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रौद्र  : वि० [सं० रुद्र+अण्] [भाव० रुद्रता] १. रुद्र संबंधी। रुद्र का। २. बहुत ही उग्र, प्रचंड भीषण या विकट। ३. बहुत अधिक क्रोध या कोप का परिचायक अथवा सूचक। पुं० १. क्रोध। गुस्सा। रोष २. आतप। धाम। धूप। ३. यमराज। ४. प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र। ५. साहित्य में नौ रसों में से एक जो किसी प्रकार का अत्याचार, अन्याय, अपमान, अशिष्टता आदि का व्यवहार देखकर उसे रोकने या उसका प्रतिकार करने के विचार से, मन में होनेवाले क्रोध से उत्पन्न होता है। ६. गरमी। ताप। ७. ग्यारह मात्राओं वाले छंदों की संज्ञा। ८. साठ संवत्सरों में से ५४ वाँ संवत्सर। ९. दे० ‘रौद्र-केतु’।
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रौद्र-केतु  : पुं० [सं० कर्म० स०] आकाश के पूर्व दक्षिण में शूल के अगले भाग के सामने कपिश (कपासी) रूक्ष (रूखा) ताम्रवर्ण किरणों से युक्त एक केतु (बृहत्संहिता)।
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रौद्र-दर्शन  : वि० [सं० ब० स०] देखने में डरावना। भीषण आकृति या रूपवाला। जिसे देखने से डर लगे।
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रौद्रता  : स्त्री० [सं० रौद्र+तल्+टाप्] १. रुद्र होने की अवस्था, भाव या गुण। २. भयंकरता। भीषणता। ३. प्रखरता। प्रचंडता।
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रौद्रार्क  : पुं० [सं० रौद्र-अर्क, उपमित० स०] १. १३ मात्राओं के छंदों की संज्ञा।
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रौद्री  : स्त्री० [सं० रौद्र+ङीष्] १. रुद्र की पत्नी, गौरी। २. गांधार स्वर की दो श्रुतियों में से पहली श्रुति।
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