शब्द का अर्थ
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रति :
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स्त्री० [सं०√रम्+क्तिन्] १. किसी काम, चीज, बात या व्यक्ति में रत होने की अवस्था या भाव। २. उक्त अवस्था में मिलनेवाला आनंद या होनेवाली तृप्ति। ३. विशेषतः मैथुन आदि में होनेवाली तृप्ति या मिलनेवाला आनंद। साहित्य में इसे श्रृंगार रस का स्थायी भाव माना गया है। ४. मैथुन। संभोग। ५. प्रीति। प्रेम। ६. छवि। शोभा। ७. सौभाग्य। ८. गुप्त-भेद। रहस्य। ९. कामदेव की पत्नी का नाम। स्त्री०=रत्ती। अव्य०=रती। स्त्री०=रात। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रति-करण :
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पुं० [ष० त०] रति या संभोग करने का कौशल या ढंग। |
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रति-कलह :
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पुं० [ष० त०] मैथुन। संभोग। |
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रति-कांत :
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पुं० [ष० त०] रति का पति। कामदेव। |
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रति-कुहर :
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पुं० [ष० त०] योनि। भग। |
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रति-केलि :
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स्त्री० [ष० त०] मैथुन। संभोग। |
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रति-क्रिया :
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स्त्री० [ष० त०] मैथुन। संभोग। |
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रति-गृह :
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पुं० [ष० त०] योनि। भग। |
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रति-तस्कर :
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पुं० [ष० त०] वह जो स्त्रियों को अपने साथ व्यभिचार करने में प्रवृत्त करता हो। |
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रति-दान :
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पुं० [ष० त०] संभोग। मैथुन। |
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रति-देव :
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पुं० [ष० त०] १. विष्णु। २. [ब० स०] कुत्ता। ३. चंद्रवंशी राजा सांकृति के पुत्र एक राजा। |
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रति-नाथ :
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पुं० [ष० त०] कामदेव। |
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रति-नायक :
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पुं० [ष० त०] कामदेव। |
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रति-पति :
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पुं० [ष० त०] कामदेव। |
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रति-पाश :
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पुं० [ष० त०] सोलह प्रकार के रति-बंधों में से एक भेद। (काम शास्त्र) |
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रति-प्रिय :
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पुं० [ष० त०] १. कामदेव। २. [ब० स०] मैथुन से आनंदित होनेवाला व्यक्ति। वि० [स्त्री० रति-प्रिया] रति (मैथुन) का शौकीन। कामुक। |
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रति-प्रिया :
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स्त्री० [ब० स०] १. तांत्रिकों के अनुसार शक्ति की एक मूर्ति का नाम। २. दाक्षायणी देवी का एक नाम। ३. मैथुन से आनंदित होनेवाली स्त्री। |
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रति-प्रीता :
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स्त्री० [तृ० त०] १. वह नायिका जिसकी रति में विशेष अनुराग हो। कामिनी। २. रति से आनंदित होनेवाली स्त्री। |
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रति-बंध :
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पुं० [स० त०] काम-शास्त्र में बतलाये हुए संभोग करने के ८४ आसनों में से हर एक। |
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रति-भवन :
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पुं० [ष० त०] १. रति-क्रीड़ा या मैथुन करने का कमरा या भवन। २. योनि। भग। |
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रति-भाव :
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पुं० [ष० त०] १. पति, और पत्नी, प्रेमी और प्रेमिका या नायक और नायिका का पारस्परिक अनुराग। २. प्रीति। प्रेम। मुहब्बत। |
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रति-मंदिर :
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पुं० [ष० त०] रति-भवन (दे०)। |
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रति-मित्र :
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पुं० [स०त०] एक रतिबंध। (कामशास्त्र) |
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रति-रमण :
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पुं० [ष० त०] १. रति-क्रीड़ा। मैथुन। २. कामदेव। |
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रति-राज :
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पुं० [ष० त०] कामदेव। |
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रति-वर :
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पुं० [स० त०] १. रति में प्रवीण कामदेव। २. वह धन या भेंट जो नायक-नायिका को रति में प्रवृत्त करने के उद्देश्य से देता है। |
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रति-वर्द्धन :
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वि० [सं० ष० त०] काम-शक्ति बढ़ानेवाला। |
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रति-वल्ली :
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स्त्री० [ष० त०] प्रेम। प्रीति। मुहब्बत। |
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रति-समर :
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पुं० [ष० त०] संभोग मैथुन। |
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रति-साधन :
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पुं० [ष० त०] पुरुष का लिंग। शिश्न। |
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रति-सुन्दर :
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पुं० [ष० त०] एक रति बंध। (कामशास्त्र) |
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रतिकर :
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अव्य० [हिं० रत्ती] रत्तीभर, अर्थात् बहुत थोड़ा। जरा-सा वि० [सं० रति√कृ (करना)+ट०] १. रति करनेवाला। २. आनन्द और सुख की वृद्धि करनेवाला। ३. अनुराग या प्रेम बढ़ानेवाला। पुं० कामुक और लंपट व्यक्ति। |
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रतिगर :
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अव्य० [हिं० रात+गर] प्रातःकाल। तड़के। सबेरे। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रतिज्ञ :
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पुं० [ष०रति√ज्ञा (जानना)+क] १. वह जो रति-क्रिया में चतुर हो। २. वह जो स्त्रियों को अपने प्रेम में फँसाने की कला में निपुण हो। |
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रतिनाह :
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पुं० =रतिनाथ (कामदेव)। |
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रतिभौन :
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पुं० =रतिभवन। |
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रतिमदा :
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स्त्री० [सं० ब० स०] अप्सरा। |
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रतियाना :
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अ० [हिं० रति=प्रीति+आना (प्रीति)] किसी पर रत या अनुरक्त होना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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रतिराइ :
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पुं० =रतिराज (कामदेव)। |
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रतिवंत :
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वि० [सं० रति+हिं० वंत (प्रत्यय)] सुंदर। खूबसूरत। |
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रतिवाही (हिन्) :
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पुं० [सं० रति√वह् (ढोना)+णिनि] संगीत में एक प्रकार का राग, जिसका गान-समय रात को १६ दंड से २0 दंड तक है। |
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रतिशास्त्र :
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पुं० [मध्य० स०] वह शास्त्र जिसमें रति के ढंगों, आकारों आसनों आदि का विवेचन होता है। कामशास्त्र। |
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रतिसत्वरा :
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स्त्री० [ब० स०+टाप्] असबरग। पृक्का। |
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