शब्द का अर्थ
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रव :
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पुं० [सं०√रु (ध्वनि)+अप्] १. आवाज। शब्द। २. कुछ देर तक निरन्तर होता रहनेवाला जोर का शब्द। २. गुल। शोर। हल्ला। पुं० =रवि (सूर्य) स्त्री०=रौ (गति)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रवक :
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पुं० [?] एरंड या रेंड का वृक्ष। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रवकना :
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अ० [हिं० रमना=चलना] १. तेजी से आगे बढ़ना। २. कोई चीज लेने के लिए उस पर झपटना। ३. उछलना। |
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रवण :
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पुं० [सं०√रु (ध्वनि)+युच्] १. कांसा नामक धातु। २. कोयल। ३. ऊँट। ४. विदूषक। ५. [√रु+ल्युट-अन]। वि० १. रव अर्थात् शब्द करता हुआ। २. तपा हुआ। गरम ३. अस्थिर। चंचल। |
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रवण-रेती :
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स्त्री०=रमण-रेती। |
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रवताई :
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स्त्री० [हिं० रावत+आई (प्रत्यय)] १. रावत होने की अवस्था या भाव। २. रावत का कर्त्तव्य, गुण या पद। ३. प्रभुत्व। स्वामित्व। |
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रवथ :
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पुं० [सं०√रु+अथ] कोयल। |
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रवन :
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पुं० [सं० रमण] पति। स्वामी। वि० रमण करनेवाला। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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रवना :
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अ० [सं० रव+हिं० ना (प्रत्यय)] १. शब्द होना। किसी शब्द या ना्म से प्रसिद्ध होना। ३. बोला या पुकारा जाना। अ० [सं० रमण] १. रमण करना। २. कौतुक या क्रीड़ा करना। ३. किसी के साथ अच्छी तरह मिलना-जुलना। उदाहरण—राम-नाम रवि रहिऔ।—कबीर। |
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रवनि, रवनी :
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स्त्री०=रमणी। |
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रवन्ना :
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पुं० [फा० रवाना] घरेलू काम-काज करनेवाला तथा बाजार से सौदा-सुल्फ लानेवाला नौकर। जैसे—एक मेरे घर अन्ना, दूसरे रवन्ना। २. वह कागज जिस पर रवाना किये माल का ब्यौरा होता है। ३. कोई चीज कहीं ले जाने का अनुमति पत्र। जैसे—चुंगी चुका देने पर मिलनेवाला रवन्ना। वि० =रवाना। |
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रवाँ :
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वि० [फा०] १. बहता हुआ। प्रवाहित। २. जो चल रहा हो। जारी। प्रचलित। ३. (कार्य) जिसका अच्छी तरह अभ्यास हो गया हो, और जिसके निर्वाह या सम्पादन में कोई कठिनता न होती हो। ४. अभ्यस्त। जैसे—रवाँ हाथ। ५. (शस्त्र) जिस की धार चोखी या तेज हो और इसीलिए जो ठीक और पूरा काम देना हो। ५. दे० ‘रवाना’। स्त्री जान। रूह। |
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रवा :
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पुं० [सं० रज, प्रा, रअ=धूल] [स्त्री० अल्पा० रई] १. किसी चीज का बहुत छोटा टुकड़ा। कण। दाना। रेजा। जैसे—चाँदी का रवा, मिस्री का रवा। २. किसी चीज के वे कोणाकार या लंबोतरे टुकड़े जो नमी निकल जाने पर प्रायः आपसे आप बन जाते हैं केलास (क्रिस्टल)। पद—रवा भर=बहुत थोड़ा। जरा सा। ३. सूजी जिसके कण उक्त प्रकार के होते हैं। ४. बारुद का कण या दाना। ५. घुँघरू में बजनेवाला कण या दाना। वि० [फा०] १. उचित। वाजिब। २. प्रचलित। |
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रवा-रवी :
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स्त्री० [फा०] १. जल्दी। शीघ्रता। २. चल-चलाव। ३. भाग-दौड़। |
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रवाज :
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स्त्री० [फा०] १. तरीका। दस्तूर। २. समाज में प्रचलित या मान्य कोई परंपरा या रूढ़ि। प्रथा। रीति। क्रि० प्र०—चलना।—देना।—निकलना।—पाना।—होना। |
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रवादार :
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वि० [फा०] [भाव० रवादारी] १. उचित प्रकार का व्यवहार करने तथा संबंध या लगाव रखनेवाला। उदारचेता। २. शुभचिंतक। हितैषी। ३. सहनशील। वि० =रवेदार। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रवादारी :
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स्त्री० [फा०] १. रवादार होने की अवस्था या भाव। इस बात का ख्याल कि किसी को कष्ट या दुःख न दिया जाय। ३. उदारता। ४. सहृदयता। |
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रवानगी :
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स्त्री० [फा०] रवाना होने की क्रिया या भाव। प्रस्थान। चाला। |
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रवाना :
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वि० [फा० रवानः] १. जिसने कहीं से प्रस्थान किया हो। जो कहीं से चल पड़ा हो। प्रस्थित। २. कहीं से किसी के पास भेजा हुआ। |
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रवानी :
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स्त्री० [फा०] १. रवाँ होने की अवस्था या भाव। २. बहाव। ३. ऐसी गति जिसमें अटक आदि न होती हो। जैसे—पढ़ने या बोलने में रवानी होना। ४. प्रस्थान। रवानगी। (क्व०) |
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रवाब :
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पुं० =रबाब। |
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रवाबिया :
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पुं० [देश] लाल बलुआ पत्थर। पुं० =रबाबिया। |
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रवायत :
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स्त्री० [अ०] १. कहानी। किस्सा। २. कहावत। स्त्री० [अ० रिवायत] १. किसी के मुख से विशेषतः पैगम्बर के मुख से सुनी हुई बात दूसरों से कहना। २. इस प्रकार कही जानेवाली बात। ३. किवदंती। अफवाह। ४. कहावत। ५. किस्सा। कहानी। |
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रवाँस :
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पुं० [देश] बोडे की जाति का एक पौधा और उसकी फली जिसके बीजों की तरकारी बनती है। |
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रवासन :
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पुं० [देश] एक प्रकार का वृक्ष जिसके बीज और पत्ते औषधि के काम आते हैं। |
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रवि :
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पुं० [सं०√रु+इ] १. सूर्य। २. आक। मदार। ३. अग्नि। ४. नायक। नेता। सरदार। ५. लाल अशोक का पेड़। ६. पुराणानुसार एक आदित्य का नाम। ७. एक प्राचीन पर्वत। ८. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। |
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रवि-उच्च :
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पुं० [सं०] किसी ग्रह की कक्षा या भ्रमण-पथ का वह बिंदु जो सूर्य से दूरतम पड़ता हो। ‘रवि-नीच’ का विपर्याय। (एफेलियन) |
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रवि-कर :
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पुं० [सं० ष० त०] सूर्य की किरण। |
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रवि-कांत-मणि :
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पुं० [सं० रवि-कांत, तृ० त० रविकान्त-मणि, कर्म० स०] सूर्यकांत मणि। |
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रवि-कुल :
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पुं० [ष० त०] क्षत्रियों का सूर्यवंश। |
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रवि-चक्र :
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पुं० [ष० त०] १. सूर्य का मंडल। २. सूर्य के रथ का चक्र या पहिया। ३. फलित ज्योतिष में, एक प्रकार का चक्र जो मनुष्य के शरीर के आकार का होता है और जिसमें यथा-स्थान नक्षत्र आदि रख कर बालक के जीवन की शुभ और अशुभ बातों के सम्बन्ध में फल कहा जाता है। |
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रवि-जात :
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पुं० [सं० पं० त०] सूर्य की किरण। वि० रवि से उत्पन्न। |
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रवि-तनया :
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स्त्री० [ष० त०] सूर्य की कन्या यमुना। |
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रवि-तनुजा :
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स्त्री०=रवि-तनया (यमुना)। |
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रवि-दिन :
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पुं० [ष० त०] रविवार। |
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रवि-नतय :
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पुं० [ष० त०] १. यमराज। २. शनैश्चर। ३. सुग्रीव। ४. कर्ण। ५. अश्वनी कुमार। ६. सावर्णि मनु। ७. वैवस्वत मनु। |
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रवि-नंदिनी :
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स्त्री० [ष० त०] यमुना। |
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रवि-नाथ :
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पुं० [ब० स०] पद्म। कमल। |
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रवि-नीच :
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पुं० [सं०] किसी तरह ग्रह की कक्षा या भ्रमण-पथ का वह बिंदु जो सूर्य के निकटतम पड़ता है। ‘रवि-उच्च’ का विपर्याय। (पेरिहीलियन) |
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रवि-पुत्र :
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पुं० =रवि-तनय। |
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रवि-प्रिय :
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पुं० [ब० स०] १. लाल कमल। २. लाल कनेर। ३. ताँबा। ४. आक। मदार। ५. लकुच या लकुट नामक वृक्ष और उसका फल। |
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रवि-प्रिया :
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स्त्री० [ब० स०+टाप्] एक देवी। (पुराण) |
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रवि-बिंब :
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पुं० [ष० त०] १. सूर्य का मंडल। २. माणिक्य या मानिक नामक रत्न। |
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रवि-मंडल :
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पुं० [ष० त०] वह लाल मंडलाकार बिंब जो सूर्य के चारों ओर दिखाई देता है। रविबिंब। |
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रवि-मणि :
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पुं० [मध्य० स०] सूर्यकांत मणि। |
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रवि-मार्ग :
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पुं० [सं०] सूर्य के भ्रमण का मार्ग। क्रांतिवृत्त। (ईक्लिक्टिक) |
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रवि-रत्न :
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पुं० [मध्य० स०] सूर्यकांत मणि। |
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रवि-लोचन :
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पुं० [ब० स०] विष्णु। |
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रवि-लौह :
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पुं० [मध्य० स०] ताँबा। |
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रवि-वंश :
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पुं० [ष० त०] क्षत्रियों का सूर्यकुल। |
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रवि-वंशी (शिन्) :
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वि० [सं० रविवंश+इनि] सूर्यवंशी। |
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रवि-वाण :
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पुं० [सं० उपमित० स०] पौराणिक कथाओं में वर्णित वह वाण जिसके चलाने से सूर्य का सा प्रकाश उत्पन्न होता था। |
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रवि-वार :
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पुं० [ष० त०] शनिवार और सोमवार के बीच का वार। एतवार। |
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रवि-वासर :
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पुं० [ष० त०] रविवार। |
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रवि-संक्रांति :
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स्त्री० [ष० त०] सूर्य का एक राशि में से दूसरी राशि में जाना। सूर्य-संक्रमण। दे० ‘संक्रांति’। |
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रवि-संज्ञक :
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पुं० [ब० स० कप्] ताँबा। |
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रवि-सारथ :
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पुं० [ष० त०] रवि अर्थात्, सूर्य का रथ हाँकनेवाला, अरुण। |
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रवि-सुअन :
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पुं० =रविनंदन (रवि-तनय)। |
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रवि-सुत :
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पुं० =रविनंदन (रवि-तनय)। |
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रवि-सुन्दर :
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पुं० [सं० उपमित स०] वैद्यक में एक प्रकार का रस जिसके सेवन से भगंदर रोग नष्ट हो जाता है। |
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रवि-सूनु :
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पुं० =रविनंदन (रवि-तनय)। |
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रविज :
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पुं० [सं० रवि√अन् (उत्पत्ति)+ड] शनैश्चर, जिसकी उत्पत्ति रवि या सूर्य से मानी जाती है। |
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रविज-केतु :
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पुं० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार का केतु या पुच्छल तारे जिसकी उत्पत्ति सूर्य से मानी गई है। |
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रविजा :
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स्त्री० [सं० रविज+टाप्] यमुना। कालिंदी। |
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रविनंद, रवि-नंदन :
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पुं० =रवि-तनय। |
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रविपूत :
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पुं० रविपुत्र (रवि-तनय)। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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रविश :
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स्त्री० [फा०] १. चलने की क्रिया, ढंग या भाव। गति। चाल। २. आचार-व्यवहार। ३. तौर-तरीका। रंग-ढंग। ४. शैली। ५. बगीचों की क्यारियों के बीच में चलने के लिए बना हुआ छोटा मार्ग। क्रि० प्र०—काटना।—बनाना। |
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रवे-दार :
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वि० [हिं० रवा+फा० दार] जो रवों के रूप में हो। जिसमें रवे हों। |
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रवैया :
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पुं० [फा० रवीयः] १. आचार-व्यवहार। २. चाल-चलन। ३. तौर-तरीका। रंग-ढंग। |
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