शब्द का अर्थ
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					सींग					 :
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					पुं० [सं० श्रृंग] १. वे कठोर, लंबे और नुकीले अवयव जो खुरवाले पशुओं के सिर पर दोनों ओर निकलते हैं। विषाण। जैसे—गौ, बैल या हिरन के सींग। मुहा०—सींग जमना या निकलना=साधारण सी बात के लिए भी लड़ने को उद्यत या प्रवृत होना। सिर पर सींग होना=कोई विशेषता होना। (परिहास) सींग लगाना=अभिमान बल, या महत्व प्रदर्षित करने के लिए कोई अनोखा और नया काम या बात करना। (किसी के) कहीं सींग समाना=कहीं रहने पर गुजारा या निर्वाह होना। ठिकाना लगना। (आश्चर्यसूचक) जैसे—तुम अभी से इतने उद्दंड हो, तुम्हारे सींग कहाँ समाएँगे। कहा०—सींग कटाकर बछड़ो में मिलना= वयस्क या वृद्ध हो जाने पर भी लड़कों में खेलना अथवा उनका सा आचरण या व्यवहार करना। २. हाथ का अंगूठा जो प्रायः उपेक्षा सूचित करने के लिए दूसरों को दिखाया जाता है। और अशिष्ट लोगों में पुरुषेन्द्रिय का प्रताक माना जाता है। क्रि० प्र०—दिखाना। मुहा०—सींग पर मारना, रखना या समझना=बहुत ही उपेक्षित तथा तुच्छ समझना। ३. सिंगी नाम का बाजा। पुं० [सं० शार्ग्ङ] धनुष की प्रत्यंचा। (डिं०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सींगडा					 :
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					पुं० [हिं० सींग+ड़ा (प्रत्य०)] १. ऐसा पशु जिसके सिर पर सींग हो। २. सिंगी नामक बाजा। ३. वह चोंगा या सींग जिसमें प्राचीन काल में बारूद रखते थे।				 | 
			
			
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					सींगण					 :
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					पुं० [सं० सींग] सींग का बना हुआ नरसिंहा नाम का बाजा। (राज०)				 | 
			
			
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					सींगदाना					 :
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					पुं०=मूँग-फली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सींगना					 :
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					स० [हिं० सींग] चुराए हुए पशु पकड़ने के लिए उनकी सींग देखना और उनकी पहचान करना।				 | 
			
			
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					सींगरी					 :
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					स्त्री० [देश] १. एक प्रकार का पौधा। २. उक्त पौधे की फली। सींगर।				 | 
			
			
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					सींगी					 :
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					स्त्री० [हिं० सींग] १. वह पोला सींग जिससे जर्राह शरीर का दूषित रक्त खीचते हैं। क्रि० प्र०—लगाना। २. सिंधी नाम का बाजा। ३. छोटी नदियों तथा तालाबों में होने वाली एक प्रकार की मछली जिसके मुँह के दोनों ओर सींग सदृश पतले लंबे काँटे होते हैं।				 | 
			
			
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