सर्वग/sarvag

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सर्वग  : वि० [सं० सर्व√गम् (जाना)+ड] [स्त्री० सर्वगा] जिसकी गति सभी ओर या सब जगह हो। पुं० १. ब्रह्मा। २. जीवात्मा। ३. शिव। ४. जल। पानी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
सर्वगत  : वि० [सं०] १. जो सब में प्याप्त हो। सर्वव्यापक। २. जो किसी जाति, वर्ग या समष्टि के सभी अंगों सदस्यों आदि के सामान्य रूप से पाया जाता हो। पुं० प्राचीन काल में ऐसा राजकर्मचारी जिसे सभी जगहों में आने-जाने का पूर्ण अधिकार हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
सर्वग्रासी (सिन्)  : वि० [सं०] १. सब कुछ ग्रस या अपने वश में कर लेनेवाला। २. किसी का सर्वस्य हर लेनेवाला।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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