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शब्द का अर्थ

खाँ  : वि० [फा० ख्वाँ] उच्चारण करने, पढ़ने या बोलनेवाला। पुं० दे० ‘खान’।
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खाँई  : स्त्री० =खाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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खांख  : स्त्री० [सं० खं] छेद। सूराख।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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खाँखर  : वि० दे० ‘खँखरा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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खाँग  : पुं० [सं० खंग्ङ, प्रा० खग्ग] १. काँटा। कंटक। २. कुठ पक्षियों के पैरों में निकलने वाला काँटा। जैसे– तीतर या मुर्गे का काँटा। ३.कुछ विशिष्ट पशुओं के मस्तक पर आगे की ओर सींग की तरह का निकला हुआ अंग। जैसे– गैंडे या जंगली सुअर का खाँग। ४. खुरवाले पशुओं का एक रोग जिसमें उनके खुरो में घाव हो जाता है। खुरपका। स्त्री० [हिं० खाँचना] १. घिसने, छीजने आदि के कारण होनेवाली कमी। छीजन। २. कसर। त्रुटि। उदाहरण-राखौं देह नाथ केहि खाँगौ।–तुलसी।
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खाँगड़, खाँगड़ा  : वि० [हिं० खाँग+ड़(प्रत्य०)] १. जिसके पैर में खाँग रोग हो। २. जिसके मस्तक या मुँह पर खाँग रोग हो। ३.जिसके पास अस्त्र-शस्त्र हों। हथियारबंद। ४. बलिष्ठ या हष्ट-पुष्ट।
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खाँगना  : अ० [हिं० खाँग] पैर में खाँग (देखें) निकलने के कारण ठीक तरह से चलने में असमर्थ होना। उदाहरण–कहहु सो पीर काह बिनु खाँगा।–जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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खाँगी  : स्त्री० [हिं० खँगना] १. कमी। त्रुटि। २. घाटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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खाँघी  : स्त्री० = खाँगी।
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खाँच  : -स्त्री० [हिं० खाँचना] १. खाँचने की क्रिया या भाव। २. खाँचने के कारण बननेवाला चिन्ह्र या निशान। ३. दो वस्तुओं के बीच का जोड़। संधि। ४. दे० ‘खचन’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० =खाँचा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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खाँचना  : स० [सं० खचन] [ वि० खँचैया] १. अंकित करना। चिन्ह्र बनाना। खींचना। २. जल्दी-जल्दी घसीटकर और भद्दी तरह से लिखना। ३. चिन्ह्र या निशान लगाना। ४. खचित या अच्छी तरह से युक्त करना। उदाहरण–सूरदास राधिका सयानी रूप रासि रस खाँची।–सूर। ५. दृढ़तापूर्वक कोई प्रतिज्ञा करना या बात कहना। उदाहरण–जानहुँ नहिं कि पैज पिय खाँचो।–जायसी।
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खाँचा  : पुं० [हिं० खाँचना] [स्त्री० अल्पा० खँचिया, खाँची] १. किसी चीज में खोदकर बनाया हुआ कुछ गहरा और लंबा निशान। २. पतली टहनी आदि का बना हुआ बड़ा टोकरा। झावा। ३.बड़ा पिंजरा।
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खाँची  : स्त्री० [हिं० खाँचा] छोटा खाँचा। खँचिया।
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खाँड  : स्त्री० [सं० खंड] ऐसी चीनी जो कम साफ होने के कारण बहुत सफेद न हो, बल्कि कुछ लाल रंग की हो। कच्ची चीनी या शक्कर। पुं० =खाँडा। उदाहरण–जाति सूर और खाँडइ सूरा।–जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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खाँडना  : स० [सं० खंड] १. खंड खंड करना। २. खंड-खंड करके अथवा कुचल-कुचलकर खाना। चबाना। ३. दाँतों से काटना। उदाहरण–मेरे इनके बीच परै जनि अधर दसन खाँड़ौगी।–सूर।
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खाँडर  : पुं० [सं० खंड] छोटा टुकड़ा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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खांडव  : पुं० [सं० खंड+अण्,खांड√वा(गति)+क] १. दिल्ली के आसपास का एक पुराना वन जिसे अर्जुन ने जलाकर मनुष्यों के बसने योग्य बनाया था। २. खाँड की बनी हुई खाने की चीज। मिठाई।
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खांडव-प्रस्थ  : पुं० [ष० त० ] एक गाँव जो पांडवों को धृतराष्ट्र की ओर से मिला था। यहीं पर पांडवों ने इन्द्रप्रस्थ बसाया।
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खांडविक  : पुं० [सं० खांडव+ठञ्-इक] मिठाई बनानेवाला। हलवाई।
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खाँडा  : पुं० [सं० खड्ग, खण्डक, प्रा० खण्डइ, बँ० खाँरा, खांड, मरा० खांडा; पं० खण्डा; गु० खांडु] चौड़े और तिरछे फलवाली एक प्रकार की छोटी तलवार। खड्ग। पुं० [सं० खंड] टुकड़ा। भाग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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खांडिक  : पुं०=खांडविक (हलवाई)।
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खाँडो  : पुं० दे० ‘षाड़व’।
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खाँदना  : स० [सं० स्कंदन] १. दबाना। २. खोदना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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खाँधना  : स० [सं० खादन] १. खाना। उदाहरण-नैन नासिका मुश नहीं चोरि दधि कौने खाँधौ।–सूर। २. दे० ‘खाँदना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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खाँधा  : वि० [?] टेढ़ा। तिरछा। (राज०) उदाहरण-खाँधी बाँधे पाघड़ी मधरी चाले चाल।
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खाँप  : स्त्री० १. =फाँक। २. =टुकड़ा। स्त्री० [हिं० खाँपना] खाँपने की क्रिया या भाव।
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खाँपना  : स० [सं० क्षेपन, प्रा० खेपन] १. खोंसना। २. अच्छी तरह बैठाकर लगाना। जड़ना। ३. चारपाई बुनने के समय किसी चीज से ठोककर उसकी बुनावट कसना और घनी करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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खाँभ  : पुं०=खंभा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० =खाम (लिफाफा)।
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खाँभना  : स० [हिं० खाम] लिफाफे में बंद करना।
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खाँवाँ  : पुं० [सं० स्कंधक] १. गहरी और चौड़ी खाई। २. मिट्टी की चाहरदीवारी। पुं० [?] सफेद फूलोंवाला एक प्रकार का पौधा।
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खाँसना  : अ० [सं० कासन, प्रा०खाँसन] गले में रुका कफ या और कोई अटकी हुई चीज निकालने या केवल शब्द करने के लिए झटके से वायु कंठ से बाहर निकालना। खाँसी आने या होने का सा शब्द करना।
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खाँसी  : स्त्री० [सं० कास] १. एक शारीरिक व्यापार जिसमें फेफड़ो से निकलने वाली हवा श्वास नली में रुकने पर सहसा वेगपूर्वक मुँह के रास्ते बाहर निकलने का प्रयत्न करती है। २. इस प्रकार खाँसने से होनेवाला शब्द। ३. एक रोग जिसमें मनुष्य या पशु बराबर खाँसता रहता है। (कफ, उक्त सभी अर्थों में)
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