शब्द का अर्थ
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					संदेह					 :
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					पुं० [सं०] १. किसी चीज या बात के संबंध में उत्पन्न होने वाला यह भाव या विचार कि कहीं यह अनुचित, त्याज्य या दूषित तो नहीं हैं अथवा क्या इसकी वास्तविकता या सत्यता मानने योग्य है। शक (सस्पिशन)। विशेष—मन में इस प्रकार का भाव प्रायः यथेष्ट प्रमाण के आभाव में ही उत्पन्न होता है, और ऊपर से दिखाई देने वाले तत्व या रूप पर सहसा विश्वास नहीं होता। दे० ‘शंका’ और ‘संशय’। क्रि० प्र०—करना।—डालना।—मिटना।—मिटाना।—होना। २. उक्त के आधार पर साहित्य में, एक प्रकार का अर्थालंकार जिसमें किसी चीज या बात को देखकर उसकी यथार्थता या वास्तविकता के संबंध में मन में संदेह बने रहने का उल्लेख होता। इस प्रकार का कथन कि जो कुछ सामने है, वह अमूक है अथवा कुछ और ही है। यथा (क) कैंधौं फूली दुपहरी, कैधौं फूली साँझ।—मतिराम। (ख) निद्रा के उस अलसित में वह क्या भावों की छाया। दृग पलकों में विचर रही या वन्य देवियों की माया।—पंत।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					संदेहवाद					 :
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					पुं० [सं०] दार्शनिक क्षेत्र में यह मत या सिद्धान्त की वास्तविक या सत्य का कभी ठीक और पूरा ज्ञान नहीं होने पाता, इसीलिए हर बात के संबंध में मन में संदेह का भाव बना ही रहना चाहिए। विशेष—जिसमें जिज्ञासा की तृ्ति के लिए संदेह का स्थायी रूप में बना रहना आवश्यक माना जाता है।				 | 
			
			
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					संदेहवादी					 :
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					वि० [सं०] संदेह वाद संबंधी। पुं० वह जो संदेहवाद का अनुयायी और समर्थक हो।				 | 
			
			
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					संदेहात्मक					 :
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					वि० [सं०] संदिग्ध (दे०)।				 | 
			
			
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					संदेहास्पद					 :
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					वि० [सं०] संदिग्ध (दे०)।				 | 
			
			
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