शब्द का अर्थ
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					सरग					 :
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					पुं०=स्वर्ग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					सरग दुवारी					 :
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					पुं०=स्वर्ग द्वार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					सरग-पताली					 :
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					वि० [सं० स्वर्ग+पताल (हिं० ई (प्रत्यय)] १. एक ओर स्वर्ग की और दूसरी ओर पाताल को छूनेवाला। २. गाय या बल जिसका एक सींग ऊपर उठा हो और दूसरा नीचे झुका हो। ३. (व्यक्ति) जिसकी एक आँख की पुतली ऊपर की ओर और दूसरी नीचे की ओर रहती हो।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					सरगना					 :
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					पुं० [फा० सर्गनः] सरदार। अगुवा। जैसा—चोरों का सरगना। अ० [?] हींग हाँकना। शेखी बघारना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सरगम					 :
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					पुं० [हि० सा, रे, ग, म] १. संगीत में षजड से निषाद तक के सातों स्वरों का समूह। स्वर-ग्राम। २. उक्त स्वर भिन्न-भिन्न प्रकारों से साधने की क्रिया या प्रणाली। ३. किसी गीत, तान या राग में लगनेवाले स्वरों का उच्चारण। जैसा—इस तान या लय का सरगम तो कहो।				 | 
			
			
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					सरगर्म					 :
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					वि० [फा०] [भाव० सरगर्मी] १. जोशीला। आवेशपूर्ण। २. उत्साह या उमंग से भरा हुआ।				 | 
			
			
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					सरगर्मी					 :
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					स्त्री० [फा०] १. सरगर्म होने की अवस्था या भाव। २. बहुत बढ़ा हुआ आवेग उत्साह या उमंग।				 | 
			
			
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					सरगुना					 :
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					वि०=सगुण।				 | 
			
			
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					सरगुनिया					 :
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					पुं० [हि० सरगुन] सगुण ब्रह्म का उपासक।				 | 
			
			
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					सरगोशी					 :
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					स्त्री० [फा०] १. कान में कोई बात कहना। २. किसी के पीठ पीछे उसकी शिकायत करना।				 | 
			
			
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