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शब्द का अर्थ

रु  : पुं० [सं० +रु धातु का अनुकरण] १. शब्द। २. वध। हत्या। ३. गति। चाल। अव्य० हिं० अरु (और) का संक्षिप्त रूप। उदाहरण—सीतलता सुगंधि की महिमा घटी न सूर।—बिहारी।
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रुआँ  : पुं० =रोआँ। (रोम)। पुं० =रुआ (घास)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रुआब  : पुं० =रोब।
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रुआला  : स०=रुलाना।
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रुआँली  : स्त्री०=रुआली। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रुआली  : स्त्री० [हिं० रूई+आलि] रूई की बनी हुई पोली बत्ती या पूनी जो स्त्रियाँ चरखे पर सूत कातने के लिए सिरकी पर लपेट कर बनाती है। पूना। पौनी।
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रुई  : स्त्री० [देश] छोटे आकार का एक प्रकार का पहाड़ी पेड़। इसकी छाल और पत्तियाँ रँगाई के काम में आती है। स्त्री०=रूई।
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रुई  : स्त्री०=रूई।
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रुकना  : अ० [हिं० रोक] १. आगे बढ़ने या चलने के समय बीच में किसी कारण से कुछ समय के लिए ठहरना। आगे चलने या बढ़ने से विरत होना। जैसे—गाड़ी घोड़े या यात्री का रुकना। संयो० क्रि०—जाना।—पड़ना। २. मार्ग में किसी प्रकार की बाधा या रुकावट होने के कारण काम का कुछ समय के लिए स्थगित होना। जैसे—(क) उस पुस्तक के बिना हमारा काम रुका पड़ा है। (ख) यह घड़ी चलते-चलते बीच में रुक जाती है। ३. चलते हुए काम का बंद हो जाना। ४. किसी प्रकार के क्रम या सिलसिले का बंद होना। ५. संभोग करते समय पुरुष का ऐसी स्थिति में होना कि उसका जल्दी वीर्यपात न होने पावे (बाजारू)।
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रुकमंगद  : पुं० =रुक्मांगद (एक राजा)।
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रुकमंजनी  : स्त्री० [सं० रुक्मांजनी] १. एक प्रकार का पौधा जो बागों में सजावट के लिए लगाया जाता है। २. इस पौधे का फूल।
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रुकमिनी  : स्त्री०=रुक्मिणी।
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रुकरा  : पुं० [देश] एक प्रकार का ऊख या गन्ना।
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रुकवाना  : स० [हिं० रुकना का प्रे०] १. ऐसा काम करना जिससे कोई चलता हुआ काम या सिलसिला ठप हो जायँ। २. दूसरे को कुछ रोकने में प्रवृत्त करना।
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रुकाव  : पुं० [हिं० रुकना] १. रुकने की अवस्था, क्रिया या भाव। रुकावट। अटकाव। अवरोध। २. पेट में माल रुकना। कब्जियत।
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रुकावट  : स्त्री० [हिं० रुकाव+वट (प्रत्यय)] वह चीज या बात जो रोक के रूप में हो। बाधा या विघ्न के रूप में होनेवाली बात।
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रुकुम  : पुं० =रुक्म।
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रुकुमी  : पुं० =रुक्मी।
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रुक्का  : पुं० [अ० रुक्कअः] १. छोटा पत्र या चिट्ठी। पुरजा। परचा। २. वह लेख जो हुंडी या कर्जा लेनेवाले रुपये लेते समय लिखकर महाजन को देते हैं।
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रुक्ख  : पुं० =रुख (पेड़)। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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रुक्म  : पुं० [सं०√रुच् (शोभित होना)+मक्, कुत्व] १. स्वर्ण। सोना। २. धतूरा। ३. लोहा। ४. नाग-केसर। ५. रुक्मिणी के एक भाई का नाम।
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रुक्म-कारक  : पुं० [सं० ष० त०] सोने के गहने बनानेवाला अर्थात् सुनार।
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रुक्म-वाहन  : पुं० [सं० ब० स०] द्रोणाचार्य।
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रुक्मपाश  : पुं० [सं० मध्य० स०] सूत का बना हुआ वह फंदा या लड़ जिसमें गहनों की गुरियाँ मनके आदि पिरोये रहते हैं।
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रुक्मपुर  : पुं० [सं०] पुराणानुसार एक नगर जहाँ गरुड़ का निवास है।
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रुक्मरथ  : पुं० [सं० ब० स०] १. शल्य का एक पुत्र। २. भीष्मक का एक पुत्र। ३. द्रोणाचार्य का एक नाम।
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रुक्मवती  : स्त्री० [सं० रुक्म+मतुप्, +ङीष्] १. एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में ‘भ म स ग (ऽ।।ऽऽऽ।।ऽऽ) होते हैं। इसे ‘रम्यवती’ तथा ‘चम्पकमाला’ भी कहते हैं।
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रुक्मसेन  : पुं० [सं०] रुक्मिणी का छोटा भाई।
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रुक्मि  : पुं० [सं०] रम्यक और हिरण्यवर्ष के बीच स्थित पाँचवा वर्ष (जैन)।
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रुक्मि-दर्प  : पुं० [सं० ब० स०] बलदेव।
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रुक्मिण  : स्त्री०=रुक्मिणी।
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रुक्मिणी  : स्त्री० [सं० रुक्म+इनि+ङीष्] श्रीकृष्ण की पटरानियों में से बड़ी और पहली रानी जो विदर्भ राजा भीष्मक की कन्या थी।
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रुक्मिदारी (रिन्)  : पुं० [सं० रुक्मिन्√दृ (विदारण)+णिनि] बलदेव।
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रुक्मी (क्मिन्)  : पुं० [सं० रुक्म+इनि] रुक्मिणी के बड़े भाई का नाम।
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रुक्ष  : वि० [सं० रूक्ष] [भाव० रुक्षता] १. (वस्तु) जिसका तल चिकना तथा मुलायम न हो, बल्कि रूखा तथा ऊबड़-खाबड़ हो। २. अस्निग्ध। ३. असहृदय। नीरस। ४. कठोर। पुं० =रुख (वृक्ष)।
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रुक्षता  : स्त्री० [सं० रूक्षता] १. रूक्ष होने की अवस्था, धर्म या भाव। २. रूखाई। ३. असहृदयता।
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रुख  : पुं० [फा०] १. कपोल। गाल। २. चेहरा या मुँह जो प्रायः मनोभावों का सूचक होता है। मुहावरा—रूख मिलना
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रुख-चढ़वा  : पुं० [हिं० रूख+चढ़ना] १. शाखा मृग बंदर। २. भूत या प्रेत जिसका निवास प्रायः वृक्षों पर माना जाता है।
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रुखदार  : वि० [रुखदार] (बाजार भाव) जिसमें नित्य तेजी-मंदी आती रहती हो।
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रुखना  : अ०=रूठना।
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रुखसत  : स्त्री० [अं० रुख्सत] १. कहीं से चलने के समय विदा होने की क्रिया या भाव। २. नौकरी, सेवा आदि से मिलनेवाली अल्पकालीन छुट्टी। अवकाश। ३. अनुज्ञा। अनुमति। परवानगी। (क्व०) ४. उर्दू काव्य में दुल्हे के घर जाना। क्रि० प्र०—देना।—पाना।—मिलना।—लेना। वि० जो कहीं से विदा होकर चल पड़ा हो। जिसने प्रस्थान किया हो।
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रुखसताना  : पुं० [फा० रुख्स्तानः०] रुख्सत अर्थात् विदाई के समय दिया अथवा बाँटा जानेवाला धन।
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रुखसती  : वि० [अं० रुखसत+ई (प्रत्यय)] १. रुखसत सम्बन्धी। रुखसत का। २. जिसे रुखसत या छुट्टी मिली हो। स्त्री० १. रुखसत। विदाई। २. मैके से विवाहित कन्या के घर जाने की क्रिया या भाव। ३. उक्त विदाई के समय कन्या या दामाद को मिलनेवाला धन।
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रुखसार  : पुं० [फा० रुखसार] कपोल। गाल।
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रुखा  : वि० [फा० रुख] [स्त्री० रुखी] रुख या पार्श्व वाला। (यौ० के अंत में) जैसे—दोरुखा, चौरुखा आदि।
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रुखाई  : स्त्री० [हिं० रुखा+आई (प्रत्यय)] १. रूखे होने की अवस्था, धर्म या भाव। रूखापन। रुखावट। २. खुश्की। शुष्टकता। ३. व्यवहार आदि की कठोरता और नीरसता। बेमुरौवती।
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रुखान  : स्त्री०=रुखानी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रुखानल  : पुं० [सं० रोषानल] क्रोधाग्नि। (डि०)
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रुखाना  : अ० [हिं० रुखा+आना (प्रत्यय)] १. रुखा होना। चिकना न रह जाना। २. नीरस या फीका करना। अ० [फा० रुख] किसी ओर रुख होना। स०किसी ओर रुख करना।
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रुखानी  : स्त्री० [सं० रोक=छेद+खनिज खोदने की चीज] १. बढ़इयों की लकड़ी छीलने का एक छोटा उपकरण। २. संगतराशों की टाँकी।
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रुखावट  : स्त्री०=रुखाई।
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रुखावट  : स्त्री०=रुखावट (रुखाई)।
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रुखिता  : स्त्री० [सं० रुषिता] वह नायिका जो रोष या क्रोध कर रही हो। रूठी हुई मानवती नायिका।
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रुखिया  : स्त्री० [हिं० रुख+इया (प्रत्यय)] पेड़ों की छाया से युक्त भूमि। वि० छायाकार।
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रुखुरी  : स्त्री० [हिं० रूखा] भूना हुआ चना आदि। चबैना। (पूरब)। स्त्री० [हिं० रुख] बहुत छोटा पौधा।
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रुखौहाँ  : वि० [हिं० रुखा+औहाँ (प्रत्यय)] [स्त्री० रुखौही] जिसमें रूखापन हो। जैसे—रुखौहें नैन।
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रुगण्ता  : स्त्री० [सं० रुग्ण+तल्+टाप्] रुग्ण होने की अवस्था या भाव।
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रुगना  : पुं० [हिं० रोग] पशुओं का एक रोग। टपका।
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रुगिया  : वि० =रोगी।
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रुगौन  : पुं० [देश] घलुआ। घाल।
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रुग्ण  : वि० [सं०√रुज् (रोग)+क्त, त-न] १. जो किसी रोग से ग्रस्त हो। बीमार। २. जिसमें किसी प्रकार का दूषित विकार हुआ हो। ३. टेढ़ा। ४. टूटा हुआ।
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रुग्णालय  : पुं० [सं०] १. रोगियों के रखे जाने का स्थान। २. आज-कल किसी बड़े भवन या संस्था में वह कमरा या स्थान, जहाँ घायल रोगी आदि चिकित्सा के लिए रखे जाते हैं।
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रुग्णावकाश  : पुं० [सं० रुग्ण-अवकाश, ष० त०] रुग्णावकाश के कारण ली जानेवाली छुट्टी। बीमारी की छुट्टी। (मेडिकल लीव)
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रुग्दाह  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का सन्निपात जो बीस दिनों तक रहता है, और प्रायः असाध्य माना जाता है।
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रुच  : स्त्री०=रुचि।
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रुचक  : वि० [√रुच् (दीप्ति)+क्वुन्-अक] १. रुचनेवाला। रुचि के अनुकूल प्रतीत होनेवाला। रोचक। २. जायकेदार। स्वादिष्ट। पुं० १. वास्तु विद्या के अनुसार ऐसा घर जिसके चारों ओर के अलिंद (चबूतरा या परिक्रमा) में से पूर्व और पश्चिम का सवर्था नष्ट हो गया हो और उत्तर तथा दक्षिण का समूचा ज्यों का त्यों हो। इसका उत्तर का द्वार अशुभ और शेष द्वार शुभ माने गये हैं। २. चौकीदार खंभा। ३. पुराणानुसार सुमेरु पर्वत के पास का एक पर्वत। ४. जैन हरिवंश के अनुसार हरिवर्ष का एक पर्वत। ५. मांगल्य द्रव्य। ६. माला। ७. घोड़ो आदि को पहनाये जानेवाले गहने। ८. प्राचीन काल का निष्क नामक सिक्का। ९. दाँत। १॰. कबूतर। ११. रोचना। १२. नमक। १३. काला नमक। १४. सज्जी खार। १५. बायबिंडंग। १६. दिशा। बिजौरा नींबू। १७. दक्षिण दिशा।
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रुचदान  : वि० [सं० रुचि-दान=देनेवाला] भला लगने योग्य। जो अच्छा लग सके।
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रुचना  : वि० [सं० रुच+हिं० ना (प्रत्यय)] रुचि के अनुकूल प्रतीत होना। प्रिय तथा भला लगना। पद—रुच रुच=रुचिपूर्वक।
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रुचा  : स्त्री० [सं०√रुच्+क्विप्+टाप्] १. दीप्ति। प्रकाश। २. छवि। शोभा। ३. इच्छा। कामना। ४. चिड़ियों के बोलने का शब्द।
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रुचि  : स्त्री० [सं०√रुच्+इन्] १. आभा। चमक। २. छवि। शोभा। ३. प्रकाश की किरण। ४. खाने-पीने की चीजों में आने या होनेवाला स्वाद। ५. मन की वह प्रवृत्ति या स्थिति जिसके फलस्वरूप कुछ काम, चीजें या बातें अच्छी और प्रिय जान पड़ती है, अथवा उनकी और मनुष्य झुकता और बढ़ता है। जैसे—(क) वृद्धावस्था में प्रायः धर्म की ओर लोगों की रुचि होने लगती है। (ख) इस समय कुछ खाने की हमारी रुचि नहीं है। ६. मनुष्य की यह योग्यता या शक्ति जिसके आधार पर वह कला, संगीत, साहित्य आदि के गुण या विशेषताएँ परखता और उसका आदर करता है। जैसे—(क) इस विषय में उनकी रुचि असाधारण और विलक्षण है। (ख) यह तो अपनी अपनी रुचि की बात है। ७. इच्छा। कामना। ८. किसी पदार्थ या व्यक्ति के प्रति होनेवाला अनुराग या आसक्ति। ९. कामशास्त्र के अनुसार एक प्रकार का आलिंगन। १॰. गोरोचन। वि० रुचिर। पुं० रौच्य मनु के पिता का नाम, जो एक प्रजापति माने गये हैं।
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रुचि-धाम (मन्)  : पुं० [सं० ष० त०] सूर्य।
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रुचि-फल  : पुं० [सं० मध्य० स०] नासपाती।
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रुचि-वर्द्धक  : वि० [सं० ष० त०] १. रुचि उत्पन्न करने या बढ़ानेवाला। २. भोजन की रुचि या भूख बढ़ानेवाला। (वैद्यक)
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रुचिकर  : वि० [सं० ष० त०] १. (विषय) जिसमें रुचि होती तथा मन रमता हो। २. भला लगनेवाला। ३. रुचि उत्पन्न करनेवाला। ४. भूख बढ़ानेवाला। (वैद्यक)।
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रुचिकारक  : वि० [सं० ष० त०] रुचिकर। (दे०)
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रुचिकारी (रिन्)  : वि० [सं० रुचि√कृ (करना)+णिनि, उप० स०] १. रुचि उत्पन्न करनेवाला। रुचिकर। २. स्वादिष्ट। ३. मनोहर। सुन्दर।
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रुचित  : भू० कृ० [सं० रुच+कितच्] १. जो रुचि के अनुकूल प्रतीत हुआ हो। पचाया हुआ। (वैद्यक) ३. [√रुचि+क्त] चाहा हुआ। पुं० १. इच्छा। २. मधुर और रुचनेवाला पदार्थ।
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रुचिभर्ता (र्तृ)  : पुं० [सं० ष० त०] १. सूर्य्य। २. मालिक। स्वामी। वि० आनन्ददायक। सुखद।
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रुचिमती  : स्त्री० [सं० रुचि+मतुप्, +ङीष्] उग्रसेन की पत्नी जो कृष्णचन्द्रजी की नानी तथा देवकी की माता थी।
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रुचिर  : वि० [सं०√रुच्+किरच्] १. जो रुचि के अनुकूल हो। अच्छा। भला। २. मनोहर। सुन्दर। ३. मधुर। मीठा। पुं० १. केसर। २. लौंग। ३. मूली।
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रुचिरता  : स्त्री० [सं० रुचिर+तल्+टाप्] रुचिर होने की अवस्था धर्म या भाव।
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रुचिरा  : स्त्री० [सं० रुचि+टाप्] १. सुप्रिया नामक छंद का एक नाम। २. एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में ज, भ, स, ज, ग, (।ऽ। ऽ।। ।।ऽ।ऽ। ऽ) होते हैं। ३. रामायण के अनुसार एक प्राचीन नदी। ४. केसर। ५. लौंग। ६. मूली।
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रुचिराई  : स्त्री०=रचिरता।
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रुचिरांजन  : पुं० [सं० रुचिर-अंजन, कर्म० स०] शोभांजन। सहिजन।
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रुचिष्य  : पुं० [सं०√रुच् (प्रीति)+किष्यन्] खाने का मधुर खाद्य पदार्थ। वि० जिसके प्रति रुचि हो अथवा हो सकती हो। रुकनेवाला।
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रुची  : स्त्री० [सं० रुचि+ङीष्]=रुचि
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रुच्छ  : वि० [सं० रुक्ष] १. रूखा। रूक्ष। २. अप्रसन्न। नाराज। पुं० =रूख (वृक्ष)।
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रुच्य  : वि० [सं०√रुच्+क्यप्] १. रुचिकर। २. मनोहर। सुन्दर। पुं० १. सेंधा नमक। २. जड़हन धान। ३. पति। स्वामी।
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रुज  : पुं० [सं०√रुज्+क, घञर्थ] १. टूटने या अस्थिभंग होने का भाव। २. कष्ट। वेदना। ३. क्षत। घाव। ४. प्राचीन काल का एक प्रकर का बाजा जिस पर चमड़ा मढ़ा होता था।
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रुज-ग्रस्त  : वि० [सं० तृ० त०] रुग्ण। रोगी।
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रुजगार  : पुं० =रोजगार।
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रुजा  : स्त्री० [सं०√रुज्+क्विप्+टाप्] १. टूटने-फूटने या भंग होने का भाव। २. रोग। बीमारी। ३. कष्ट। पीडा। ४. कुष्ठ नामक रोग। कोढ़। ५. भेड़।
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रुजाकर  : वि० [सं० ष० त०] रोग उत्पन्न करने या बढ़ानेवाला। पुं० १. रोग। बीमारी। २. कमरख (फल)।
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रुजाली  : स्त्री० [सं० रुजा-आली, ष० त०] १. रोगों या कष्टों का समूह। २. ऐसी स्थिति जिसमें एक साथ कई रोग सता रहे हों। ३. एक पर एक अथवा एक न एक रोग लगा रहना।
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रुजी  : वि० [सं० रुज=रोग] रुग्ण। रोगी।
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रुजू  : वि० [अ० रुजूअ=प्रवृत्त] १. जिसकी तबीयत किसी ओर झुकी या लगी हो। २. जो किसी ओर प्रवृत् हो।
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रुझना  : अ० [सं० रुद्ध, प्रा० रुज्झ] घाव आदि का भरना या पूजना। अ०१. =रुकना। २. =उछलना। अ० [सं० रंजन] १. मन बहलाने के लिए किसी काम में लगे रहना। ३. किसी कार्य के सम्पादन में प्रवृत्त होना या लगना।
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रुझनी  : स्त्री० [देश] एक प्रकार की लंबी चोंचवाली छोटी चिड़िया। जिसकी पीठ काली और छाती सफेद होती है।
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रुठ  : स्त्री० [सं० रुष्ट, प्रा० रुद्द] १. रूठने की क्रिया या भाव। २. क्रोध। गुस्सा। रोष।
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रुठना  : अ०=रूठना।
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रुठनि  : स्त्री०=रूठन।
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रुंड  : पुं० [देश] एक प्रकार का बाजा।
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रुंड  : पुं० [सं०√रुण्ड् (चौर्य)+अच्] १. ऐसा धड़ जिसका सिर कट गया हो। बिना सिर का धड़। कबंध। २. ऐसा शरीर जिसके हाथ पैर कट गये हो।
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रुंडिका  : स्त्री० [सं० रुण्ड+ठन्—इक, टाप्] १. युद्धभूमि। रणक्षेत्र। २. विभूति।
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रुणा  : स्त्री० [सं०] सरस्वती नदी की एक शाखा।
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रुणित  : भू० कृ० [सं० रणित] मधुर ध्वनि या शब्द करता हुआ। बजता हुआ।
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रुत  : पुं० [सं०√रु (शब्द)+क्त] १. पक्षियो का शब्द। कलरव। २. ध्वनि। शब्द। स्त्री०=ऋतु।
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रुतबा  : पुं० [अ० रुत्बः] १. सामाजिक दृष्टि से होनेवाली वह अच्छी और ऊँची स्थिति जिसमें यथेष्ट आदर, प्रतिष्ठा या सत्कार हो। २. राज्य या शासन की सेवा में मिलनेवाला कोई अच्छा और ऊंचा पद। ३. बड़ाई। महत्ता। श्रेष्ठता।
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रुंद  : पुं० [हिं० रूँधना] शत्रु की गोलियाँ आदि से रक्षा के लिए खड़ी की हुई कच्ची मिट्टी की दीवार। उदाहरण—क्या रोती खंदक रुंद बड़े। क्या बुर्ज, कंगूर अनमोल।—नजीर।
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रुदंती  : स्त्री० [सं०√रुद् (रोना)+झच्-अन्त, +ङीष्] एक प्रकार का छोटा क्षुप। संजीवनी। रुद्रवंती।
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रुदथ  : पुं० [सं०√रुद्+अथ्] १. कुत्ता। २. छोटा बच्चा। ३. मुर्गा।
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रुदन  : पुं० [सं० रोदन] १. रोने की क्रिया या भाव। २. रोने पर होनेवाला शब्द।
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रुदराछ  : पुं० =रुद्राक्ष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रुँदवाना  : स० १. =रौंदवाना। २. =रुँधवाना।
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रुदित  : भू० कृ० [सं०√रुद् (रोना)+क्त] रोता हुआ।
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रुदुआ  : पुं० [देश] अगहन मास में होनेवाला एक प्रकार का धान।
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रुद्ध  : भू० कृ० [सं०√रुधू (आवरण)+क्त] १. रुका या रोका हुआ। बाधित। २. घिरा या घेरा हुआ। ३. पकड़ा हुआ। ४. जिसकी चाल या गति बंद हो गई हो। बंद। ५. मुँदा हुआ।
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रुद्ध-कंठ  : वि० [सं० ब० स०] करुणा, दया, प्रेम आदि के कारण जिसका गला रुँध गया हो, और फलतः जिसके मुँह से ठीक तरह से और पूरी बात न निकलती हो।
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रुद्ध-मूत्र  : पुं० [सं० ब० स०] मूत्रकच्छ् (रोग)।
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रुद्धक  : पुं० [सं० रुद्ध+कन्] नमक।
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रुद्धार्त्तव  : पुं० [सं०] स्त्रियों का एक रोग जिसमें उनका मासिक धर्म उचित समय से पहले ही बंद हो जाता या रुक जाता है। (एमेनोरिया)
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रुद्र  : वि० [सं०√रुद्+णिच्+रक्, णि-लुक] १. रुलानेवाला। २. रोने से छुड़ाने या रोना बन्द करनेवाला। ३. डरावना। भयंकर। पुं० १. एक प्रकार का गण देवता। जिनकी उत्पत्ति सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा की भौहों से मानी गई है और जो संख्या में ११ कहे गये हैं। २. उक्त के आधार पर ११ सूचक संख्या की संज्ञा। ३. शिव का एक रूप। ४. प्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा। ५. आक या मदार का पौधा। ६. साहित्य में रौद्र रस।
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रुद्र-कमल  : पुं० [मध्य० सं०] रुद्राक्ष।
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रुद्र-कलस  : पुं० [मध्य० स०] वह कलस जिसकी स्थापना ग्रहों आदि की शांति के उद्देश्य से की जाती है।
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रुद्र-काली  : स्त्री० [कर्म० स० वा ष० त०] शक्ति या दुर्गा की एक मूर्ति का नाम।
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रुद्र-कोटि  : पुं० [सं०] एक प्राचीन तीर्थ जिसमें रुद्रों का निवास माना गया है।
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रुद्र-क्रीडा़  : पुं० [रुद्र-आक्रीड़ा, ब० स०] रुद्र या शिव का क्रीड़ा-स्थल, अर्थात् मरघट या श्मशान।
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रुद्र-गण  : पुं० [सं० ष० त०] पुराणानुसार शिव के पारषद् या अनुचर जिनकी संख्या तीस करोड़ मानी जाती है।
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रुद्र-गर्भ  : पुं० [सं० ब० स०] अग्नि। आग।
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रुद्र-जटा  : स्त्री० [ष० त०] १. इसरौल। ईसरमूल। २. सौंफ। ३. एक प्रकार का क्षुप। जिसके पत्ते मयूर शिखा के पत्तों की तरह के होते हैं।
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रुद्र-तनय  : पुं० [सं०] जैन हरिवंश के अनुसार तीसरे श्रीकृष्ण का एक नाम।
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रुद्र-ताल  : पुं० [सं० मध्य० स०] मृदंग का एक ताल जो सोलह मात्राओं का होता है। इसमें ११ आघात और ५ खाली होते हैं।
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रुद्र-तेज (जस्)  : पुं० [सं० ष० त०] स्वामी कार्तिकेय।
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रुद्र-पति  : पुं० [ष० त०] शिव। महादेव।
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रुद्र-पत्नी  : स्त्री० [ष० त०] १. दुर्गा का एक नाम। २. अतसी। अलसी।
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रुद्र-पीठ  : पुं० [ष० त०] तान्त्रिकों के अनुसार एक पीठ या तीर्थ।
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रुद्र-पुत्र  : पुं० [ष० त०] बारहवें मनु। रुद्रसावर्णि का एक नाम।
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रुद्र-प्रयाग  : पुं० [ष० त०] उत्तर प्रदेश के गढ़वाल जिले के अन्तर्गत एक तीर्थ।
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रुद्र-प्रिय  : पुं० [ष० त०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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रुद्र-प्रिया  : स्त्री० [ष० त०] १. पार्वती। २. हरीतकी हड़। हर्रे।
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रुद्र-बीसी  : स्त्री० [सं० रुद्र+हिं० बीस] फलित ज्योतिष में प्रमुख आदि साठ संवत्सरों मे अंतिम बीस संवत्सर या पर्व जो संसार के लिए बहुत कष्ट दायक कहे गये हैं। रुद्र-विशंति।
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रुद्र-भू  : पुं० [ष० त०] श्मशान। मरघट।
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रुद्र-भूमि  : स्त्री० [ष० त०] १. श्मशान। २. एक प्रकार की भूमि। (ज्यौ०)
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रुद्र-भैरवी  : स्त्री० [ष० त०] दुर्गा की एक मूर्ति।
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रुद्र-यज्ञ  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का यज्ञ जो रुद्र के उद्देश्य से किया जाता है।
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रुद्र-रोदन  : पुं० [सं०] स्वर्ण। सोना।
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रुद्र-रोमा  : स्त्री० [सं०] कार्तिकेय की एक मातृका।
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रुद्र-लता  : स्त्री० [मध्य० स०] रुद्र जटा (क्षुप)।
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रुद्र-लोक  : पुं० [ष० त०] वह लोक या स्थान जिसमें शिव और रुद्रों का निवास माना जाता है।
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रुद्र-वदन  : पुं० [ष० त०] १. महादेव के पाँच मुख। २. पाँच की संख्या का सूचक शब्द।
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रुद्र-विंशति  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] साठ संवत्सरों के अन्तिम २0 संवत्सरों का समूह जो अमांगलिक और कष्ट-प्रद कहा गया है। रुद्रबीसी।
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रुद्र-वीणा  : स्त्री० [ष० त०] एक तरह की पुरानी चाल की वीणा।
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रुद्र-सावर्णि  : पुं० [सं० मध्य० स०] बारहवें मनु। (पुराण)
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रुद्र-सुंदरी  : स्त्री० [ष० त०] देवी की एक मूर्ति।
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रुद्र-सू  : स्त्री० [सं० रुद्र√सू (प्रसव)+क्विप्] वह जननी या माता जिसकी ग्यारह संताने हों।
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रुद्र-स्वर्ग  : पुं० =रुद्र लोक। (दे०)
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रुद्र-हिमालय  : पुं० [मध्य० स०] हिमालय पर्वत की एक चोटी।
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रुद्र-हृदय  : पुं० [ष० त०] एक उपनिषद् जो प्राचीन दस उपनिषदों से अलग है।
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रुद्रक  : पुं० =रुद्राक्ष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रुद्रज  : पुं० [सं० रुद्र√जन् (उत्पत्ति)+ड] पारा। वि० रुद्र से उत्पन्न।
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रुद्रट  : पुं० [सं०] काव्यालंकार नामक ग्रन्थ के रचयिता संस्कृत साहित्य के एक प्रसिद्ध आचार्य जो रुद्रभ और शतानंद भी कहलाते थे।
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रुद्रत्व  : पुं० [सं० रुद्र+त्व०] रुद्र होने की अवस्था या भाव।
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रुद्रयामल  : पुं० [मध्य० स०] तांत्रिकों का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ जिसमें भैरव और भैरवी का संवाद है।
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रुद्रवंती  : स्त्री० [सं०] एक प्रसिद्ध वनौषधि जिसकी गणना दिव्यौषधि वर्ग में होती है।
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रुद्रवत्  : पुं० =रुद्रवान्।
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रुद्रवान् (वत्)  : वि० [सं० रुद्र+मतुप्] रुद्रगणों से युक्त। पुं० १. सोम। २. अग्नि। ३. इन्द्र।
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रुद्रा  : स्त्री० [सं० रुद्र+टाप्] १. रुद्रजटा नामक क्षुप। २. नलिका नाम गन्ध द्रव्य। अदित-मंजरी। मुक्तवर्चा।
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रुद्राक्ष  : पुं० [रुद्र-अक्षि० ष० त०+अच्] १. एक प्रकार का वृक्ष जिसके बीजों को पिरोकर पहनने तथा जपने के लिए मालाएँ बनाई जाती हैं। २. उक्त पेड़ का बीज जो शिव का परम प्रिय कहा गया है।
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रुद्राणी  : स्त्री० [सं० रुद्र-ङीष्, आनुक्] १. रुद्र अर्थात् शिव की पत्नी पार्वती शिवा। २. ग्यारह वर्षों की कन्या की संज्ञा। ३. रुद्रजटा नामक लता। ४. संगीत में एक प्रकार की रागिनी, जो मेघ-राग की पुत्र-वधू कही गई है (कुछ लोग इसे शकंर रागिनी भी मानते हैं)।
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रुद्रारि  : पुं० [रुद्र-अरि, ब० स०] कामदेव।
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रुद्रावास  : पुं० [रुद्र-आवास, ष० त०] शिव का निवास स्थान। जैसे—काशी, कैलास, श्मशान आदि।
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रुद्राष  : पुं० =रुद्राक्ष।
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रुद्रिय  : पुं० [सं० रुद्र+घ—इय] १. रुद्र संबंधी। रुद्र का। २. रुद्र से उत्पन्न। ३. रुद्र की तरह भयानक डरावना। ४. आनन्द देनेवाला।
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रुद्री  : स्त्री० [सं० रुद्र+ङीष्] १. वेद के रुद्रानुवाक या अधमर्षण सूक्त की ग्यारह आवृत्तियाँ जिनका पाठ बहुत शुभ माना जाता है। २. एक प्रकार की वीणा। रुद्र-वीणा।
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रुद्रोपनिषद्  : स्त्री० [सं० रुद्र-उपनिषद्, मध्य० स०] एक उपनिषद् का नाम।
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रुँधना  : अ० [हिं० रुँधना का अ०] १. रक्षा, रोक आदि के विचार से मार्ग आदि का कँटीली झाड़ियाँ आदि लगाकर रुँधा या बंद किया जाना। २. लाक्षणिक रूप में कंटकों, बाधाओं आदि से मार्ग का इस प्रकार अवरुद्ध होना कि काम आगे बढ़ना बहुत अधिक कठिन हो। ३. काँटों, जालों आदि में उलझना या फँसना। ४. इस प्रकार दत्त-चि्त्त होकर किसी काम में लगना कि और बातों के लिए जल्दी अवकाश न मिले।
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रुँधनी  : स्त्री०=अरुंधती।
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रुधियानन  : पुं० [रुधिर-आनन, ब० स०] फलित ज्योतिष में मंगल ग्रह की एक प्रकार की वक्र गति।
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रुधिर  : पुं० [सं०√रुध् (आवरण)+किरच्] १. शरीर में का रक्त। शोणित। लहू। खून। विशेष—मुहा के लिए ‘खून’ और ‘लहू’ के मुहा०। २. कुंकुम। केसर। ३. मंगल ग्रह। रुखिराख्य नामक रत्न।
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रुधिर-गुल्म  : पुं० [मध्य० स०] स्त्रियों का एक प्रकार का रोग जिसमें उनके पेट में एक तरह का गोला-सा घूमता रहता है। जिसमें गर्भ का भ्रम होता है (वैद्यक)।
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रुधिर-लीहा  : स्त्री० [मध्य० स०] प्लीहा नामक रोग का एक भेद। (वैद्यक)
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रुधिर-विज्ञान  : पुं० [ष० त०] आधुनिक विज्ञान की वह शाखा जिमसें रुधिर में रहनेवाले तत्त्वों और उनमें उत्पन्न होनेवाले कीटाणुओं या विकारों का विवेचन होता है। (हेमोकालोजी)
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रुधिर-वृद्धि-दाह  : पुं० [सं० रुधिर-वृद्धि, ष० त० रुधिरवृद्धि, -दाह, ब० स०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का रोग जिसमें मुँह में से एक प्रकार की बू निकलने लगती है।
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रुधिरपायी (यिन्)  : वि० [सं० रुधिर√पा (पीना)+णिनि, उप० स०] [स्त्री० रुधिरयिनी] १. खून पीने वाला। २. रक्त पिपासक। पुं० राक्षस।
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रुधिराक्त  : वि० [सं० रुधिर-अक्त, तृ० त०] १. जिसमें बहुत सा रुधिर या लहू हो। खून से भरा। २. रुधिर या लहू की तरह लाल। ३. खून से तर या भीगा हुआ।
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रुधिराख्य  : पुं० [रुधिर-आख्या, ब० स०] एक प्रकार का रत्न।
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रुधिरामय  : पुं० [रुधिर-आमय, मध्य० स०] रक्तपित्त नामक रोग।
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रुधिराशन  : वि० [रुधिर-अशन, ब० स०] जिसका भोजन रुधिर हो (खटमल, जोंक, मच्छर आदि)।
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रुधिराशी (शिन्)  : वि० पुं [सं० रुधिर√अश् (खाना)+णिनि]=रुधिराशन।
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रुधिरोदगारी (रिन्)  : पुं० [सं० रुधिर-उद√गृ (लीलना)+णिनि, उप० स०] बृहस्पति के साठ संवत्सरों में से सत्तावनवाँ संवत्सर।
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रुनक-झुनुक  : स्त्री० [अनु०] रुनझुन। (दे०)
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रुनझुन  : स्त्री० [अनु०] १. नुपूर से बजने से होनेवाला शब्द २. झनकार विशेषतः मधुर शब्द।
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रुनझुना  : अ० [हिं० रुनझुना] रुनझुन शब्द होना। स० नुपूर आदि बजाकर रुनझुन शब्द उत्पन्न करना।
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रुनाई  : स्त्री० [सं० अरुण+हिं० आई (प्रत्यय)] लाल होने की अवस्था या भाव।
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रुनित  : वि० =रुणित। (बजता हुआ)
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रुनी  : पुं० [देश] घोड़ों की एक जाति।
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रुनुल  : पुं० [देश] एक प्रकार का बेंत।
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रुपना  : अ० [हिं० रोपना का अ०] १. रोपा जाना। जैसे—खेत में धान रूपना। २. दृढ़तापूर्वक गाड़ा, जमाया या लगाया जाना। जैसे—पैर रुपना।
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रुपमनि  : वि० =रुपवती।
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रुपया  : पुं० [सं० रुप्य] १. चाँदी का सिक्का। २. पुराने ६४ पैसों या १00 नये पैसों के मूल्य का नोट का सिक्का। मुहावरा—रुपया उठाना=धन व्यय करना। रुपया खड़ा करना=नकद धन उगाहना या प्राप्त करना। रुपया ठीकरी करना=रुपए का बहुत बुरी तरह से अपव्यय करना। ३. धन-दौलत। सम्पत्ति। पद—रुपया-पैसा=धन दौलत।
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रुपया  : पुं० =रुपया।
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रुपल्ली  : स्त्री० [हिं० रुपया]=रुपया। (उपेक्षा और तुच्छता का सूचक)। उदाहरण—एम० ए० बी० ए० पास करके चालीस-चालीस रुपल्ली की नौकरी के लिए मारे-मारे फिरते हैं।—राहुल सांकृत्यायन।
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रुपहरा  : वि० =रुपहला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रुपहला  : वि० [हिं० रुपा+चाँदी+हला (प्रत्यय)] [स्त्री० रुपहली] रुपा अर्थात् चाँदी के रंग का। चाँदी का सा। उज्जवल तथा चमकीला। जैसे—रुपहला, गोटा, रुपहला काम।
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रुपा  : पुं० १. =रुपया। २. =रुपा (चांदी)।
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रुपैया  : पुं० =रुपया। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रुपौला  : वि० [स्त्री० रुपौली]=रुपहला।
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रुबा  : वि० [फा०] [भाव० रुबाई] १. ले जानेवाला। २. मोहित करने या लुभानेवाला। जैसे—दिलरुबा।
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रुबाई  : स्त्री० [अ०] [बहु, रुबाईयात] १. उर्दू फारसी में एक प्रकार की मुक्तक कविता जिसमें चार चरण या मिसरे होते हैं और जो प्रायः हजाज नामक छंद में होती है। इसमें तीसरे चरण या मिसरे को छोड़कर शेष तीनों में काफिला और रदीफ दोनों होते हैं। फारसी में इसे ‘तराना’ भी कहते हैं। २. एक प्रकार का चलता गाना। स्त्री० [फा०] रुबा होने की अवस्था या भाव।
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रुबाई-एमन  : पुं० [हिं० रुबाई+एमन] एक प्रकार का राग (संगीत)।
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रुमंच  : पुं० =रोमांच।
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रुमण  : पुं० [सं०] रामायण के अनुसार एक वानर जो सौ करोड़ बानरों का यूथपति कहा गया है।
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रुमण्वान् (ण्वत्)  : पुं० [सं०] १. एक प्राचीन ऋषि। २. पुराणानुसार एक पर्वत।
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रुमा  : स्त्री० [सं०] सुग्रीव की पत्नी। (वाल्मीकि)
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रुमांचित  : वि० =रोमांचित।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रुमाल  : पुं० =रूमाल।
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रुमालिया  : स्त्री० १. =रूमाल। २. =रूमाली।
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रुमाली  : स्त्री० [फा० रुमाल] १. एक प्रकार का लंगोट जिसमें दोनों ओर कमर में बाँधने के लिए बंद लगे रहते हैं। २. मुगदर घुमाने का एक ढंग।
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रुमावली  : स्त्री०=रोमावली।
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रुराई  : स्त्री० [हिं० रूरा+आई (प्रत्यय)] रूरा होने की अवस्था या भाव। सुन्दरता।
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रुरु  : पुं० [सं०√रु (शब्द)+क्रुन्] १. काला हिरन। कस्तूरी मृग। २. एक दैत्य जिसे दुर्गा ने मारा था। ३. एक भैरव का नाम। ४. एक प्रकार का फूलदार वृक्ष। ५. एक क्रूर तथा भयानक जंतु। ६. एक ऋषि। ७. देवताओं का एक गण। ८. सावर्णि मनु के सप्तर्षियों में से एक।
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रुरुआ  : पुं० [हिं० ररना, ररुआ] एक तरह का उल्लू।
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रुलना  : अ० [सं० लुलन] १. स्थायी वास स्थान का अभाव होने पर कभी कहीं तो कभी कहीं भटकते फिरना। २. दुर्दशाग्रस्त होकर इधर-उधर मारा-मारा फिरना। ३. (वस्तु का) इधर-उधर पडी होना अथवा उठाई-पटका या छोड़ी फेंकी होना।
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रुलनी  : स्त्री० [देश] रोहिणी की तरह की पर उससे छोटी एक वनस्पति।
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रुलाई  : स्त्री० [हिं० रोना+आई (प्रत्यय)] १. रोने की क्रिया या भाव। २. रोने की प्रवृत्ति। क्रि० प्र०—आना।—छूटना।
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रुलाना  : स० [हिं० रोना का प्रे०] दूसरे को रोने में प्रवृत्त करना। ऐसा काम या बात करना जिससे कोई रोने लगे। स० [हिं० रुलना] ऐसा काम करना जिससे कोई चीज या व्यक्ति रुले।
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रुल्ल, रुल्ला  : स्त्री० [देश] वह भूमि जिसकी उपजाऊ शक्ति कम हो गई हो और जिसे परती छोड़ने की आवश्यकता हो।
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रुवा  : पुं० =रुआ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रुवाई  : =रुलाई।
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रुवाब  : पुं० =रोब।
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रुशना  : स्त्री० [सं०] रुद्र की एक पत्नी। (भागवत)
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रुषा  : स्त्री० [सं०√रुष्+टाप्] क्रोध। गुस्सा।
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रुषित  : भू० कृ० [सं०√रुष्+क्त] १. जिसे रोष हुआ हो। अप्रसन्न। क्रुद्ध। नाराज। २. जिसे दुःख पहुँचा हो। दुखित।
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रुषेसर  : पुं० =ऋषीश्वर।
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रुष्  : पुं० [सं०√रुष् (क्रोध)+क्विप्] क्रोध। गुस्सा। रोष।
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रुष्ट  : भू० कृ० [सं० रुष्+क्त] १. रोष से भरा हुआ। क्रुद्ध। २. रूठा हुआ। अप्रसन्न। नाराज।
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रुष्ट-पुष्ट  : वि० =हृष्ट-पुष्ट।
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रुष्टता  : स्त्री० [सं० रुष्ट+तल्-टाप्] रुष्ट होने की दशा या भाव। रुष्ट व्यक्ति के मन में होने वाला भाव अप्रसन्नता। नाराजगी।
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रुष्टि  : स्त्री० [सं०√रुष्+क्तिन्] १. रुष्टता। २. रोष।
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रुसना  : अ०=रूसना।
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रुसवा  : वि० [फा० रुस्वा] [भाव० रुसवाई] जिसकी बहुत बदनामी हो। निंदित। बदनाम।
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रुसवाई  : स्त्री० [फा० रुसवाई] रुस्वा होने की अवस्था या भाव। बदनामी। निंदा।
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रुसा  : पुं० =रूसा (अड्सा)।
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रुसित  : वि० =रुषित (रुष्ट)।
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रुसूख  : पुं० [अ०] १. पहुँच। रसाई। २. एतबार। विश्वास। ३. दृढ़ता। ४. मेल-जोल। प्रेम-व्यवहार। ५. कुशलता। दक्षता।
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रुसूम  : पुं० [अ० ‘रस्म’ का बहु० रूप] रस्में। पुं० =रसूम (कर)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रुसूल  : पुं० [अ] ‘रसूल’ का बहु० रूप।
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रुस्ट  : वि० =रुष्ट।
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रुस्तम  : पुं० [अ०] १. फारस का एक प्रसिद्ध प्राचीन ईरानी पहलवान, जो अपने समय में सबसे अधिक बलवान माना जाता था। विशेष—फिरदौसी शाहनामे में इसकी वीरता का वर्णन किया है। २. बहुत बड़ा शूर-वीर। पद—छिपा रुस्तम। (दे०)
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रुस्तमखानी  : स्त्री० [फा०] १. रुस्तम का सा पौरुष अथवा बलवीर्य। २. अपने महत्त्व या शक्ति का बहुत बड़ा अभिमान या घमंड।
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रुहठि  : स्त्री० [हिं० रुठना] रूठे हुए होने की अवस्था या भाव।
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रुहा  : स्त्री० [सं०√रुह् (उगना)+क+टाप्] १. दूब। २. अतिबला। ३. मांस रोहिणी लता। ४. लजालू। लाजवंती।
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रुहिर  : पुं० =रुधिर (खून)।
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रुहेलखंड  : पुं० [हिं० रुहेला] अवध के उत्तर-पश्चिम पड़नेवाला प्रदेश जहाँ रुहेले पठान बसे थे।
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रुहेला  : पुं० [?] पठानों की एक जाति जो प्रायः किसी समय अवध के उत्तर-पश्चिम में आकर बसी थी।
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