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खिंचड़ी  : स्त्री० [सं० कृसर, प्रा० खिच्च, बं० खिचरी, उ० खिचुरा, गु० खिंच] १. दाल और चावल को एक में मिलाकर उबालने से बनने वाला भोज्य पदार्थ। मुहावरा–खिंचड़ी पकाना=आपस में मिलकर चोरी-चोरी कोई परामर्श या सलाह करना। ढाई चावल की खिचंड़ी अलग पकाना-सबकी सम्मति के विपरीत अपनी ही बात की पुष्टि करना अथवा अपने विचार के अनुसार काम करना। खिचड़ी खाते पहुँचा उतरना-बहुत अधिक कोमल या नाजुक होना। (परिहास और व्यंग्य) २. विवाह की एक रस्म जिसमें दामाद को पहले-पहल घर बुलाकर खिचड़ी खिलाई जाती हैं। ३.एक ही में मिली हुई कई तरह की या बहुत सी वस्तुएँ। जैसे–खिंचडी भाषा। ४. मकर संक्रान्ति। ५. बेरी का फूल। ६. भाँड वेश्या आदि को नाच गाने आदि में भाग लेने के लिए दिया जानेवाला पेशगी धन। बयाना। साई। वि० [सं० कृसर] १. आपस में मिला जुला। २. जो अपना स्वतंत्र अस्तित्व हो चुका हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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