शब्द का अर्थ
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					फरक					 :
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					पुं० [अ० फ़र्क़] १. अलगाव। पार्थक्य। २. ऐसा भेद जो पार्थक्य के कारण हो अथवा पार्थक्य का सूचक हो। ३. दो विभिन्न वस्तुओं, व्यक्तियों आदि में होनेवाली विषमता। ४. हिसाब-किताब आदि में भूल-त्रुटि आदि के कारण पड़नेवाला अंतर। ५. एक रकम या संख्या को दूसरी रकम या संखया में से घटाने पर निकलनेवाला शेषांश। बाकी। ६. दो बिदुओं या स्थानों में होनेवाली दूरी या फासला। ७. भेद-भाव। दुराव। क्रि० वि० अलग। पृथक्। स्त्री०=फड़क। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					फरकन					 :
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					स्त्री० [हिं० फरकना] फड़कने की क्रिया या भाव। फड़क।				 | 
			
			
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					फरकना					 :
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					अ० [अ० फर्क-अंतर] १. अलग या दूर होना। २. कटकर निकल जाना। अ०=फड़कना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					फरका					 :
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					पुं० [सं० फलक] १. ऐसा छ्प्पर जो अलग से बनाकर बँड़ेर पर चढाया या रखा जाता है। २. बँड़ेर में एक ओर की छाजन। पल्ला। ३. झोपडियों, दरवाजों आदि के आगे लगाया जानेवाला टट्टर। पुं० दे० ‘फिरका’। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					फरकाना					 :
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					स० [हिं० फरक-अलग] १. अलग या दूर करना। २. फरक या अन्तर निकालना या स्थिर करना। स०=फड़काना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					फरकिल्ला					 :
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					पुं० [हिं० फार+कील] गाड़ी आदि में लगाया जानेवाला वहा खूँटा जिसके सहारे ऊपर का ढाँचा खड़ा रहता है। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					फरकी					 :
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					स्त्री० [हिं० फरक] १. चिड़ीमारों की लासे से युक्त वह लकड़ी जिस पर चिड़ियों के बैठने पर उनके पैर, पंख आदि चिपक जाते हैं। २. दीवार की चुनाई में खड़े बल में लगाया जानेवाला पत्थर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					फरकौंहाँ					 :
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					वि० [हिं० फरकना+औहाँ (प्रत्यय)] १. फड़कनेवाला। २. फड़कता हुआ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					फरक्क					 :
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					पुं०=फरक। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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