चित्र-काव्य/chitr-kaavy

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चित्र-काव्य  : पुं० [मध्य० स०] वह आलंकारिक काव्य जिसके चरणों की रचना ऐसी युक्ति से की गई हो कि वे चरण किसी विशिष्ट क्रम से लिखे जाने पर कमल, खड़ग, घोड़े, रथ, हाथी आदि के चित्रों के समान बन जाते हों। (इसकी गणना अधम प्रकार के काव्यों में होती है।)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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