संडा/sanda

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सड़ा  : पुं० [हि० सड़ना] कुछ चीजों को सड़ाकरबनाया हुआ वह घोल जो गौओं को बच्चा होने के समय पिलाते हैं।
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सड़ाक  : पुं० [अनु० सड़ से] कोड़े आदि की फटकार की आवाज,जो प्रायः सड़ के समान होती है। पद-सड़ाक से=बहुत जल्दी।
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सड़ान  : स्त्री० [हि० सड़ना] सड़ने की क्रिया या भाव। सड़न।
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सड़ाना  : स० [हि० सड़ना का स० रूप] १. किसी वस्तु को सड़ने में प्रवृत्त करना। किसी पदार्थ में ऐसा विकार उत्पन्न करना कि उसके अवयव गलने लगें और उसमें से दुर्गन्ध आने लगे। जैसा—सब आम तुमने रखे-रखे सड़ा डाले। संयो० क्रि०—डालना।—देना। २. बहुत अधिक कष्ट या दुर्दशा में इस प्रकार रखना कि कोई उपयोग न हो सके। जैसा—किसी को जेल में रखकर सड़ाना।
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सड़ायँध  : स्त्री० [हि० सड़ना+गंध] सड़ी हुई चीज से निकलनेवाली दूषित उग्र गंध। सड़ने से उठनेवाली बदबू।
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सड़ाव  : पुं० [हि० सड़ना+आव (प्रत्यय) १. सड़ने की क्रिया या भाव। २. सड़ने के फलस्वरूप होनेवाला विकृत रूप या स्थिति।
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सड़ासड़  : अव्य० [अनु० सड़ से] सड़ सब्द के साथ। जिसमें सड़ सब्द हो। जैसा—सड़ासड़ कोड़े या बेंत लगाना।
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