शब्द का अर्थ
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					सखर					 :
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					पुं० [सं० अव्य० स०] एक राक्षस का नाम। वि० [सं० सखर] १. तेज धार वाला। चोखा। पैना। २. प्रखर। ३. प्रबल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सखरच, सखरज					 :
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					वि० [फा० शाह-खर्च] खुलकर अमीरों की तरह खर्च करने वाला। शाहखर्च। उदा०—बनिय का सरखच, ठकुरक हीन। वैदक पूत, व्याधि नहिं चीन्ह।—घाघ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सखरण					 :
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					पुं०=शिखरन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सखरस					 :
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					पुं०[सख?+हिं०रस] मक्खन। नैन।				 | 
			
			
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					सखरा					 :
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					वि० [हिं० निखरा का अनु] (भोजन) जिसकी गिनती कच्ची रसोई में होती हो। निखरा का विपर्याय। पुं० दे० ‘सखरी’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सखरी					 :
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					स्त्री० [हिं० निखरी (अनु।)] हिंदुओं में दाल, भात, रोटी आदि, खाद्य पदार्थ जो घी में नहीं में तले या पकाए जाते और इसी लिए जो चौके के बाहर या किसी अन्य जाति के आदमी के हाथ के बनाए हुए खाने में छूत और दोष मानते हैं। ‘निखरी’ का विपर्याय। स्त्री० [सं० शिखर] छोटा पहाड़। पहाड़ी। (ङिं०)				 | 
			
			
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