शब्द का अर्थ
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					स्वयं					 :
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					वि० [सं० स्वयम्] १. सर्वनाम जिसके द्वारा वक्ता अपने व्यक्तित्व पर जोर देते हुए कोई बात कहता है। जैसे–मैं स्वयं वहाँ गया था। २. अपने आप सब काम करनेवाला। जैसे–स्वयं चालित,स्वयंगामी। स्वयंभर। अव्य. १. एक आप से आप। बिना किसी जोर या दबाव के। जैसे–सव्यं बातें खुल जायँगी।				 | 
			
			
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					स्वयं-ज्योति					 :
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					वि० [सं०] आप से आप प्रकाशमान् होने या चमकनेवाला। पुं० पर ब्रह्म। परमात्मा।				 | 
			
			
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					स्वयं-दूत					 :
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					[सं०] साहित्य में वह नायक जो स्वयं अपना प्रेम या वासना नायिका पर प्रकट करता हो।				 | 
			
			
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					स्वयं-दूतिका-स्वयं दूती					 :
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					स्त्री० [सं०] वह परकीया नायिका, जो अपना दूतत्व आप ही करती हो। नायक पर स्वयं ही वासना प्रकट करनेवाली परकीया नायिका।				 | 
			
			
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					स्वयं-पाक					 :
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					पुं० [सं०] अपनी उदर–पूर्ति के लिए भोजन स्वयं बनाना।				 | 
			
			
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					स्वयं-पाकी					 :
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					पुं० [सं०] १. अपना भोजन स्वयं बनाने वाला व्यक्ति। २. ऐसा व्यक्ति जो खुद बनाया हुआ ही भोजन करता हो और दूसरों के हाथ का बनाया हुआ न खाता हो।				 | 
			
			
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					स्वयं-प्रकाश					 :
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					वि० [सं०] जो स्वतः प्रकाशित हो। पुं० १. ज्योतिपुंज। २. परमात्मा।				 | 
			
			
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					स्वयं-प्रभ					 :
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					पुं० [सं०] भावी २४ अर्हतों में से चौथे अर्हत् का नाम। (जैन) वि० स्वयं–प्रकाश।				 | 
			
			
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					स्वयं-प्रभा					 :
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					स्त्री० [सं०] इन्द्र की एक अप्सरा, जिसे मय दानव हर लाया था और जिसके गर्भ से मंदोदरी उत्पन्न हुई थी।				 | 
			
			
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					स्वयं-प्रमाण					 :
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					वि० [सं०]जो आप ही अपने प्रमाण के रूप में हो और जिसके लिए किसी दूसरे प्रमाण की आवश्यकता न हो। जैसे–वेद आदि स्वयं प्रमाण हैं।				 | 
			
			
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					स्वयं-फल					 :
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					वि० [सं०] जो आप ही अपना फल हो अर्थात् किसी दूसरे कारण से उत्पन्न न हुआ हो।				 | 
			
			
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					स्वयं-भर					 :
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					वि० [सं०] १. अपने आप को या अपने में का रिक्त स्थान आप ही भरनेवाला। २. (पिस्तौल या बंदूक) जो अपने अंदर रखी हुई गोलियों में से क्रमशः एक–एक गोली आप ही लेकर छोड़े (सेल्फ लोडिंग)।				 | 
			
			
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					स्वयं-भु					 :
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					पुं० [सं०] १. ब्रह्मा। २. अज। २. वेद। ४. जैनियों के नौ वासुदेवों में से एक। ५. स्वयंभू।				 | 
			
			
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					स्वयं-भुक्ति					 :
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					पुं० [सं०] धर्मशास्त्र में पाँच प्रकार के साक्षियों में से ऐसा साक्षी, जो बिना बुलाये आकर किसी बात की गवाही दे।				 | 
			
			
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					स्वयं-वरण					 :
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					पुं० [सं०] कन्या को अपने इच्छानुसार अपने लिए पति चुनना या वरण करना।				 | 
			
			
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					स्वयं-सिद्ध					 :
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					वि० [सं०] [भाव० स्वयं-सिद्धि] (बात या तत्त्व) जो किसी तर्क या प्रमाण के बिना आप ही ठीक और सिद्ध हो। सर्वमान्य। (एग्जिओमेटिक)				 | 
			
			
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					स्वयं-सिद्धि					 :
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					स्त्री० [सं०] [वि० स्वयं सिद्ध] वह सर्वमान्य सिद्धान्त या तत्त्व, जिसे सिद्ध या प्रभावित करने की कोई आवश्यकता न हो। (एग्जियम)				 | 
			
			
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					स्वयं-सेवक					 :
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					पुं० [सं०] [स्त्री० स्वयं-सेविका] १. व्यक्ति, जो किसी सेवा-कार्य में अपनी इच्छा से लगता हो। २. किसी ऐसे संगठन का सदस्य, जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों की सेवा करना हो। (वालन्टियर)				 | 
			
			
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					स्वयं–तथ्य					 :
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					पुं० [सं०]ऐसा तथ्य या बात जो स्वयं ही ठीक और सिद्ध हो और जिसे ठीक या सिद्ध करने के लिए किसी प्रकार के तर्क प्रमाण आदि की अपेक्षया आवश्यकता न हो। (एक्जिअम)।				 | 
			
			
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					स्वयं–दत्त					 :
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					पुं० [सं०] ऐसा पुत्र जो अपने माता–पिता के मर जाने अथवा उनकी मृत्यु के उपरांत अथवा उनके द्वारा परित्यक्त होने पर अपने आप को किसी के हाथ सौंप दे और उसका पुत्र बन जाय। (धर्मशास्त्र)।				 | 
			
			
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					स्वयंभू-रमण					 :
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					पुं० [सं०] अंतिम महाद्वीप और उसके समुद्र का नाम। (जैन)				 | 
			
			
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					स्वयंभूत					 :
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					भू० कृ० [सं०] जिसने अपना निर्माण स्वयं किया हो। जो अपनी इच्छा शक्ति से अवतीर्ण हुआ या अस्तित्व में आया हो। स्वयंभू।				 | 
			
			
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					स्वयंवर					 :
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					पुं० [सं०] १. स्वयं वरण करना। स्वयं चुनना। २. प्राचीन काल में वह उत्सव या समारोह, जिसमें कन्या स्वयं अपने लिए उपस्थित व्यक्तियों में से वर को वरण करती थी। ३. कन्या द्वारा स्वयं अपने लिए वर वरण करने की रीति या विधान।				 | 
			
			
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					स्वयंवरा					 :
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					स्त्री० [सं०] ऐसी कन्या, जिसने अपने पति का वरण अपनी इच्छा से किया हो।				 | 
			
			
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					स्वयंवह					 :
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					पुं० [सं०] ऐसा बाजा, जो चाबी देने पर आप से आप बजे। वि० स्वयं अपने आप को वहन करनेवाला।				 | 
			
			
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					स्वयंवादि-दोष					 :
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					पुं० [सं०] न्यायालय में झूठी बात बार-बार दोहराने का अपराध।				 | 
			
			
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					स्वयंवादी					 :
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					पुं० [सं०] मुकदमे में जिरह के समय कोई झूठ बात बार-बार दोहरानेवाला व्यक्ति।				 | 
			
			
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					स्वयंसेवा					 :
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					स्त्री० [सं०] १. अपनी इच्छा या अंतःप्रेरणा से की जानेवाली दूसरों की सेवा। २. अपना काम स्वयं करना।				 | 
			
			
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					स्वयंसेवी					 :
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					पुं०=स्वयं-सेवक।				 | 
			
			
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