शब्द का अर्थ
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रीत :
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स्त्री० [सं० रीति] प्रथा। रिवाज। |
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रीतना :
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अ० [सं० रिक्त, प्रा० रिन्त+ना (प्रत्यय)] खाली होना। रिक्त होना। स० रिक्त या खाली करना। |
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रीता :
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वि० [सं० रिक्त, प्रा० रित्त] [स्त्री० रीता] १. (पात्र) जिसमें कोई चीज भरी या रखी हुई न हो। २. (हाथ) जिसमें अस्त्र, धन आदि कुछ न हो। ३. जिसके पास कुछ न हो। |
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रीति :
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स्त्री० [सं०√री (गति)+क्तिन्, वा० क्तिच्] १. गति में आना, चलना या बहना। २. पानी का झरना या नदी। ३. सीमा सूचित करनेवाली रेखा। ४. मार्ग। रास्ता। ५. काम करने का विशिष्ट ढंग या प्रकार। ६. पहले से चली आयी हुई प्रणाली या प्रथा। रस्मरवाज। ७. कायदा। नियम। ८. संस्कृत साहित्य में, विशिष्ट प्रकार का ऐसी पद—रचना या लेख-शैली जो ओज, प्रसाद, माधुर्य आदि गुण उत्पन्न करती हो या कृति में जान लाती हो। विशेष—हमारे यहाँ भिन्न-भिन्न देशों के संस्कृत कवि तथा साहित्यकार अपनी-अपनी रचनाओं में कुछ अलग और विशिष्ट प्रकार या शैली में ओज, प्रसाद आदि गुण लाते थे, इसी से उन देशों की शैलियों के आधार पर ये चार रीतियाँ मुख्य मानी गई थीं-वैदर्भी, गौड़ी, पांचाली या पंचालिका और लाटी। परवर्ती साहित्यकारों ने मागधी और मैथिली नाम की रीतियाँ भी मानी थी। ९. मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य में, काव्य-रचना की वह प्रणाली या शैली जो आचार्यों द्वारा निरूपित शास्त्रीय नियमों, लक्षणों, सिद्धान्तों आदि पर आश्रित होती थी और जिसमें अलंकार, ध्वनि, पिंगल, रस आदि बातों का पूरा ध्यान रखा जाता था। इधर कुछ दिनों से इस प्रकार की काव्य-रचना क्रमशः बहुत घटती जा रही हैं, और इसका प्रचलन उठता जा रहा है। १॰. लोहे की मैल। मंडूर। ११. जले हुए सोने की मैल। १२. पीतल। १३. सीसा। १४. प्रवृत्ति। स्वभाव। १५. प्रशंसा। स्तुति। |
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रीति-काल :
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पुं० [सं० ष० त०] हिंदी साहित्य के इतिहास में, उसका उत्तर-मध्य काल जो ई० १७ वीं शताब्दी के मध्य से ई० १९ वीं शताब्दी के मध्य तक माना जाता है और जिसमें अलंकार, नायिका, भेद, रस आदि के नियमों और लक्षणों से युक्त काव्य की रचनाएँ होती थीं। |
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रीतिक :
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वि० [सं० रीति से] १. रीति संबंधी। २. रीति के रूप में होनेवाली। ३. जो ठीक या निश्चित रीति (प्रणाली अथवा प्रथा) के अनुरूप या अनुसार हो। औपचारिक। (फार्मल)। पुं० पुष्पांजन। |
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रीतिका :
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स्त्री० [सं० रीति+कन्+टाप्] १. जस्ते का भस्म। २. पीतल। |
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रीतिकाव्य :
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पुं० [मध्य० स०] हिन्दी में, ऐसा काव्य जो अलंकार, ध्वनि नायिका भेद रस आदि तत्त्वों का ध्यान रखते हुए लिखा गया हो। दे० ‘रीति’। |
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रीतिवाद :
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पुं० [सं० ष० त०] [वि० रीतिवादी] १. कला, साहित्य आदि के क्षेत्रों में यह मतवाद या सिद्धान्त कि परम्परा से जो रीतियाँ चली आ रही हैं, उनका दृढ़तापूर्वक और पूरा-पूरा पालन होना चाहिए। (फार्मलिज्म) २. हिन्दी साहित्य में यह मतवाद या सिद्धान्त कि काव्य के क्षेत्र में अलंकारों, नायिकाभेदों, रसों आदि के नियमों और लक्षणों का पूरी तरह से पालन करते हुए ही सह रचनाएँ होनी चाहिए। |
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रीतिवादी (दिन्) :
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वि० [सं० रीतिवाद+इनि] रीतिवाद संबंधी। रीतिवाद का। |
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