भ्रष्ट/bhrasht

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भ्रष्ट  : भू० कृ० [सं०√भ्रंश्+क्त] १. ऊँचाई या ऊपर से नीचे गिरा हुआ। २. गिरने के कारण जो टूट-फूट गया हो। ३. ध्वस्त। ४. जो अपने मार्ग से इधर-उधर हो गया हो। ५. कुछ भी काम न दे सकनेवाला। ६. आचार, धर्म, नीति आदि की दृष्टि से दूषित और निंदनीय। बुरे आचार-विचार वाला। (कोरप्ट) ७. किसी चीज या बात से वंचित।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
भ्रष्ट-क्रिय  : वि० [ब० स०] जो विहित कर्म न करता हो।
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भ्रष्ट-निद्र  : वि० [ब० स०] जिसे निद्रा न आती हो।
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भ्रष्ट-श्री  : वि० [ब० स०] श्री से रहित।
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भ्रष्टा  : स्त्री० [स० भ्रष्ट+टाप्] भ्रष्ट चरित्र वाली स्त्री। कुलटा। पुंश्चली।
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भ्रष्टाचरण  : पुं० [भ्रष्ट-आचरण, कर्म० स०] भ्रष्टाचार करना।
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भ्रष्टाचार  : वि० [सं० भ्रष्ट-आचार, कर्म० स०] जिसका आचार बिगड़ गया हो। पुं० १. दूषित और निन्दनीय आचार-विचार। २. आज-कल वह बहुत बिगड़ी हुई स्थिति जिसमें अधिकारी तथा कर्मचारी विहित कर्तव्यों का पालन निष्ठापूर्वक, भली-भाँति और समय पर नहीं करते बल्कि मनमाने ढंग से, विलंब से, तथा अनुचित रूप से करते हैं। (कोरप्शन)
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