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शब्द का अर्थ

रात्रि  : स्त्री० [सं० रा (देना)+क्विप्] १. निशि। रात। पद—रात्रिदिव। २. हलदी। २. पुराणानुसार क्रौंच द्वीप की एक नदी।
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रात्रि-जागर  : पुं० [सं० रात्रि√जागृ (जागना)+अच्] १. रात में होनेवाला जागरण। रत-जगा। २. कुत्ता जो रात को जागता है।
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रात्रि-नाशन  : पुं० [सं० ष० त०] सूर्य।
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रात्रि-पुष्प  : पुं० [सं० ब० स०] रात में खिलनेवाला पुष्प। कुँई।
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रात्रि-बल  : पुं० [सं० ब० स०] राक्षस।
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रात्रि-मणि  : पुं० [सं० ष० त०] चंद्रमा।
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रात्रि-राग  : पुं० [सं० ष० त०] अंधकार। अँधेरा।
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रात्रि-वास (सस्)  : पुं० [सं० ष० त०] १. रात के समय पहनने के कपड़े। २. अंधकार। अँधेरा।
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रात्रि-विराम  : पुं० [सं० ष० त०] तड़का। प्रभात।
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रात्रि-सूक्त  : पुं० [सं० मध्य० स०] ऋग्वेद के एक सूक्त का नाम।
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रात्रि-हास  : पुं० [सं० ष० त०] कुमुद। कुई।
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रात्रिक  : पुं० [सं० रात्रि+क] एक प्रकरा का बिच्छू।
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रात्रिकार  : पुं० [सं० रात्रि√कृ+ट] १. चंद्रमा। २. कपूर।
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रात्रिंचर  : वि० [सं० रात्रि√चर् (गति)+खच्, मुमागम] रात में घूमने वाला। पुं० राक्षस। निशाचर।
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रात्रिचर  : पुं० [सं० रात्रि√चर् (गति)+ट] राक्षस। निशाचर। वि० रात के समय विचरने या घूमने-फिरनेवाला।
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रात्रिचारी (रिन्)  : पुं० [सं० रात्रि√चर्+णिनि]=रात्रिचर।
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रात्रिज  : पुं० [सं० रात्रि√जन् (उत्पत्ति)+ड] रात में उत्पन्न होनेवाला। पु० तारा नक्षत्र आदि।
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रात्रिंदिव  : अ० [सं० द्व० स० नि० सिद्धि] रात-दिन।
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रात्रिमट  : पुं० [सं० रात्रि√अट् (गति)+अच्, मुम्-आगम] राक्षस।
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रात्रिवेद  : पुं० [सं० रात्रि√विद् (ज्ञान)+णिच्+अण्] मुरगा।
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रात्रिसाम (मन्)  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का साम।
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रात्रिहिंडक  : पुं० [सं० ष० त०] राजाओं के अन्तःपुर का पहेरदार।
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