संवर्द्धन/sanvarddhan

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संवर्द्धन  : पुं० [सम्√वृध (बढ़ना)+णिच्-ल्युट्-अन] [वि० संवर्द्धनीय, संवर्द्धित, संवृद्ध] १. अच्छी तरह बढ़ना या बढ़ना। २. जितना या जो पहले से वर्तनाम हो उसमें कुछ और अधिकता या वृद्धि करना। (आग्मेन्टेशन) ३. पशु-पक्षियों पौधों आदि के संबंध में ऐसी क्रिया और देख भाल करना जिससे उनके वंश आदि का विकास, विस्तार या वृद्धि हो। (कल्चर) जैसे—पपीते के पेड़ों, मधुमक्खियों आदि का संवर्धन। पाल-पोसकर बड़ा करना। ४. उन्नत करना। बढ़ाना।
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संवर्द्धनीय  : वि० [सम्√वृध् (बढ़ाना) णिच्-अनीयर] जिसका संवर्द्धन करना आवश्यक या उचित हो। २. जिसका पालन-पोषण करना आवश्यक या उचित हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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