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रत्न  : पुं० [सं०√रम् (क्रीड़ा)+णिच्, न० तकार-अन्तादेश] १. कुछ विशिष्ट छोटे चमकीले खनिज पदार्थ या बहूमूल्य पत्थर जो आभूषणों आदि में जड़े जाते हैं २. माणिक्य मानिक। लाल। ३. वह जो अपनी जाति या वर्ग में औरों से बहुत अच्छा या बढ़-चढ़कर हो। ४. जैनों के अनुसार सम्यक् दर्शन सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र।
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रत्न-कंदल  : पुं० [ष० त०] प्रवाल। मूँगा।
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रत्न-कर्णिका  : स्त्री० [मध्य० स०] कान में पहनने का एक तरह का जड़ाऊ गहना।
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रत्न-कांति  : स्त्री० [ब० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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रत्न-कूट  : पुं० [ब० स०] १. एक पौराणिक पर्वत का नाम। २. एक बोधिसत्व का नाम।
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रत्न-गर्भ  : स्त्री० [सं० ब० स०+टाप्] वह जिसके गर्भ में रत्न हो। पृथ्वी।
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रत्न-त्रय  : पुं० [ष० त०] सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र (जैन)।
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रत्न-दामा  : स्त्री० [ष० त०] १. रत्नों की माला। २. सीता की माता। (गर्ग संहिता)।
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रत्न-दीप  : पुं० [मध्य० स०] १. रत्नों से जड़ा हुआ दीपक। रत्नजटित दीपक। २. एक कल्पित रत्न का नाम जो बहुत उज्जवल माना गया है।
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रत्न-द्रुम  : पुं० [ष० त०] मूँगा।
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रत्न-द्वीप  : पुं० [मध्य० स०] पुराणानुसार एक द्वीप का नाम।
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रत्न-धर  : पुं० [ष० त०] धनवान्। वि० रत्न धारण करनेवाला।
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रत्न-धेनु  : स्त्री० [मध्य० स०] दान के उद्देश्य से रत्नों की बनाई हुई गौ की मूर्ति।
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रत्न-ध्वज  : पुं० [ब० स०] एक बोधिसत्त्व।
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रत्न-नाभ  : पुं० [ब० स०] विष्णु।
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रत्न-निधि  : पुं० [ष० त०] १. खंजन पक्षी। ममोला। २. समुद्र। ३. मेरू पर्वत। ४. विष्णु।
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रत्न-परीक्षक  : पुं० [ष० त०] जौहरी।
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रत्न-पर्वत  : पुं० [ष० त०] सुमेरु पर्वत।
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रत्न-पाणि  : पुं० [ब० स०] एक बोधिसत्व।
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रत्न-पारखी  : पुं० =रत्न-परीक्षक (जौहरी)।
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रत्न-प्रदीप  : पुं० [मध्य० स०] ऐसा एक कल्पित रत्न जो दीपक के समान प्रकाशमान माना गया है।
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रत्न-प्रभ  : पुं० [ब० स०] देवताओं का एक वर्ग।
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रत्न-प्रभा  : स्त्री० [ब० स०+टाप्] १. पृथ्वी। २. जैनों के अनुसार एक नरक।
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रत्न-बाहु  : पुं० [ब० स०] विष्णु।
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रत्न-भूषण  : पुं० [मध्य० स०] रत्न जटित आभूषण। जड़ाऊ गहना।
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रत्न-माला  : स्त्री० [मध्य० स०] १. रत्नों की माला। २. राजा बलि की कन्या का नाम।
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रत्न-माली (लिन्)  : पुं० [सं० रत्नमाला+इनि] देवताओं का एक वर्ग।
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रत्न-राज्  : पुं० [सं० रत्न√राज् (चमकना)+क्विप्, उप० स०] माणिक्य। लाल।
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रत्न-वती  : स्त्री० [सं० रत्न+मतुप्+ङीष्] पृथ्वी।
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रत्न-शाला  : स्त्री० [ष० त०] १. रत्नों के रखने का स्थान। २. ऐसा भवन या महल जिसकी दीवारों पर रत्न जड़े हों।
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रत्न-सागर  : पुं० [मध्य० स०] समुद्र का वह भाग जहाँ से प्रायः रत्न निकलते हों।
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रत्न-सानु  : पुं० [ब० स०] सुमेरु पर्वत।
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रत्न-सू  : स्त्री० [सं० रत्न√सू (प्रसव)+क्विप्] पृथ्वी।
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रत्नकर  : पुं० [सं० रत्न√कृ (करना)+ट] कुबेर का एक नाम।
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रत्नगर्भा  : पुं० [ब० स०] १. कुबेर का एक नाम। २. रत्नाकर। समुद्र। ३. एक बुद्ध का नाम।
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रत्नगिरि  : पुं० [मध्य० स०] बिहार के एक पहाड़ का प्राचीन नाम।
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रत्नचूड़  : पुं० [ब० स०] एक बोधिसत्व।
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रत्नछाया  : स्त्री० [सं० रत्नच्छाया] रत्न की आभा, छाया या पानी।
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रत्नाकर  : पुं० [रत्न-आकर, ष० त०] १. समुद्र। २. ऐसी खान जिसमें से रत्न निकलते हों। ३. वाल्मिकी का पुराना नाम। ४. गौतम बुद्ध का एक नाम।
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रत्नागिरि  : पुं० =रत्नगिरि बिहार में स्थित एक पर्वत।
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रत्नाचल  : पुं० [रत्न-अचल, मध्य० स०] दान के उद्देश्य से लगाया हुआ रत्नों का ढेर।
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रत्नाद्रि  : पुं० [रत्न-अद्रि, मध्य० स०] एक पर्वत। (पुराण)
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रत्नाधिपति  : पुं० [रत्न-अधिपति, ष० त०] कुबेर।
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रत्नावली  : स्त्री० [रत्न-आवली, ष० त०] १. मणियों या रत्नों की अवली या श्रेणी। २. रत्नों की माला। ३. साहित्य में एक अर्थालंकार जिसमें कोई बात ऐसे कलिष्ट शब्दों में कही जाती है कि उनसे प्रस्तुत अर्थों के सिवा कुछ और अर्थ भी निकलते हैं। जैसे—‘आप चतुरास्य लक्ष्मीपति और सर्वज्ञ है’ का साधारण अर्थ के सिवा यह भी अर्थ निकलता है कि आप ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं।
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