शब्द का अर्थ
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					सखी					 :
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					स्त्री० [सं०] १. सहेली। सहचरी। संगिनी। २. सहित्य में नायिका के साथ रहने वाली वह स्थिति जो उसकी अंतरंग संगिनी होती, सब बातों में उसकी सहायक रहती और नायक से उसे मिलाने का प्रयत्न करती है। श्रंगार रस में इसकी गणना उद्दीपन विभावों में होती है। इसके कार्य मंडन, शिक्षा, उपालंभ और परिहास कहे गये हैं। ३. एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में १ ४ मात्राएं और अंत में १ भगण या १ यगण होता है। इसकी रचना में आदि से अंत तक दो-दो कलें होती हैं।—२+२+२+२+२+२ और कभी-कभी २+३+३+२+२+२ भी होती हैं। और विराम ८ तता ६ पर होता है। वि० [अ० सखी] दाता। दानी। दानशील। जैसे—सखी से सूम भला जो तपरत दे जवाब। (कहावत)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					सखी संप्रदाय					 :
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					पुं० [सं०] निम्बार्क मत की एक शाखा जिसकी स्थापना स्वामी हरिदास (जन्म सम० १४ ४१ वि०) ने की थी। इसमें भक्त अपने आपको श्रीकृष्ण की सखी मान कर उसकी उपासना तथा सेवा करते और प्रयः स्त्रियो के भेष में रहकर उन्ही के आचारों, व्यवहारों आदि का पालन करते हैं।				 | 
			
			
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					सखीभाव					 :
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					पुं० [सं० ष० त० मध्यम० स० वा] वैष्णव संप्रदाय में, भक्ती का एक प्रकार जिसमें भक्त अपने आप के ईष्टदेवता की पत्नी या सखी मानकर उसकी उपासना करते हैं। विशेष—दे० ‘सखी संप्रदाय’।				 | 
			
			
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