शब्द का अर्थ
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					सर्प					 :
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					पुं० [सं०√ सप् (जाना)+अच्-घञ्, वा] [स्त्री० सर्पिणी] १. रेंगते हुए चलने की क्रिया या भाव। २. सरीसप वर्ग का प्रसिद्ध जन्तु सांप। ३. पुराणानुसार ग्यारह रुद्रों में से एक। ४. एक प्राचीन म्लेच्छ जाति। ५. नागकेसर। ६. ज्योतिष में, एक दुष्ट योग।				 | 
			
			
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					सर्प-तृण					 :
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					पुं० [सं०] नकुलकंद।				 | 
			
			
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					सर्प-दंष्ट्र					 :
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					पुं० [सं०] १. सांप का दाँत। २. विशेषतः साँप का विष दाँत। ३. साँप के विष-दांत से लगनेवाला घाव। ४. जमालगोटा। ५. दंती।				 | 
			
			
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					सर्प-दंष्ट्री					 :
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					स्त्री० [सं० सर्पदष्ट्र-ङीप्] १. वृश्चिकाली। २. दंती।				 | 
			
			
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					सर्प-नेत्रा					 :
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					स्त्री० [सं०] १. सर्पाक्षी। २. गंध-नाकुली।				 | 
			
			
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					सर्प-फण					 :
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					पुं० [सं०] अफीम। अहिफेन।				 | 
			
			
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					सर्प-बंध					 :
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					पुं० [सं०] १. कुटिल या पेचीली गति, रेखा आदि। २. कपटपूर्ण-युक्ति।				 | 
			
			
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					सर्प-बेलि					 :
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					स्त्री० [सं०] नागवल्ली। पान।				 | 
			
			
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					सर्प-भक्षक					 :
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					पुं० [सं०] १. नकुलकंद। नाकुलीकंद। २. मोर। मयूर।				 | 
			
			
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					सर्प-मीन					 :
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					पुं० [सं०] एक प्रकार की समुद्री मछली जो साँप की तरह लंबी होती है और जिनके शरीर में डैने या पंख नहीं होते। (ईल)।				 | 
			
			
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					सर्प-यज्ञ					 :
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					पुं० [सं०] जनमेजय का वह प्रसिद्ध यज्ञ जो उन्होंने नागों अर्थात् साँपों का नाश करने के लिए किया था। नाग-यज्ञ।				 | 
			
			
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					सर्प-लता					 :
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					स्त्री० [सं०] नागवल्ली। पान।				 | 
			
			
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					सर्प-विद्या					 :
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					स्त्री० [सं०] १. वह विद्या जिसमें सर्पो, उनकी जातियों उनके स्वभावों आदि का विवेचन होता है। २. साँपो के पकड़ने और उनको वश में करने की विद्या।				 | 
			
			
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					सर्प-व्यूह					 :
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					पुं० [सं०] प्राचीन भारत में, एक प्रकार की सैनिक व्यूह रचना जिसमें सैनिकों की स्थापना सर्प के आकार की होती थी।				 | 
			
			
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					सर्प-शीर्ष					 :
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					पुं० [सं०] १. एक प्रकार की ईंट जो यज्ञ की वेदी बनाने के काम में आती थी। २. तांत्रिक पूजन में, पंजे और हाथ की एक मुद्रा। ३. एक प्रकार की मछली जिसका सिर साँप की तरह होता है। (ओफिसेफैलस)।				 | 
			
			
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					सर्प-सत्र					 :
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					पुं० [सं० मध्यम० स०] सर्प-यज्ञ।				 | 
			
			
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					सर्प-सत्री					 :
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					पुं० [सं० सर्पसत्र+इनि] सर्प-सत्र अर्थात् नागयज्ञ रचनेवाले राजा जनमेजय।				 | 
			
			
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					सर्पकाल					 :
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					वि० [सं० ष० त०] जो सर्प का काल हो। पुं० गरुड़।				 | 
			
			
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					सर्पगति					 :
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					वि० [सं० ष० त०] १. साँप की तरह टेढी चाल चलनेवाला २. कुटिल प्रकृति का। स्त्री० टेढी चाल।				 | 
			
			
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					सर्पगंधा					 :
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					स्त्री० [सं०] १. गंध नाकली। २. नकुलकंद। ३. नाग-दमन।				 | 
			
			
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					सर्पच्चन्न					 :
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					पुं० [सं०] छत्राक खुमी। कुकुरमुत्ता।				 | 
			
			
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					सर्पण					 :
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					पुं० [सं०√सप् (धीरे चलना)+ल्युट—अन] [वि० सर्पणीय, भू० कृ० सर्पित] १. पेट के बल खिसकना। रेंगना। २. धीरे-धीरे चलना। ३. छोड़े हुए तीर का जमीन से कुछ ही ऊपर रहकर चलना। ४. टेढ़ा चलना।				 | 
			
			
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					सर्पदंती					 :
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					स्त्री० [सं०] नागदंती। हाथी शुंडी।				 | 
			
			
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					सर्पपति					 :
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					पुं० [सं०] शेषनाग।				 | 
			
			
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					सर्पपुष्पी					 :
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					स्त्री० [सं०] १. नागदंती। २. बाँझ ककोड़ा।				 | 
			
			
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					सर्पभुक, सर्पभुज					 :
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					पुं० [सं०] सर्प-भक्षक।				 | 
			
			
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					सर्पयाग					 :
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					पुं० [सं०] सर्पयज्ञ।				 | 
			
			
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					सर्पराज					 :
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					पुं० [सं०] १. सांपों के राजा, शेषनाग। २. वासुकि।				 | 
			
			
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					सर्पहा (हन्					 :
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					वि० [सं०] सर्प को मारनेवाला। पुं० नेवला। स्त्री० सर्पाक्षी। सरहँटी।				 | 
			
			
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					सर्पा					 :
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					स्त्री० [सं० सर्प-टाप्] १. साँपिन। सर्पिणी। २. फणि-लता।				 | 
			
			
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					सर्पाक्ष					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] १. रुद्राक्ष। शिवाक्ष। २. सर्पाक्षी। सरहँटी।				 | 
			
			
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					सर्पाक्षी					 :
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					स्त्री० [सं० सर्पाक्ष-ङीप्] १. सरहंटी। गंध-नाकुली। ४. सफेद अपराजिता। ५. शंखिनी।				 | 
			
			
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					सर्पांगी					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] १. सरहँटी। २. नकुलकंद। २. सिंहली पीपल।				 | 
			
			
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					सर्पादनी					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] १. गरुड़। २. नेवला। ३. मोर।				 | 
			
			
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					सर्पावास					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] १. सांप के रहने का स्थान। २. चन्दन का पेड़।				 | 
			
			
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					सर्पाशन					 :
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					वि० [सं० ब० स०] सर्प जिसका भोजन हो। पुं० १. गरुड़। २. मोर।				 | 
			
			
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					सर्पास्य					 :
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					वि० [सं० ब० स०] साँप के समान मुखवाला।				 | 
			
			
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				| 
					सर्पास्या					 :
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					स्त्री० [सं० सर्पास्य-टाप्] पुराणानुसार एक योगिनी।				 | 
			
			
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				| 
					सर्पि					 :
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					पुं० [सं०√सप् (इत्यादि)+इति] घृत। घी।				 | 
			
			
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					सर्पिका					 :
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					स्त्री० [सं० सप्+कन्-टाप्—इत्व] १. छोटा साँप। २. एक प्राचीन नदी।				 | 
			
			
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					सर्पिणी					 :
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					स्त्री० [सं०√सप् (धीरे-धीरे चलना)+णिनि-ङीप्] १. साँप की मादा। साँपिन। २. भुजंगी नाम की लता। ३. रहस्य संप्रदाय में माया की एक संज्ञा।				 | 
			
			
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					सर्पित					 :
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					भू० कृ० [सं० सर्प+इतच्] १. सर्प के रूप में आया या लाया हुआ। २. साँप की तरह टेढ़ा-मेढ़ा चलना या रेंगता हुआ। उदाहरण—सुख से सर्पित मुखर स्रोत नित प्रीति स्रवित पिक कूजन।—पंत। पुं० साँप के काटने से शरीर में होनेवाला क्षत या घाव।—पंत।				 | 
			
			
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					सर्पिल					 :
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					वि० [सं०] [भाव० सर्पिलता] जो साँप की तरह टेढ़ा-मेढ़ा होता हुआ आगे बढ़ता हो। (सर्पेन्टाइन)।				 | 
			
			
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					सर्पी (र्पिन्)					 :
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					वि० [सं०] [सं० सर्पिणी] १. रेगनेवाला। २. धीरे-धीरे चलनेवाला। पुं०=सर्पि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सर्पेश्वर					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] सर्पों के स्वामी, वासुकि।				 | 
			
			
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					सर्पेष्ट					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] सर्प का इष्ट अर्थात् चंदन का वृक्ष।				 | 
			
			
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					सर्पोन्माद					 :
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					पुं० [सं०] उन्माद (रोग) का एक भेद जिसमें मनुष्य साँप की तरह फुफकारने लगता है। (वैद्यक)				 | 
			
			
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