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सहना  : स० [सं० सहन] १. कोई अनुचित अप्रिय अथवा हानिकारक बात होने पर अथवा कष्ट आदि आने पर किसी कारण-वश चुपचाप अपने ऊपर लेना। विशेष—यद्यपि झेलना, भोगना और सहना बहुत कुछ समानार्थक समझे जाते हैं परन्तु तीनों में कुछ अन्तर है। झेलना का प्रयोग ऐसी विकट परिस्थितियों के प्रसंग में होता है जिसमें मनुष्य को अध्यवसाय और साहस से काम लेना पड़ता है। जैसा—विधवा माता ने अनेक कष्ट झेलकर लड़के को अच्छी शिक्षा दिलाई थी। भोगना का प्रयोग कष्ट या दुःख के सिवा प्रसन्नता या सुख के प्रसंगों में भी होता है, पर कष्टप्रद प्रसंगों में मुख्य भाव यह रहता है कि आया हुआ कष्ट या संकट दूर करने में हम असमर्थ है, इसीलिए विवशतापूर्वक सिर झुकाकर उसका भोग करते हैं। परन्तु सहना मुख्यतः मनुष्य की शक्ति पर आश्रित होता है। जैसा—इतना घाटा तो हम सहज में सह लेगें। सहना में मुख्य भाव यह है कि हम व्यर्थ की झंझट नहीं बढ़ाना चाहते मन की शांति नष्ट नहीं करना चाहते अथवा जानबूझकर उपेक्षा कर रहे हैं। जैसा—हम उनके सब अत्याचार चुपचाप सहते रहे। २. अपने ऊपर कोई भार लेकर उसका निर्वाह या वहन करना। ३. किसी प्रकार का परिणाम या फल अपने ऊपर लेना। अ० किसी वस्तु का ग्रहण। धारण या भोग करने पर उसका सह्य या अच्छी तरह फलदायक सिद्ध होना। जैसा—(क) यह नीलाम मुझे सह गया है। (ख) वह मकान उन्हें नही सहा। अ० हि० रहना के साथ प्रयुक्त होनेवाला उसका अनुकरण वाचक शब्द। जैसा—कहीं या किसी के साथ रहना-सहना। पुं० साहनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
सहनाइन  : स्त्री० [फा० शहनाई+आयन (प्रत्य)] शहनाई बजानेवाली स्त्री।
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सहनाई  : स्त्री०=शहनाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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