शब्द का अर्थ
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रवि :
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पुं० [सं०√रु+इ] १. सूर्य। २. आक। मदार। ३. अग्नि। ४. नायक। नेता। सरदार। ५. लाल अशोक का पेड़। ६. पुराणानुसार एक आदित्य का नाम। ७. एक प्राचीन पर्वत। ८. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। |
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रवि-उच्च :
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पुं० [सं०] किसी ग्रह की कक्षा या भ्रमण-पथ का वह बिंदु जो सूर्य से दूरतम पड़ता हो। ‘रवि-नीच’ का विपर्याय। (एफेलियन) |
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रवि-कर :
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पुं० [सं० ष० त०] सूर्य की किरण। |
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रवि-कांत-मणि :
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पुं० [सं० रवि-कांत, तृ० त० रविकान्त-मणि, कर्म० स०] सूर्यकांत मणि। |
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रवि-कुल :
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पुं० [ष० त०] क्षत्रियों का सूर्यवंश। |
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रवि-चक्र :
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पुं० [ष० त०] १. सूर्य का मंडल। २. सूर्य के रथ का चक्र या पहिया। ३. फलित ज्योतिष में, एक प्रकार का चक्र जो मनुष्य के शरीर के आकार का होता है और जिसमें यथा-स्थान नक्षत्र आदि रख कर बालक के जीवन की शुभ और अशुभ बातों के सम्बन्ध में फल कहा जाता है। |
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रवि-जात :
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पुं० [सं० पं० त०] सूर्य की किरण। वि० रवि से उत्पन्न। |
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रवि-तनया :
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स्त्री० [ष० त०] सूर्य की कन्या यमुना। |
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रवि-तनुजा :
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स्त्री०=रवि-तनया (यमुना)। |
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रवि-दिन :
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पुं० [ष० त०] रविवार। |
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रवि-नतय :
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पुं० [ष० त०] १. यमराज। २. शनैश्चर। ३. सुग्रीव। ४. कर्ण। ५. अश्वनी कुमार। ६. सावर्णि मनु। ७. वैवस्वत मनु। |
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रवि-नंदिनी :
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स्त्री० [ष० त०] यमुना। |
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रवि-नाथ :
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पुं० [ब० स०] पद्म। कमल। |
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रवि-नीच :
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पुं० [सं०] किसी तरह ग्रह की कक्षा या भ्रमण-पथ का वह बिंदु जो सूर्य के निकटतम पड़ता है। ‘रवि-उच्च’ का विपर्याय। (पेरिहीलियन) |
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रवि-पुत्र :
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पुं० =रवि-तनय। |
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रवि-प्रिय :
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पुं० [ब० स०] १. लाल कमल। २. लाल कनेर। ३. ताँबा। ४. आक। मदार। ५. लकुच या लकुट नामक वृक्ष और उसका फल। |
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रवि-प्रिया :
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स्त्री० [ब० स०+टाप्] एक देवी। (पुराण) |
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रवि-बिंब :
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पुं० [ष० त०] १. सूर्य का मंडल। २. माणिक्य या मानिक नामक रत्न। |
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रवि-मंडल :
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पुं० [ष० त०] वह लाल मंडलाकार बिंब जो सूर्य के चारों ओर दिखाई देता है। रविबिंब। |
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रवि-मणि :
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पुं० [मध्य० स०] सूर्यकांत मणि। |
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रवि-मार्ग :
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पुं० [सं०] सूर्य के भ्रमण का मार्ग। क्रांतिवृत्त। (ईक्लिक्टिक) |
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रवि-रत्न :
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पुं० [मध्य० स०] सूर्यकांत मणि। |
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रवि-लोचन :
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पुं० [ब० स०] विष्णु। |
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रवि-लौह :
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पुं० [मध्य० स०] ताँबा। |
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रवि-वंश :
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पुं० [ष० त०] क्षत्रियों का सूर्यकुल। |
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रवि-वंशी (शिन्) :
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वि० [सं० रविवंश+इनि] सूर्यवंशी। |
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रवि-वाण :
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पुं० [सं० उपमित० स०] पौराणिक कथाओं में वर्णित वह वाण जिसके चलाने से सूर्य का सा प्रकाश उत्पन्न होता था। |
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रवि-वार :
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पुं० [ष० त०] शनिवार और सोमवार के बीच का वार। एतवार। |
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रवि-वासर :
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पुं० [ष० त०] रविवार। |
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रवि-संक्रांति :
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स्त्री० [ष० त०] सूर्य का एक राशि में से दूसरी राशि में जाना। सूर्य-संक्रमण। दे० ‘संक्रांति’। |
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रवि-संज्ञक :
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पुं० [ब० स० कप्] ताँबा। |
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रवि-सारथ :
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पुं० [ष० त०] रवि अर्थात्, सूर्य का रथ हाँकनेवाला, अरुण। |
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रवि-सुअन :
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पुं० =रविनंदन (रवि-तनय)। |
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रवि-सुत :
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पुं० =रविनंदन (रवि-तनय)। |
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रवि-सुन्दर :
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पुं० [सं० उपमित स०] वैद्यक में एक प्रकार का रस जिसके सेवन से भगंदर रोग नष्ट हो जाता है। |
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रवि-सूनु :
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पुं० =रविनंदन (रवि-तनय)। |
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रविज :
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पुं० [सं० रवि√अन् (उत्पत्ति)+ड] शनैश्चर, जिसकी उत्पत्ति रवि या सूर्य से मानी जाती है। |
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रविज-केतु :
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पुं० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार का केतु या पुच्छल तारे जिसकी उत्पत्ति सूर्य से मानी गई है। |
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रविजा :
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स्त्री० [सं० रविज+टाप्] यमुना। कालिंदी। |
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रविनंद, रवि-नंदन :
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पुं० =रवि-तनय। |
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रविपूत :
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पुं० रविपुत्र (रवि-तनय)। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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रविश :
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स्त्री० [फा०] १. चलने की क्रिया, ढंग या भाव। गति। चाल। २. आचार-व्यवहार। ३. तौर-तरीका। रंग-ढंग। ४. शैली। ५. बगीचों की क्यारियों के बीच में चलने के लिए बना हुआ छोटा मार्ग। क्रि० प्र०—काटना।—बनाना। |
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