रज्जु-सर्प-न्याय/rajju-sarp-nyaay

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रज्जु-सर्प-न्याय  : पुं० [सं० रज्जु-सर्प, सुप्सुपा० स० रज्जुसर्प-न्याय, ष० त०] रस्सी को अच्छी तरह न देख सकने के कारण भूल से साँप समझ लेने अथवा इसी प्रकार और किसी भ्रम में पड़ने की स्थिति या न्याय।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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