दाहिन/daahin

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दाहिन  : वि०=दाहिना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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दाहिना  : वि० [सं० दक्षिण] [स्त्री० दाहिनी] १. मानव वर्ग के प्राणियों में उस हाथ की दिशा या पार्श्व का जिस हाथ से वह साधारणतः खाता-पीता और अपने अधिकतर काम करता है। मनुष्य के शरीर में जिधर हृदय होता है उसके विपरीत पक्ष या पार्श्व का। दायाँ। बायाँ। का विपर्याय। जैसे—दाहिनी आँख। विशेष—(क) जब हम पूर्व अर्थात् सूर्योदयवाली दिशा की ओर मुँह करके खड़े होते है तब हमारा जो अंग या पार्श्व दक्षिण दिशा की तरफ पड़ता है वहीं हमारा दाहिना कहलाता है। और इसके विपरीत जो अंग या पार्श्व उत्तर की ओर पड़ता है वह हमारा बाँया कहलाता है। (ख) शरीर शास्त्र की दृष्टि से अधिकतर प्राणियों में दाहिनी ओर की पेशियाँ ही अपेक्षया अधिक सबल होती है, और फलतः उसी ओर के अंगों में सब तरह के काम करने की अधिक तत्परता और शक्ति होती है। इसी लिए सब लोग खाने, पकड़ने, मारने लिखने आदि के काम दाहिने हाथ से ही करते हैं। कुछ लोग बाएँ हाथ से भी उक्त सब काम करते हैं। पर उनकी गिनती अपवाद में होती है। (ग) जीव-जंतुओं के शरीर में दाहिने-बाएँ अंगों या पार्श्वों का निरूपण भी उक्त सिद्धांत के आधार पर ही होता है। मुहावरा—(किसी का) दाहिना हाथ होना=किसी का बहुत बडा सहायक होना। जैसे—इस काम में वही तो हमारे दाहिने हाथ रहे हैं। पद—दाहिने बाएँ-(क) किसी की दाहिनी और बायीं ओर। दोनों तरफ। जैसे—उनके दाहिने बायँ राजे-महाराजे खड़े थे। (ख) चारों ओर। २. मनुष्य के दाहिने हाथ की दिशा में स्थित। जैसे—आगे बढ़कर दाहिनी गली में घूम जाना। ३. अचल, जड़ या स्थावर पदार्थों के संबंध में, वह अंग या पार्श्व जो उनके मुँह या सामनेवाले भाग का ध्यान रखते हुए अथवा उनकी गति, प्रवृत्ति आदि के विचार के उक्त सिद्धांत के आधार पर निश्चित या स्थिर होता है। जैसे—(क) पंडित जी का मकान हमारे मकान की दाहिनी ओर पड़ता है। (ख) पटना और बाँकीपुर दोनों गंगा के दाहिने किनारे पर स्थित है। (ग) रंगमंच पर नायिका दाहिने कक्ष से आई और नायक बाँय कक्ष से आया था। ४. जड़, परन्तु चल पदार्थों के संबंध में (उस स्थिति में जब वे हमारे सामने आते या पड़ते हो) उस दिशा या पार्श्व का जो हमारे दाहिने हाथ के ठीक सामने पड़ता है। जैसे—(क)उर्दूँ लिपि दाहिने ओर से लिखी जाती है। (ख) अलमारी के नीचेवाले खाने में दाहिने सिरे पर जो किताब रखी है वह उठा लाओ। विशेष—ऐसी स्थिति में उस पदार्थ या वस्तु का जो अंग या पार्श्व उक्त आधार पर वास्तव में दाहिना होता है वह हमारे लिए बायाँ हो जाता है। उदाहरणार्थ—यदि किसी चित्र में दस आदमी एक पंक्ति में खड़े हों और हमें उन दसों आदमियों के नाम उस चित्र के नीचे लिखने पड़े तो हम लिखेंगे। चित्र में खड़े हुए लोगों के नाम बाई ओर से इस प्रकार है। यहाँ उक्त सिद्धांत के आधार पर चित्र का जो वास्तविक दाहिना पार्श्व होगा, वह हमारे लिए बायाँ हो जायेगा और उसके बायँ पार्श्व को हम अपनी दृष्टि से दाहिना कहेंगे। परन्तु पहनने की कुछ चीजें जब हमारे सामने आवेंगी, तब भी हम उनके दाहिने बायँ का निरूपण अपने शरीर के अंगों के विचार से ही करेगें। जैसे—(क) दरजी ने इस कुरते की दाहिनी आस्तीन कुछ टेढ़ी (या तिरछी) काटी है। (ख) हमारा दाहिना जूता एड़ी पर से घिस गया है। (ग) हमारा दाहिना दास्ताना (या मोजा) खो गया। ५. जो आचरण, व्यवहार आदि में अनुकूल, उदार, प्रसन्न अथवा कार्यों में विशिष्ट रूप में सहायक हो। उदाहरण—सदा भवानी दाहिने, गौरी पुत्र गणेश। पुं० गाड़ी, हल आदि में जोड़ी के साथ जोता जानेवाला वह पशु जो सदा दाहिने ओर रखा जाता हो।
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दाहिनावर्त्त  : वि०, पुं०=दक्षिणावर्त। पुं०=परिक्रमा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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दाहिनी  : स्त्री० [हिं० दाहिना] देवता आदि की वह परिक्रमा जो उन्हें अपने दाहिने हाथ की ओर रखकर की जाती है। दक्षिणावर्त परिक्रमा। प्रदक्षिणा। क्रि० प्र०—देना।—लगाना। मुहावरा—दाहिनी लाना=दक्षिणावर्त परिक्रमा करना। प्रदक्षिणा करना।
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दाहिने  : क्रि० वि० [हिं० दाहिना] १. दाहिने हाथ की ओर। उस तरफ जिस तरफ दाहिना हाथ हो। जैसे—उनका मकान हमारे मकान के दाहिने पड़ता है। २. आचरण, व्यवहार आदि में अनुकूल उदार या प्रसन्न रहकर। जैसे—हम तो यहीं चाहते है कि आप सदा दाहिने रहें।
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