शब्द का अर्थ
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					साप					 :
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					पुं०=शाप।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					सापत्नेय					 :
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					वि० [सं० सपत्नि+ठक्—एय] सपत्नी से उत्पन्न। सौतेला।				 | 
			
			
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					सापत्न्य					 :
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					पुं० [सं० सपत्न+ष्यञ्] १. सपत्नी होने की अवस्था, धर्म या भाव। सौतपन। २. सपत्नियों में होनेवाली द्वेष-भावना, लाग-डाँट या स्पर्धा। ३. सपत्नी या सौत का लड़का। ४. दुश्मन शत्रु।				 | 
			
			
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					सापत्न्यक					 :
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					पुं० [सं० सापत्न्य+कन्] १. सपत्नियों में होनेवाली प्रतिद्वंद्विता या लाग-डाँट का भाव। २. शत्रुता।				 | 
			
			
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					सापत्य					 :
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					वि० [सं०] १. जिसके आगे संतान हो। २. जो अपनी संतान के साथ हो।				 | 
			
			
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					सापन					 :
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					पुं० [?] सिर के बाल के झगड़ने का एक रोग।				 | 
			
			
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					सापना					 :
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					स० [सं० शाप, हिं० साप+ना (प्रत्य०)] १. शाप देना। कोसना। उदा०—सापत ताड़क परुष कहन्ता।—कबीर। २. गालियाँ देना। दुर्वचन कहना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सापल					 :
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					वि० [सं० सपल+अण्] १. सपत्नी या सौत सम्बन्धी। २. सौत से उत्पन्न। सौतेला। पुं० सौत के लड़के-बाले। सौत की सन्तान।				 | 
			
			
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					सापवाद					 :
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					वि० [सं०] (नियम या सिद्धान्त) जिसके अपवाद भी हों।				 | 
			
			
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					सापह्नवातिशयोक्ति					 :
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					स्त्री० [सं०] साहित्य में, अतिश्योक्ति अलंकार का एक भेद जिसमें रूपकातिशयोक्ति के साथ अपह्रति भी मिली रहती है। इसे कुछ लोग रूपकातिशयोक्ति के अंतर्गत और कुछ लोग परिसंख्या के अंतर्गत भी मानते हैं।				 | 
			
			
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					सापिंड्य					 :
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					पुं० [सं० सपिंड+ष्यज्] सपिंड होने की अवस्था या भाव। वे लोग जो किसी एक ही पितर को पिंड-दान करते हों।				 | 
			
			
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					सापुरस					 :
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					पुं० [सं० स+पुरुष] शूरवीर। उदा०—सिंह सीचाणो सापुरस।—जटमल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सापेक्ष					 :
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					वि० [सं० तृ० त०] १. जिसके सम्बन्ध में किसी प्रकार का आक्षेप या आपत्ति की जा सकती हो। २. आक्षेप ताने या व्यंग्य से युक्त (कथन)। क्रि० वि० आक्षेपपूर्वक।				 | 
			
			
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					सापेक्ष					 :
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					वि० [सं०] [भाव० सापेक्षता] १. जो किसी दूसरे तत्त्व, विचार, दृष्टिकोण आदि से संबद्ध होने के कारण उसकी उपेक्षा रखता हो। बिना किसी दूसरे संबद्ध अंग को ठीक या पूरा न होनेवाला। (रिलेटिव) २. किसी की अपेक्षा करनेवाला।				 | 
			
			
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					सापेक्षता					 :
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					स्त्री० [सं०] १. सापेक्ष होने की अवस्था या भाव। २. सुप्रसिद्ध जर्मन वैज्ञानिक आइन्स्टीन का सिद्धान्त जिसमें विश्व-संबंधी पुराने गुरुत्वाकर्षण आदि के सिद्धान्तों का खंडन करके यह सिद्ध किया गया है कि विश्व की सारी गति सापेक्ष है। (रिलेटिविटी)				 | 
			
			
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					सापेक्षवाद					 :
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					पुं० [सं०] पुं० [सं०] १. वह वाद या सिद्धान्त जिसमें दो बातों या वस्तुओं को एक दूसरी का अपेक्षक माना जाता है। २. दे० ‘सापेक्षता’।				 | 
			
			
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					सापेक्षवादी					 :
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					वि० [सं०] सापेक्षवाद-संबंधी। पुं० सापेक्षवाद के सिद्धांतों का अनुयायी या समर्थक।				 | 
			
			
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					सापेक्षिक					 :
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					वि० [सं०]=सापेक्ष।				 | 
			
			
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					साप्ततंतव					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] एक प्राचीन धार्मिक संप्रदाय।				 | 
			
			
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					साप्तपदीन					 :
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					वि० [पुं० सं० सप्तपद-खज्—ईन]=साप्तपद।				 | 
			
			
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					साप्तप्रद					 :
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					वि० [सं० सप्तपद+अण्] सप्तपदी-संबंधी। पुं० १. सप्तपदी। २. मैत्री। ३. घनिष्ठता।				 | 
			
			
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					साप्तमिक					 :
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					वि० [सं० संप्तमी+ठक्—इक] सप्तमी-संबंधी। सप्तमी का।				 | 
			
			
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					साप्तहिक					 :
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					वि० [सं० सप्ताह+ठञ्-इक] १. सप्ताह-संबंधी। २. सातस दिनों तक लगातार चलनेवाला। जैसे—साप्तहिक समारोह। ३. सप्ताह में एक बार होनेवाला। हर सातवें दिन होनेवाला। जैसे—साप्ताहिक पत्र। साप्ताहिक छुट्टी। पुं० वह पत्र जिसका प्रकाशन हर सातवें दिन होता हो।				 | 
			
			
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