खड़ी+बोली] १. मेरठ, बिजनौर, मुजफ्फर नगर, सहारनपुर, अम्बाला, पटियाला के पूर्वी भागों तथा रामपुर, मुरादाबाद आदि प्रदेशों के आसपास की बोली। २. उक्त बोली का परिष्कृत, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक रूप जिसे आजकल हिन्दी कहा जाता है। ३.नागरी अक्षरों में लिखी हुई उक्त भाषा। |
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खड़ी मसकली :
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स्त्री० [हिं० खड़ा+ अ० मसकला=रेती] सिकली करनेवालों का एक प्रकार का एक औंजार जिससे बरतनों आदि को खुरचकर जिला करते हैं। |
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खड़ी सवारी :
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पद दे.खड़ा के अन्तर्गत। |
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खड़ी हुंड़ी :
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स्त्री० [हिं० खड़ी+हुंड़ी] ऐसी हुंड़ी जिसके रुपयों का अभी तक भुगतान न हुआ हो। |
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खड़ुआ :
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पुं० [हिं० कड़ा] एक प्रकार का कड़ा (आभूषण)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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खड़ेघाट :
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पद दे.खड़ा के अन्तर्गत। |
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खड़ेपाँव :
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पद दे.खड़ा के अन्तर्गत। |
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खड़्ग :
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पुं० [सं०√खड्+गन्] १. एक प्रकार की चौड़ी, छोटी तलवार। खाँडा। २. गैंडा नामक जंतु। ३.एक बुद्ध का नाम। |
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खड्ग-कोश :
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पुं० [ष० त०] म्यान। |
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खड्ग-पुत्र :
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पुं० [ष० त०] [स्त्री० अल्पा. खड्गपुत्रिका] एक प्रकार की कटार। |
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खड्ग-बंध :
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पुं० [ब० स०] चित्र काव्य का एक भेद जिसमें किसी पद्य के शब्द इस ढंग से रखे जाते हैं कि वे खड्ग के चित्र में ठीक से बैठ सकें। |
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खड्ग-लेखा :
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स्त्री० [ष० त०] तलवारों की पंक्ति या रेखा। |
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खड्ग-हस्त :
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वि० [ब० स०] १. जो हाथ में खड्ग लेकर लड़ने को तैयार हो। २. हरदम विकट रूप में लड़ने को उद्यत। |
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खड्गधर :
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पुं [ष० त०]=अड्गधारी। |
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खड्गधार :
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पुं० [सं० खग्ङ्√धृ (धारण)+अण्] बद्रिकाश्रम के पास का एक पर्वत। |
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खड्गधारा :
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स्त्री० [ष० त०] १. तलवार की धार या फल। २. ऐसा विकट काम जो खड्ग या तलवार पर चलने के समान हो। |
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खड्गधारी (रिन्) :
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पुं० [सं० खड्ग√धृ+णिनि.] वह जो हाथ में खड्ग या तलवार लिये हो। |
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खड्गाधार :
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पुं० [खग्ङ्-आधार, ष० त०] खड्गकोश। |
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खड्गारीट :
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पुं० [सं० खड्ग-अरि, ष० त० खड्गारि√इट् (जाना)+क] १. चमड़े की ढाल। २. तलवार की धार। ३.वह जिसने असिधारा का व्रत लिया हो। |
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खड्गिक :
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पुं० [सं० खड्ग+ठन्-इक] १. खड्गधारी। २. शिकारी। ३. कसाई। ४. भैंस का दूध का फेन। |
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खड्गी (डिगन्) :
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पुं० [सं० खड्ग+इनि] १. खड्गधारी। २. गैंडा। |
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खड्ड :
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पुं० [सं० खात, प्रा.खड्डो, सिं. खडा, गु.खाड, पं. खड्ड, म. खड्डा] १. प्राकृतिक रूप से बना हुआ बहुत गहरा गड्डा। जैसे–पहाड़ या मैदान का खड्ड। खोदा हुआ बड़ा गड्ढा। |
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खड्ढा :
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पुं० १. =खड्ड। २. =गड्ढा। |
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