संदन/sandan

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सदन  : पुं० [सं०] १. रहने का स्थान। निवास-स्थान। २. घर। मकान। ३. वह स्थान जहाँ प्राणियों या व्यक्तियों को आश्रय और रहने-सहने का सुभीता मिलता हो। जैसा—गो-सदन। ४. वह स्थान जहाँ विशिष्ट रूप से कोई लोकोपकारी कार्य हो। जैसा—सेवा सदन। ५. वह मकान जिसमें किसी देश या राज्य के विधान बनाने के कार्य होते हों (हाउस)। विशेष—कुछ देशों में तो इस प्रकार का एक ही सदन होता है, और कुछ देशों में दो-दो सदन होते हैं, जिनमें से एक में तो साधारण जनता के प्रतिनिधि और दूसरे में कुछ विशिष्ट वर्गों के प्रतिनिधि सदस्य होते हैं। भारत में केन्द्रीय सदन के दो अंग है—लोक-सभा और राज्य सभा। ६. उक्त भवन में अथवा किसी सभा-समिति के अधिवेशन के समय उपस्थित होनेवाले आधिकारिक, व्यक्तियों, सदस्यों आदि का वर्ग या समूह। (हाउस)। जैसा—सदन की यही इच्छा जान पड़ती है कि इस विषय का निर्णय आज ही हो जाय। ७. ठहराव। विराम। शिथिलता। ९. एक प्रसिद्ध भगवतभक्त कसाई।
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सदन-त्याग  : पुं० [सं०] संसद, सभा आदि के किसी कार्य या अध्यक्ष की किसी व्वस्था या निर्णय से असंतुष्ट होकर किसी या कुछ सदस्यों का सदन छोड़कर वहाँ से हट जाना। (वॉक-आउट)।
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सदन-नेता  : पुं० [सं०] संसद या विधान-सभा द्वारा निर्वाचित वह नेता जो कार्यक्रम आदि निश्चित करता और बहुधा देश या राज्य का प्रधान मंत्री होता है। (लीडर आफ़ दि हाउस)।
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सदन-सचिव  : पुं० [सं० ष० त०] विधान सभा या लोक-सभा का वह वैतनिक सदस्य जो किसी मंत्री के साथ रहकर उसके समस्त विभागीय कार्यो में सहायता करता हो। संसद-सचिव (पार्लमेंटरी सेक्रेटरी)
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सदना  : अ० [सं० सदन=थिराना] १. छेद में से रिसना। चूना। २. नाव के पेदें के छेदों से पानी अन्दर आना। पुं० सदन (भगवद्भक्त कसाई)।
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