मरोड़/marod

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मरोड़  : पुं० [हिं० मरोड़ना] १. मरोड़ने की क्रिया या भाव। २. मरोड़ने के कारण पड़नेवाला बल। ३. किसी प्रकार का घुमाव-फिराव या चक्कर। पद—मरोड़ की बात=घुमाव-फिराव या चक्कर की कोई बात। मुहा०—मरोड़ खाना=(क) चक्कर खाना। (ख) उलझन में पड़ना। ४. दुःख, व्यथा, दुर्भाव आदि के फलस्वरूप मन में होनेवाला क्षोभ या कपट। मुहा०—मरोड़ खाना या गहना=अभिमान, क्रोध आदि के कारण क्षुब्ध रहना। ५. अनपच के कारण पेट में रह-रहकर होनेवाली ऐंठन जिससे पीड़ा भी होती है। पेचिस। मुहा०—मरोड़ खाना=पेट में ऐंठन और पीड़ा होना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
मरोड़ना  : स० [हिं० मोड़ना] १. किसी चीज में घुमाव, बल आदि डालने के उद्देश्य से उसे कुछ जोर से घुमाना। जैसे—किसी का कान मरोड़ना। २. किसी चीज को ऐसी स्थिति में लाना कि उसमें कुछ तनाव या ऐंठन आ जाय। जैसे—अंग मरोड़ना (अंगड़ाई लेना)। उदा०—सब अंग मरोरि मुरो मन में झरि पूरि रही रस मैं न भई।—गुमान। ३. गरदन मरोड़कर मार डालना। ४. पीड़ा देना। दुःख पहुँचाना।
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मरोड़फली  : स्त्री० [हिं० मरोड़+फली] मुर्रा। अवतरनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
मरोड़ा  : पुं०=मरोड़।
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मरोड़ी  : स्त्री० [हिं० मरोड़नी] १. ऐंठन। घुमाव। बल। मरोड़। २. खींचातानी। ३. उबटन, मैल आदि का वह पतला तथा बल खाया हुआ टुकड़ा जो शरीर को मलने तथा रगड़ने पर छूटता है। हाथ से मलकर बनाई हुई गीले आटे की बत्ती।
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